Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

खुद का करियर छोड़ दूसरों के जीवन में खुशियां ला रहे स्वप्निल तिवारी

स्वप्निल तिवारी ने लोगों को खतरे से बाहर निकाला है, शिल्पकारों को आजीविका प्रदान कराई है, लोगों को डिप्रेशन से बार निकाला है और समाज में सकारात्मकता लाने का काम किया है।

खुद का करियर छोड़ दूसरों के जीवन में खुशियां ला रहे स्वप्निल तिवारी

Thursday June 06, 2019 , 6 min Read

swapnil tiwari

स्वप्निल तिवारी


जन्म से ही डिस्लेक्सिया की बीमारी से ग्रसित स्वप्निल तिवारी की जिंदगी काफी उतार चढ़ाव भरी रही है। उन्हें स्कूल में कुछ भी सीखने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती थी। इन्हीं सब हालात से गुजरते हुए वह आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन इसी बीच उनके पिता एक दुर्घटना में चल बसे। स्थिति कुछ ऐसी हो गई कि स्वप्निल को आत्महत्या के ख्याल आने लगे। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 12 साल थी। अच्छी बात ये रही कि उन्होंने खुद के एक और मौका दिया और अपने आप को मजबूत बनाया। आज वे कई लोगों के चेहरे पर खुशी लाने का काम कर रहे हैं।


स्वप्निल ने न केवल अपना जीवन संवारा, बल्कि अपने आस-पास के लोगों को भी खुश करने का प्रयास किया। आज उनकी उम्र 31 हो गई है और वे भारत के युवा विकलांग सामाजिक सुधारकों में से एक है। बैंकिंग क्षेत्र में अपनी नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने उद्यमिता के माध्यम से बुरी स्थिति से गुजर रहे लोगों की जिंदगी बदलने का काम किया। उन्होंने 'लिवमेड' (Livemad) नाम से एक मूवमेंट की शुरुआत की। स्वप्निल हमेशा से हाशिए पर खड़े वंचित समुदाय के लिए काम करना चाहते थे। उन्होंने आदिवासी शिल्पकारों से लेकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम प्रयास किए।


स्वप्निल ने जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए की पढ़ाई की। इसके बाद उन्हें बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी मिल गई। वहां से वे रिजर्व बैंक में गए और वहां भी कुछ दिनों तक काम किया। लेकिन इस काम से उन्हें संतुष्टि नहीं मिल रही थी। वे कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे कि लोगों का भला हो सके। इसी बीच उन्हें एक शिल्पकार की बेटी का फोन आया और उनकी जिंदगी ने नया मोड़ ले लिया।





स्वप्निल उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, 'यह वो वक्त था जब मैं भारत के शिल्पकारों द्वारा बनाई जाने वाली कलाकृतियों को संजोने पर काम करना चाहता था। मैंने अपने संपर्क सूत्रों से कलाकारों से संपर्क करना शुरू किया। मुझे बिहार के मधुबनी के एक शिल्पकार परिवार का नंबर मिला। जब मैंने फोन किया तो एक छोटी बच्ची ने फोन उठाया। उसने बताया कि हाल ही में बीमारी से उसके पिता का देहांत हो चुका है।' लड़की ने स्वप्निल से कहा कि पिता के जाने के बाद से गांव के प्रधान रात में मेरी मम्मी को ले जाते हैं और सुबह वापस छोड़ते हैं। उसके बाद मम्मी सिर्फ रोती रहती हैं।


इस बातचीत से स्वप्निल को गहरा सदमा पहुंचा। उनके अंदर बेचैनी बढ़ती जा रही थी। कुछ दिनों बाद उन्होंने इस विषय में कुछ करने का फैसला किया। वे अपनी मोटरसाइकिल से मधुबनी गए। उन्होंने किसी तरह उस बच्ची को खोजा और उसके परिवार को दिल्ली भेजा। इस दौरान उन्हें कई तरह की मुश्किलें आईं।


स्वप्निल ने योरस्टोरी से बात करते हुए कहा, 'उस परिवार की आजीविका चलनी जरूरी थी इसलिए मैंने उन्हें अपनी पारंपरिक कला को जारी रखने के लिए कहा। इसके लिए मैंने एक पहल शुरू की जिसका नाम 'नेकेड कलर्स' Naked Colours था। इसका उद्देश्य कारीगरों द्वारा बनाई गई कला और शिल्प को कॉर्पोरेट गिफ्टिंग मार्केट से जोड़कर बेचना था। बिजनेस मॉडल ऐसा था कि कुल मुनाफे का एक तिहाई कारीगरों को दिया जाता था, एक-तिहाई का उपयोग कंपनी को बनाए रखने के लिए किया जाता था, और शेष अनाथों और अलग-अलग बच्चों को दान कर दिया जाता था।' इस पहल से मधुबनी के अलावा तंजावुर और गोंड के कारीगरों को भी लाभ हुआ।


