Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ys-analytics
ADVERTISEMENT
Advertise with us

प्रदूषित हुआ धरती का स्वर्ग: कश्मीर में खराब होती हवा की गुणवत्ता सांस के मरीजों के लिए बड़ा खतरा

कश्मीर में सर्दियों के समय हवा की गुणवत्ता बहुत तेजी से खराब होती है. इसके चलते यहां के लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं. एक अध्ययन के मुताबिक, 1 लाख में से 4,750 लोग लंबे समय तक चलने वाली फेफड़े वाली बीमारियों से जूझते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण हवा का प्रदूषण होता है.

प्रदूषित हुआ धरती का स्वर्ग: कश्मीर में खराब होती हवा की गुणवत्ता सांस के मरीजों के लिए बड़ा खतरा

Sunday February 26, 2023 , 9 min Read

दिसंबर का महीना काफी कोहरे वाला था. यहां के युवा और बूढ़े लोग श्रीनगर के डलगेट में मौजूद चेस्ट एंड डिजीज (CD) हॉस्पिटल जाने के लिए पहाड़ चढ़ रहे थे. हमने देखा कि कुछ लोग बार-बार रुकते गहरी सांसें लेते और ठंडी हवा में मुंह से निकलने वाली भाप छोड़ते. बाह्य रोगी विभाग में हमने देखा कि अच्छी-खासी भीड़ थी जिसमें ज्यादातर लोग खांस रहे थे और डॉक्टर का इंतजार कर रहे थे.

यह कोई खास या अलग दिन नहीं था. सालों से कश्मीर घाटी में बसे इस अस्पताल में लोग सांस और फेफड़े से जुड़ी समस्यााएं लेकर आ रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है, “खराब होती हवा की गुणवत्ता” ही इन बीमारियों के पीछे का सबसे अहम कारण है.

श्रीनगर के सीडी हॉस्पिटल के चीफ और मशहूर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. नवीद नाजिर शाह कहते हैं, “सर्दियों में कश्मीर में धुंध की चादर दिखना आम बात है. ठंडे वातावरण की वजह से सांस और फेफड़े के संक्रमण से जुड़ी समस्याएं उभर आती हैं. हालांकि, अब हम देख रहे हैं कि गर्मियों के मौसम में भी इस तरह की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं. इसमें सबसे बड़ा योगदान उस हवा का है जिसमें हम सांस लेते हैं.” उन्होंने यह भी कहा कि फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले हवा में मौजूद प्रदूषकों के ज्यादा समय तक संपर्क में रहने पर क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) और फेफड़े से संबंधित अन्य बीमारियां बढ़ जाने का खतरा होता है.

शेर-ए-कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS) के डायरेक्टर डॉ. परवेज कौल कहते हैं, “हर साल जम्मू-कश्मीर में लगभग 10,000 लोग हवा के प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियों के चलते जान गंवाते हैं.” वह डॉक्टर्स फॉर क्लीन एयर ऐंड क्लाइमेट ऐक्शन के जम्म-कश्मीर चैप्टर के लॉन्च के मौके पर बोल रहे थे. इसी इवेंट में डॉ. परवेज़ कौल ने हवा के प्रदूषण और फेफड़ों की बीमारियों पर एक विस्तृत प्रजेंटेशन भी दिया. उन्होंने कहा, “प्रदूषण हमारे शरीर के हर अंग को प्रभावित कर रहा है. देश भर में फेफड़े के कैंसर के सबसे ज्यादा मामले श्रीनगर शहर में हैं. जम्मू-कश्मीर फेफड़े की बीमारियों के लिए चर्चित है और इन सब बीमारियों के पीछे का सबसे अहम कारण हवा का प्रदूषण है.”

