आखिर क्यों धीमी है ओडिशा में सोलर नेट मीटर के विकास की रफ्तार?
आंकड़ें बताते हैं कि भारत के पूर्वी राज्यों पूर्वोत्तर राज्यों में की गिनती में ओडिशा में सबसे ज्यादा स्थापित नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में सबसे आगे है. यहां सौर ऊर्जा के विस्तार की वजह से धीरे धीरे राज्य में नेट-मीटरों के ग्राहकों की संख्या बढ़ रही है.
राइरंगपुर, ओडिशा के मयूरभंज जिले का एक छोटा सा शहर है. यह शहर हाल ही में संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव के दौरान चर्चा में रहा. इधर इस स्थान से नाता रखने वाली द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं और आदिवासी समाज से आने वाली पहली राष्ट्रपति बन रहीं थीं, और दूसरी तरफ यहां पहला नेट मीटर लग रहा था. मुर्मू के जीवन का खासा समय इसी शहर में बीता है.
नेट मीटर एक विशेष तरह का बिजली का मीटर होता है जो ऐसे बिजली के ग्राहकों के घरों में लगाया जाता है जिनके छतों पर सोलर पैनल लगे होते हैं. इस पैनल को बिजली के ग्रिड से जोड़ने पर ये उपभोक्ता ग्रिड के माध्यम से बिजली बेच भी सकते हैं. ऐसे सौर ऊर्जा के ग्राहकों को ‘प्रोज्यूमर‘ भी कहा जाता है. आम ग्राहकों की तुलना में इन्हें बिजली के लिए कम बिल देना होता है. ऐसे उपभोक्ताओं की बिजली की जरूरत कुछ हद तक अपने छत पर लगे सोलर पैनल से पूरी हो जाती है. और बची हुई बिजली ग्रिड में भेज दिया जाता है. नेट मीटर वाले उपभोक्ताओं का बिजली बिल इस आधार पर तय होता है कि ग्रिड से कितना बिजली उपभोक्ता ने प्रयोग किया है और कितना ग्रिड को भेजा है. दोनों हिसाब लगाने के बाद बिजली का बिल तैयार किया जाता है.
राइरंगपुर में पहला नेट मीटर लगाने वाली कंपनी के मुताबिक यह इस क्षेत्र के लिए एक नई बात है. “इस शहर में सौर ऊर्जा के कुछ ऑफ-ग्रिड (बिना ग्रिड से जुड़े) सौर रूफटॉप पैनल तो लगाए गए हैं लेकिन नेट-मीटर (जो ऑन-ग्रिड सोलर रूफटॉप के लिए लगाया जाता है) के लगने की शुरुआत हो रही है. हाल ही में हमने यहां का पहला आवासीय ऑन-ग्रिड सोलर रूफटॉप और नेट मीटर लगाया है,” क्रक्स पावर पावर के निदेशक गौरव पटनायक ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
जागरूकता की कमी
सोलर नेट मीटर की यह तकनीक केंद्र की नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के रूफटॉप सोलर योजना (आरटीएस) के तहत आती है. ऐसे ग्रिड से जुड़े सोलर रूफटॉप के उपभोक्ता, जो नेट मीटर का प्रयोग करते है इस योजना के तहत सब्सिडी के लिए भी योग्य है. इस योजना के तहत आवासीय परिसर या अपार्टमेंट में सोलर रूफटॉप लगाने पर सरकार 40 प्रतिशत तक की सब्सिडी देती है. आरटीएस-1 के तहत ओडिशा में 3.8 मेगावाट तक के सौर ऊर्जा का विकास किया गया. आरटीएस-1 के नियमों के आधार पर इस तकनीक का राज्य में विकास करना राज्य के नवीकरणीय ऊर्जा विभाग का काम था जबकि आरटीएस-II में यह काम ऊर्जा वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को दे दिया गया.
राज्य में सोलर रूफटॉप में प्रयोग होने वाले नेट मीटर को लेकर कई चुनौतियां पेश आ रही हैं, जैसे-जागरूकता की कमी, सही नीति और दिशा निर्देशों की कमी, ऐसे मीटर लगाने में बिजली वितरण की कंपनियों की हीलाहवाली, और सब्सिडी मिलने मे विलंब आदि.
राज्य में सौर ऊर्जा के संयंत्र लगाने वाली कुछ कंपनियों के कर्मचारियों ने बताया कि नेट मीटर घरेलू बिजली उपभोक्ताओं के बदले कमर्शियल उपभोक्ताओं के परिसरों में ज्यादा प्रचलित हो रहा है जिनको सरकार की तरफ से सब्सिडी तक नहीं मिलती. व्हाइटशार्क नाम की एक सोलर कंपनी के संस्थापक सार्थक शंकर भगत ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “यह तकनीक न केवल स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देती है बल्कि हर महीने के बिजली के बिल को भी कम करने में मदद करती है. लेकिन हमने देखा है कि कमर्शियल क्षेत्र में यह ज्यादा प्रचलित है और इसका प्रयोग अधिक है.”
