यह अमेरिकन नागरिक भारत में तैयार कर रहा हाई क्वॉलिटी डिजिटल लाइब्रेरी
इंटरनेट की खोज एक खुले प्लैटफॉर्म के तौर पर की गई थी जहां सूचनाओं और जानकारियों का एक-दूसरे तक खुले तौर पर प्रवाह हो और सभी तक इसकी पहुंच हो। एक आदर्श संसार में सूचनाओं का खुला प्रवाह होना संभव हो सकता है लेकिन असल दुनिया में अधिक मात्रा में डेटा कॉलोनाइजेशन (उपनिवेश) होने के कारण यह अभी भी एक दूर का सपना ही है।
हालांकि यहां कई लोग हैं जो इस सपने को पूरा करने में लगे हुए हैं। ऐसे ही एक शख्स कार्ल मालमुड हैं। कार्ल एक नॉन प्रॉफिट संगठन public.resource.org चला रहे हैं। साल 1980 से उन्होंने कई तरह की सूचनाएं स्वतंत्र तरीके से आम लोगों पहुंचाई हैं। इन सूचनाओं में विशेषकर सरकारी क्षेत्रों से जुड़ी हुईं सूचनाएं और जानकारियां शामिल थीं। कार्ल कहते हैं, 'मैं 80 के दशक में नेटवर्क और डेटाबेस आधारित काम कर रहा था। इस दौरान मैंने इंटरनेट के लिए विभिन्न स्टैंडर्ड बनाने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया।'
वह इंटरनेट रेडियो का भी एक जानामाना चेहरा थे और इन्होंने गैर-लाभकारी आधार पर काम किया। इंटरनेट रेडियो को जानबूझकर फ्री ऑफ कॉस्ट रखा गया था। साल 1993 में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कार्यकाल के दौरान वाइट हाउस को पहली बार इंटरनेट पर लाने का श्रेय कार्ल को ही जाता है। उन्होंने अमेरिका के कई सरकारी निकायों को अपनी जानकारी आम जनता के लिए खोलने के लिए निकायों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी। इनमें सिक्यॉरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी), आंतरिक राजस्व सेवा (आईआरएस) प्रमुख नामों में से एक है।
उन्हीं के प्रयासों की बदौलत जनता को वे सूचनाएं और जानकारियां मिलीं जिन्हें पहले जनता की पहुंच से बाहर समझा जाता था। कार्ल ने ये जानकारियां जनता को मुफ्त में उपलब्ध कराईं। लड़ाई हालांकि जैसी भी हो लेकिन कानूनी सलाह लेने के लिए कार्ल ने 2.8 मिलियन डॉलर (अब के लगभग 19.50 करोड़ रुपये) खर्च कर दिए। संतुष्टि अपने आप में मीठी होती है। जब कार्ल ने सबसे पहले SEC ऑनलाइन से इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO)को कंट्रोल करने वाले नियमों को प्रकाशित किया। तब उन्हें लाखों पेज व्यूज मिले।
कार्ल कहते हैं, 'ये बड़े सरकारी डेटाबेस थे जिन्हें मैंने आम जनता तक मुफ्त में पहुंचाने के लिए ऑनलाइन पब्लिश किए।' बाद में कार्ल ने सुरक्षा, स्वास्थ्य और निर्माण जैसे क्षेत्रों को कंट्रोल करने वाले सरकारी निकायों की सूचनाएं लोगों तक पहुंचाना शुरू किया। एक उदाहरण के तौर पर कार्ल कहते हैं कि अगर भारत में किसी को बिल्डिंग कोड लेना हो तो उसे 14,000 रुपये का भुगतान करना होगा। इसी तरह सीवेज श्रमिकों को नियंत्रित करने वाले नियम कहते हैं कि काम के दौरान यदि कोई व्यक्ति घायल हो जाता है तो उसका इलाज तुरंत किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है। ये कानून की कुछ बेहद जरूरी जानकारियां हैं जिनके बारे में आम लोग अभी भी जागरूक नहीं हैं।
अपनी इस जर्नी के दौरान कार्ल भारत की तरफ भी आकर्षित हो गए। उन्होंने भारत की कई यात्राएं कीं। कार्ल का ध्यान न केवल विभिन्न नियमों और कानूनों को लोगों के लिए ऑनलाइन करना था, बल्कि इससे बहुत आगे था। कार्ल कहते हैं, 'भारत में प्राचीन काल से ही ज्ञान को पाने और उसे प्रसारित करने की लंबी परंपरा रही है। यहां उन समस्याओं को हल करने का इतिहास रहा है जिन्हें हल करना लगभग असंभव सा लगता था।'