बिजबेहड़ा के मुगल गार्डन में चारकोल बनाने के लिए पत्तियां जलाता एक शख्स। तस्वीर- फरजाना निसार।

बिजबेहड़ा के मुगल गार्डन में चारकोल बनाने के लिए पत्तियां जलाता एक शख्स. तस्वीर - फरजाना निसार

COPD, फेफड़ों से जुड़ी एक ऐसी दीर्घकालिक बीमारी है जो हवा आने-जाने के रास्ते को बाधित करती है और सांस लेना मुश्किल कर देती है. आमतौर पर ऐसा तब होता है जब आप लंबे समय तक हानिकारक गैसों या प्रदूषक कणों के संपर्क में रहें. WHO के मुताबिक, दुनिया में बीमारी से होने वाली मौतों में तीसरी सबसे ज्यादा संख्या इसी बीमारी से मरने वालों की है.

साल 2018 की एक स्टडी में भारत में सांस से जुड़ी दीर्घकालिक बीमारियों की वजह से होने वाली मौतों और विकलांगता का आकलन किया गया. इसमें सामने आया कि COPD के बढ़ते मामलों की संख्या वाले राज्यों की लिस्ट में जम्मू-कश्मीर शीर्ष 4 में शामिल है. यह दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर में हर एक लाख व्यक्ति में से 4,750 से ज्यादा लोग COPD से पीड़ित हैं और इसका मुख्य कारण वायु प्रदूषण है.

प्रदूषित हो गया है धरती का स्वर्ग

42 साल के बशीर (बदला हुआ नाम) पंपोर शहर के ख्रेउ इलाके के रहने वाले हैं. पंपोर शहर को कश्मीर के सीमेंट उत्पादक के तौर पर जाना जाता है. बशीर को एलर्जिक ब्रोंकाइटिस की बीमारी हो गई. वह बताते हैं कि डॉक्टरों ने जल्द से पहचान लिया कि उनकी बीमारी का मुख्य कारण “धूल के संपर्क में ज्यादा रहना” था और इससे उन्हें खतरा था. यह पूरा इलाका गहरे भूरे धुएं और धूल के गुबार से घिरा रहता है. बशीर बताते हैं, “सिर्फ़ मैं ही नहीं बल्कि हमारे बच्चे हर दिन सीमेंट की सांस लेते हैं. प्रदूषित हवा की वजह से हमारे पड़ोस के सैकड़ों लोग सांस से जुड़ी अलग-अलग बीमारियों से जूझ रहे हैं.”

सीडी अस्पताल में डॉक्टर नजीर और उनकी टीम के लोग आए दिन कश्मीर के बडगाम और पंपोर के ख्रेउ और खोनमोह जैसे गांवों से आए मरीजों का इलाज करते हैं. इन मरीजों में आम बात यह है कि ये लोग प्रदूषण वाले इलाकों से आते हैं. उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया, “अगर ये मरीज ऐसे इलाकों से आते हैं तो उनमें इस तरह के लक्षण ज्यादा होते हैं. खनन, सीमेंट फैक्ट्री, ईंट उद्योग और अन्य संबंधित गतिवधियों की वजह से सांस और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों से जूझने वाले लोगों की संख्या ज्यादा हो जाती है.”

जम्मू-कश्मीर में फेफड़ों की बीमारी का असर ज्यादा है। पिछले कुछ सालों में श्रीनगर के डलगेट में मौजूद चेस्ट एंड डिजीज हॉस्पिटल में सांस संबंधी मरीजों के आने की संख्या काफी हद तक बढ़ गई है। तस्वीर- फरजाना निसार।

जम्मू-कश्मीर में फेफड़ों की बीमारी का असर ज्यादा है. पिछले कुछ सालों में श्रीनगर के डलगेट में मौजूद चेस्ट एंड डिजीज हॉस्पिटल में सांस संबंधी मरीजों के आने की संख्या काफी हद तक बढ़ गई है. तस्वीर - फरजाना निसार

आम तौर पर माना जाता है कि ऊंची पहाड़ियों, घास के मैदानों और जंगलों से घिरी घाटी में हवा की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है लेकिन स्टडीज में पता चला है कि कई दिनों पर ऐसा होता है कि कश्मीर में प्रदूषण का स्तर मेट्रो शहरों से भी ज्यादा होता है. साल 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, WHO ने श्रीनगर को दुनिया का 10वां सबसे प्रदूषित शहर बताया था.