जिंदगी के उतार चढ़ाव


लखनऊ में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे स्वप्निल को डिस्लेक्सिया का पता तब चला जब वह सिर्फ सात साल के थे। उनका बचपन बहुत ही दर्द भरा था। वे बाकी बच्चों के साथ न तो खेल सकते थे और न ही सही से अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे पाते थे।


वे बताते हैं, 'मैं बचपन में बेहद बेचैन रहा करता था। क्रिकेट खेलते समय गेंद को सही दिशा में फेंकना काफी मुश्किल होता था। शब्दों को एक साथ जोड़ना और एक पूरा वाक्य पढ़ना एक बुरे सपने के जैसा था। मेरी तकलीफों को बढ़ाने के लिए मेरे सहपाठी मुझे ताने देते थे और मुझे पागल कहते थे। इसके बाद से, मैंने खुद को ‘पागल’ कहना शुरू कर दिया क्योंकि मैं वास्तविकता से भागना नहीं चाहता था, उन्हें गले लगाना चाहता था।'





स्वप्निल जब इस कठिन दौर से गुजरने में कामयाब हुए, तो उनके जीवन में एक और बड़ा झटका लगा। जब वे सिर्फ 12 साल के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया। इस घटना ने उन्हें काफी हद तक प्रभावित किया। वे परेशान रहने लगे और रात में भी उनको नींद नहीं आती थी। सोने के लिए वे नींद की गोलियां लेने लगे। स्थिति ये हो गई थी कि उन्हें नींद की गोलियां एक साथ खाकर अपना जीवन समाप्त करने का ख्याल आया। लेकिन उनका मन बदला और उन्होंने खुद को एक मौका देने का सोचा।


स्वप्निल समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए दृढ़ संकल्पित थे। इस संकल्प ने उन्हें मध्य भारत के सबसे हिंसा वाले इलाकों में से एक सतपुड़ा के जंगलों में पहुंचा दिया। हालांकि वे वहां बदलाव करने के लिए गए थए, लेकिन उनका अपहरण हो गया और उन्हें प्रताड़ित किया गया। उन दिनों को याद करते हुए स्वप्निल कहते हैं, 'वे मुझे भूखा रखते थे और रोज मारते थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें समझ आया कि मैं यहां लोगों की मदद करने के लिए आया था। इसलिए उन्होंने मुझे छोड़ दिया। वहां जंगल में रहने वाले लोग मुख्यधारा से कट गए थए इसलिए मैंने स्वास्थ्य, स्वच्छता और शिक्षा जैसे कुछ बुनियादी चीजों पर काम किया।'


swapnil

लोगों के बीच में स्वप्निल तिवारी


सतपुड़ा से दिल्ली वापस आने के बाद, स्वप्निल ने 2015 में लिवमैड मूवमेट शुरू किया, जिसके एक हिस्से के रूप में उन्होंने कई सामाजिक कार्यक्रमों की शुरुआत की। उनका पहला प्रोजेक्ट महिलाओं की सुरक्षा पर था। उन्होंने 'पिंक व्हिसल प्रोजेक्ट' शुरू किया, जिसके तहत उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक सीटी शक्ति डिजाइन की। इस सीटी को कंगन के रूप में पहना जा सकता है, और किसी भी आसन्न खतरे के मामले में, एक बटन दबाने पर, यह दो इंच के चाकू में बदल जाती है।


अपनी जिंदगी में कई सारी मुश्किलों को झेलने के बावजूद स्वप्निल ने लोगों की मदद करने का काम जारी रखा। उन्होंने कई लोगों को आत्महत्या करने से रोका। इसके साथ ही वे मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ एड्स रोकने पर काम कर रहे हैं। इन्हीं कामों की वजह से उन्हें फोर्ब्स की ‘1000 World Leaders for Hope’ लिस्ट में जगह मिली। उन्हें 2018 में यूनेस्को का एम्बैस्डर भी चुना गया। उत्तर प्रदेश और ओडिशा सरकारों ने उन्हें 2018 में राज्य शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया। स्वप्निल आज कई लोगों के लिए प्रेरणा और आशा के सागर हैं।


वे कहते हैं, 'मैं अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को ऐसे जीना चाहता हूं जैसे कि वह अंतिम हो। मैं चाहता हूं कि हर कोई मुझे मेरे द्वारा साझा किए गए प्यार के लिए याद रखे। मैं चाहता हूं कि जो काम मैंने किये हैं उनका विस्तार होता रहे।