उन्होंने आगे कहा, 'गांधी जी ने भारत को आजाद कराने से भी अधिक काम किया। देखा जाए तो उन्होंने संसार को विघटित (डि-कॉलोनाइज) किया।' भारत में अपनी अलग-अलग यात्राओं से कार्ल ने ढेर सारी किताबें, गैजट्स और सरकारी कागजात इकठ्ठे किए। बाद में इन्हें स्कैन किया और फिर लोगों को मुफ्त में ऑनलाइन उपलब्ध करा दिया। वह कहते हैं, 'मैंने साबरमती आश्रम से इकठ्ठे किए गए गांधीजी के कामों को ऑनलाइन किया। इनमें ऑल इंडिया रेडियो (AIR) पर महात्मा गांधी की 129 ऑडियो फाइलें भी शामिल हैं।
यह पूरी प्रक्रिया काफी मेहनत वाली थी। कार्ल को किताबों और पेपर्स को इंटरनेट पर उपलब्ध कराने के लिए एचटीएमएल फॉर्मेट में बदलना था। इसके लिए उन्हें हाई क्वॉलिटी के स्कैनर का उपयोग करना पड़ा। भारत में अपनी यात्रा पर कई लोगों के साथ बातचीत के दौरान कार्ल ने देखा कि उनके जैसे कई और लोग भी हैं जो लोगों तक जानकारियां और सूचनाएं पहुंचाने का जुनून रखते हैं। वह कहते हैं, 'हमारा लक्ष्य भारत पर आधारित एक सार्वजिनक लाइब्रेरी स्थापित करना है। इसमें हम हर साल 20 से 30 लाख किताबों को डिजिटल रूप में परिवर्तित कर आम लोगों तक व्यापक रूप से पहुंचाएंगे।'
लोगों के इस समूह को सर्वेंट्स ऑफ नॉलेज कहा जाता था। इस समूह का एकमात्र उद्देश्य विभिन्न श्रेणियों की किताबों की खोज, स्कैन और उन्हें लोगों के लिए ऑनलाइन करना था।
कार्ल ने कहा, 'मुझे एक सरकारी सर्वर पर नेहरू के साथ-साथ अंबेडकर, राधाकृष्णन, राजगोपालाचारी और बाल गंगाधर तिलक जैसे लोगों के चुनिंदा काम मिले।' सर्वेंट ऑफ नॉलेज भारत में विभिन्न सामग्रियों को स्कैन करने का काम करता है। इसमें भारत के कई प्रतिष्ठित संस्थान (जैसे- भारतीय विज्ञान अकादमी, आईआईटी दिल्ली और जेसी बॉस म्यूजियम) भी इस प्रक्रिया का हिस्सा हैं।
कार्ल का मानना है कि ज्ञान के प्रसार की दिशा में प्रयास हमेशा नीचे-ऊपर का दृष्टिकोण होना चाहिए। सिर्फ़ बैंगलोर में क़रीब 450 पुस्तकों को स्कैन किया गया है। टीम ने पांच लाख़ से अधिक किताबें ऑनलाइन रखने का दावा किया और बराबर संख्या में राज्य गज़ेटर्स, 20000 वीडियो फ़ाइलों, 40000 संस्कृत की किताबें भी। कन्नड़ मलयालम, बंगाली, तेलुगु और मराठी जैसी अन्य भाषाओं की पुस्तकों को भी डिजिटलाइज किया गया है।
कार्ल कहते हैं कि विचार एकदम सरल है। हम इस डेटा को व्यापक रूप से फैलाएंगे और लोग अलग-अलग तरीके की वेबसाइट बना सकेंगे। आधारभूत नियम यह है कि संपूर्ण डिजिटलीकरण प्रक्रिया उच्च गुणवत्ता वाली हो। कार्ल का कहना है कि भारत में उन्होंने कई लोगों को देखा है जो इस काम के लिए व्यक्तिगत रूप से काफी समय देने के लिए तैयार हैं। मैंने अपने दृष्टिकोण को सरकारी संसाधनों से जानकारी को ज्ञान के रुप में प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ाया है।
इस रास्ते में उनके लिए कई बार कॉपीराइट उल्लंघन का मामला आया।
कार्ल ने साफ किया कि कभी अगर ऐसा होता कि किसी पुस्तक या किसी खास सामग्री को हटाने के लिए कोई अनुरोध करता है तो वह तुरंत इसे हटा देते हैं। उनके लिए सूचनाओं को सार्वजनिक करने का लक्ष्य एक आदर्श वाक्य के साथ आता है। 'ज्ञान की प्राप्ति एक मूलभूत अधिकार है। वैश्विक समाज में सभी समस्याओं को का समाधान सिर्फ एक ही है और वह है एक शिक्षित नागरिक।
यहां तक कि एक लोकतंत्र में शिक्षित नागरिक शासक होता है।' इंटरनेट को तेजी से विकसित और बदलते देखने वाले शख्स का अपने नॉलेज मिशन के बारे में यह कहना है, 'ओपन इंटरनेट का एक बड़ा वादा ज्ञान या नॉलेज को हर शख्स तक पहुंचाना है और मुझे पता है कि बहुत से ज्ञान को बंद कर दिया गया है।'