साल 2018 में एक स्टडी की गई थी जिसका नाम ‘विंटर बर्स्ट ऑफ प्रिस्टीन कश्मीर वैली एयर’ था. यह स्टडी इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मेटेरोलॉजी और यूनिवर्सिटी ने साथ में की है. यह स्टडी बताती है कि श्रीनगर में सर्दियों के दौरान प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो जाता है क्योंकि हवा तय स्तर से पांच गुना ज्यादा पार्टिकुलेट मैटर यानी PM 2.5 ले आती है.

यह स्टडी दर्शाती है कि घरेलू कोयले के इस्तेमाल से होने वाला प्रदूषण सालाना प्रदूषण का 84 प्रतिशत (1246.5 टन प्रति साल) हिस्सा होता है. दूसरे नंबर पर गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण है जो कि 220.5 टन प्रति साल होता है. सबसे कम प्रदूषण ईंधन के रूप में लकड़ी को जलाने से होता है जो कि 8.06 टन प्रति साल होता है.

भूवैज्ञानिक शकील ए. रॉमशू के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में बागवानी वाली जमीन काफी तेजी से बढ़ी है, इसकी वजह से अक्टूबर और नवंबर के महीनों में पेड़ों की कटाई-छंटाई बड़े पैमाने पर होती है. आम लोगों के पास कोई दूसरी चारा होता नहीं इसलिए वे पत्तों और लकड़ियों को जलाकर ही कोयला (चारकोल) बनाते हैं. वह आगे कहते हैं, “आग जलाने के लिए बनाए जाने वाले पारंपरिक गड्ढे जिनमें चारकोल जलाया जाता है और बुखारी (कोयले वाले हीटर) की वजह से प्रदूषण में इजाफा होता है.”

रॉमशू की लिखी एक और स्टडी में यह पता चला है कि पतझड़ और ठंडी के समय में PM 2.5 और PM10 की मात्रा बढ़ जाती है. इसमें सबसे बड़ा योगदान मानव जनित स्रोतों से होने वाले प्रदूषण का होता है. कश्मीर घाटी का मौसम और भू आकृति ऐसी है कि इस तरह का प्रदूषण होना आम बात है.

NASA की अर्थ ऑब्जर्वेटरी के मुताबिक, कश्मीर घाटी हर तरफ से ऊंची पहाड़ी चोटियों से घिरी हुई है इस वजह से हवा फंस जाती है. ऊंची चोटियां हवा का बहाव ऐसा कर देती हैं कि धुआं और अन्य प्रदूषक घाटी के निचले हिस्सों में इकट्ठा हो जाते हैं और धुंध और धुआं छाया रहता है.

यह स्थिति ज्यादातर सर्दियों में बनती थी क्योंकि सतह पर मौजूद ठंडी हवा की परत के ऊपर गर्म हवा की परत बन जाती थी. मौसम विज्ञान में इसे ताप का उत्क्रमण (Temperature Inversion) कहा जाता है. ठंड के समय में कोयले और बायोमास के दहन से, जीवाश्म ईंधन के दहन से और सड़क से उड़ने वाली धूल के कण से प्रदूषण बढ़ता है और हवा में पार्टिकुलेट मैटर बढ़ जाते हैं.

रॉमशू ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “ठंडे मौसम का असर, बायोमास और कोयला जलाने, जीवाश्म ईंधन जलाने और गाड़ियों से होने वाले प्रदषण जैसी चीजों से कुल मिलाकर होने वाले प्रदूषण से निचले वातावरण वाले स्तर में पार्टिकुलेट मैटर बढ़ जाता है. इस स्थिति में ताप उत्क्रमण होने से घाटी की हवा स्थिर हो जाती है.”