जब राज्य में नेट मीटर लगाने से जुड़ी चुनौतियों के बारे में पूछा गया तो सार्थक ने बताया, “ऐसे कई कारण हैं जिससे इस क्षेत्र में विकास धीमा है. न केवल बिजली उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी है बल्कि बिजली वितरण कंपनियों के कर्मचारियों में भी जानकारी का अभाव है. इन्हीं कर्मचारियों को लोगों से नेट मीटर और सोलर कनेक्शन के लिए आवेदन लेना होता है. आवेदन के बाद सोलर रूफटॉप और नेट मीटर लगाने की समयसीमा 30 दिन निर्धारित है, पर नेट मीटर लगाने में कई बार 90 दिन तक इंतजार करना पड़ जाता है. ऐसे में नेट मीटर लगाने के इच्छुक लोगों का भी मनोबल टूट जाता है.”
स्पष्ट नीति और नियमों की जरूरत
ओडिशा में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों का मानना है कि इस राज्य में सोलर नेट मीटर से जुड़े दिशा-निर्देश स्पष्ट नहीं हैं. इसका खामियाज़ा इससे जुड़ी कंपनियों और उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है. हाल ही में सौर ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े कुछ लोगों ने राज्य के बिजली नियंत्रण आयोग का दरवाजा भी खटखटाया है. वो चाहते हैं कि ओडिशा राज्य बिजली विनियम आयोग इस मसले से जुड़े स्पष्ट दिशा–निर्देश जारी करे. इसे लेकर आयोग ने आम लोगों, सोलर कंपनियों और विशेषज्ञों से राय मांगी है.
राज्य में सोलर एनर्जी सोसाइटी ऑफ इंडिया (एसईसीआई) के ओडिशा अध्याय के अध्यक्ष चन्द्रशेखर मिश्रा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “इस राज्य में सोलर नेट मीटर लगाने को लेकर ऊर्जा विभाग या राज्य के नवीन ऊर्जा से जुड़े विभाग, कहीं से भी कोई स्पष्ट निर्देश-निर्देश जारी नहीं हुआ है. हमने ऐसे केस भी देखे हैं जब नेट मीटर का बिल नौ महीनों के बाद आया है. कई जगह तो इसे लगाने में ही बहुत विलंब होता है. इसके अलावा सब्सिडी मिलने में देरी होने के कारण सोलर कंपनियां और उपभोक्ता भी परेशान रहते हैं. ऐसी स्थिति में लोगों का इस पूरे क्षेत्र से भरोसा उठ जाता है. इसी वजह से अब तो बहुत से सोलर कंपनियां भी ऑन-ग्रिड सोलर रूफटॉप का काम नहीं करना चाहती हैं.”
मिश्रा यह भी कहते हैं कि अगर राज्य में अगर रूफटॉप सोलर का सही तरीके से विकास हो तो इससे राज्य को नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता (आरपीओ) के मानकों को पूरा करने में भी मदद मिलेगी.
हालांकि ऐसे कई चुनौतियों के बावजूद कुछ सकारात्मक पहल भी इस क्षेत्र में देखने को मिला है. राज्य और केंद्र स्तर पर. केंद्र सरकार ने हाल ही में सोलर रूफटॉप के आवेदन लेने लिए एक राष्ट्रीय पोर्टल खोला है जहां भारत में किसी भी हिस्से से कोई भी सोलर रूफटॉप के लिए आवेदन कर सकता है, और इस योजना से संबंधित सब्सिडी ले सकता है. ऐसे ही राज्य में भी टाटा पावर के डिस्कॉम ने ऑनलाइन आवेदन लेना शुरू कर दिया है और 30 दिन के अंदर कनेक्शन देने का दावा भी कर रही है.
नवीन ऊर्जा मंत्रालय के आरटीएस-II के नियमों के अनुसार अगर कोई घरेलू उपभोक्ता अपने घर पर सोलर रूफटॉप लगवाता है तो उसे अपने कुल खर्च में से 40 प्रतिशत भाग सरकार से सब्सिडी के रूप में वापस मिल जाएगी. सौर ऊर्जा लगाने वाले कंपनियों की माने तो एक किलोवाट के सोलर रूफटॉप लगाने में लगभग 50,000 रुपये का खर्च आता है.
हालांकि सरकारी आंकड़े कहतें हैं कि पूरे पूर्वी भारत में नवीन ऊर्जा का सबसे ज्यादा विकास ओडिशा में हुआ है. आंकड़ें कहते हैं कि जुलाई 2022 के अंत तक राज्य में कुल स्थापित ऊर्जा 7648.05 मेगावाट थी जबकि उसमें नवीन ऊर्जा का योगदान 626.98 मेगावाट (बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट को छोड़ कर) था.
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: ओडिशा के भुवनेश्वर शहर में एक सोलर रूफटॉप के एक उपभोक्ता. तस्वीर - मनीष कुमार/मोंगाबे