यातायात विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में रजिस्टर्ड गाड़ियों की संख्या 16 लाख से ज्यादा है. साल 2008 की तुलना में इसमें तेजी से इजाफा हुआ है क्योंकि तब गाड़ियों की संख्या सिर्फ़ 6,68,445 थी.

जम्मू कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति (JKPCC) के अधिकारी कहते हैं कि बिना किसी योजना के गाड़ियों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी हवा की गुणवत्ता पर असर डाल रही है.

साल 2018 में श्रीनगर की हवा की गुणवत्ता पर एक प्राथमिक स्टडी बताती है कि श्रीनगर के व्यावसायिक क्षेत्र यानी सिटी सेंटर और लाल चौक में नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड (NO2) काफी ज्यादा थी. यह स्टडी श्रीनगर के एस पी कॉलेज और जी डी कॉलेज से शोधार्थियों ने की है. स्टडी में कहा गया है कि गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण यहां नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की अधिकता का कारण हो सकता है. इंडस्ट्रियल एरिया में सल्फर डाई ऑक्साइड की अधिकता पाई गई. इसका कारण यह हो सकता है कि फैक्ट्रियों में ईंधन का इस्तेमाल खूब होता है और जेनरेटरों का इस्तेमाल बहुतायत में किया जाता है.

JKPCC में वैज्ञानिक फैयाज अहमद कहते हैं, “शहर में चलने वाली सरकारी और प्राइवेट गाड़ियों की संख्या में तेजी से इजाफा होने की वजह से हवा में प्रदूषकों की मात्रा काफी हद तक बढ़ गई है.” वह आगे कहते हैं कि एलपीजी की बढ़ती कीमत और कश्मीर में बिजली की कमी की वजह से लोग पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करने पर मजबूर होते हैं और ठंड में उन्हें इस तरह की चीजें जलानी पड़ती हैं.

श्रीनगर जम्मू-कश्मीर की दो राजधानियों में से एक है. नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत जम्मू-कश्मीर एक्शन प्लान में श्रीनगर को नॉन-अटेनमेंट सिटी (NAC) का दर्जा दिया गया है. NAC का दर्जा पाने वाले शहर वे शहर हैं जो पिछले पांच से ज्यादा सालों से नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स (NAAQS) से पीछे चल रहा है.

JKPCC के रीजनल डायरेक्टर रफी अहमद भट अपने विभाग की ओर से उठाए जा रहे कदमों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वे श्रीनगर में अलग-अलग जगहों पर हवा की गुणवत्ता की मॉनीटरिंग कर रहे हैं. ऐसा करने का मकसद हवा में गुणवत्ता जानना है. JKPCC ने कुछ इलाकों में हवा को प्रदूषित करने वाली सीमेंट फैक्ट्रियों पर साल 2020 में दो साल का बैन लगा दिया था. यह फैसला उन फैक्ट्रियों की क्षमता का आकलन करने के बाद किया गया था.

रफी अहमद भट कहते हैं, “हवा में प्रदूषकों की मात्रा घटाने के लिए हम आम लोगों के बीच आउटरीच प्रोग्राम चला रहे हैं. इसके अलावा, वृक्षारोपण अभियान चलाए जा रहे हैं, होटलों और ढाबों में इलेक्ट्रिक अवन अनिवार्य किए जा रहे हैं, ईंट के भट्ठों को नोटिफाई करने, फैक्ट्रियों को कम प्रदूषण करने वाले और स्वच्छ ईंधन इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.”

उन्होंने यह भी सलाह दी है कि शहर में प्रदूषण कम करने के लिए गाड़ियों का मैनेजमेंट बहुत ज़रूरी है.

(यह लेख मूलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)

बैनर इमेज: श्रीनगर और उसके आसपास के इलाकों में हवा को प्रदूषित करतीं सीमेंट फैक्ट्रियां. तस्वीर - मोहम्मद दाऊद