बच्चों के लिए स्कूल आने की वजह बनीं शिक्षिका कविता परमार
कविता की शिक्षा के तरीके अनूठे हैं. वो ना केवल पाठ्यक्रम के हिसाब से पढ़ाती हैं, बल्कि बच्चों को इस तरह से तैयार करती हैं कि जीवन के मूल्यों के साथ-साथ वे संवाद कौशल और समाज की ज़िम्मेदारी से भी परिपूर्ण हों.
मध्यप्रदेश के कालापीपल प्रखंड के बेहरवाल गाँव के जिस प्राथमिक विद्यालय में कविता परमार पढ़ाती हैं, वहां जो बच्चे पहले स्कूल नहीं आते थे आज उनके लिए स्कूल आने की वजह बन गई हैं उनकी मैम कविता.
मध्यप्रदेश, भारत का एक प्राचीन और समृद्ध राज्य है, जिसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है. यहां के गाँवों में शिक्षा की कमी होने के बावजूद, कविता एक ऐसी शिक्षिका हैं जिन्होंने अपने सामर्थ्य और संकल्प के साथ बच्चों के जीवन में एक नया आदर्श स्थापित किया है.
कविता कालापीपल के एक साधारण गाँव के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं लेकिन उनका योगदान बेहद असाधारण है. उन्होंने शिक्षा को अपना जीवन मिशन बना लिया है.
कविता की शिक्षा के तरीके अनूठे हैं. वो ना केवल पाठ्यक्रम के हिसाब से पढ़ाती हैं, बल्कि बच्चों को इस तरह से तैयार करती हैं कि जीवन के मूल्यों के साथ-साथ वे संवाद कौशल और समाज की ज़िम्मेदारी से भी परिपूर्ण हों.
कविता बताती हैं, “गतिविधि के लिए जो सामान चाहिए वो हमें आसपास के वातावरण से ही उपलब्ध हो जाता है. जैसे- पत्ते, फूल (कलर के बारे में बताने के लिए चार-पांच रंगों के फूल), कंकड़-पत्थर (इकाई दहाई की समझ के लिए) और अनाज के दाने आदि.
बहरहाल, अब पढ़ाने के तरीके बिल्कुल बदल गए हैं. ऐसा नहीं है कि कक्षा में शिक्षक गए और पढ़ाना शुरू. कविता पहले बच्चों से बातें करती हैं. नए बच्चे जब रो रहे होते हैं तो एक-दो एक्टिविटी वो कराती हैं जिससे बच्चे हंंसने लगते हैं और इसके बाद बारी आती है किताब खोलने की.
जब मिशन अंकुर की शुरुआत हुई थी तो मोटी-मोटी किताबें और शिक्षक संदर्शिका देखकर कविता घबरा गई थीं. वो सोच में पड़ गई थीं कि इतने छोटे बच्चों को इतना कैसे सिखाऊंगी? फिर FLN के पांच दिवसीय प्रशिक्षण के बाद उन्हें चीज़ें समझ आने लगीं.
मिशन अंकुर के तहत अब इतनी अच्छी-अच्छी गतिविधियों हैं कि अब बच्चे स्कूल आने को बोझ नहीं समझते हैं. ‘आई डू, वी डू और यू डू’ में बच्चों को बहुत आनंद आता है. इसके माध्यम से पहले कविता एक्टिविटी करती हैं, फिर सबको मिलकर करना होता है और उसके बाद बच्चे स्वयं करते हैं.
कविता का सबसे बड़ा गुण है उनकी जज्बा. वो रात-रातभर जागकर टीएलएम तैयार करती हैं ताकि उनके छात्रों के पास सीखने का सबसे अच्छा साधन हो. उनकी मेहनत और समर्पण को देखकर उनके छात्र भी अपने जीवन को सफलता की ओर बढ़ाते हैं.
कक्षा 2 की छात्रा वैष्णवी मीणा बताती हैं, “हमें ऐसा नहीं लगता कि हम स्कूल में आए हैं. मैम हमें खेल-खेल में पढ़ाती हैं. पहले कभी-कभी स्कूल आने का मन नहीं करता था मगर अब ऐसा लगता है स्कूल में कभी छुट्टी ही ना हो.”
वैष्णवी की माँ मोनिका मीणा कहती हैं, “घर पर जब हम वैष्णवी से कुछ पूछते हैं तो तुरन्त जवाब दे देती है. मैं आगे चलकर अपनी बेटी को डॉक्टर बनाना चाहती हूं.”
जब कविता पहली बार स्कूल आई थीं, तो बच्चों में झिझक थी कि पता नहीं मैडम कैसी होंगी लेकिन वे धीरे-धीरे उनके साथ गहरा रिश्ता बनाने लगे. कविता मैम ने उनका विश्वास जीता, उनकी समझ में बदलाव लाया और उनके सीखने के सफर को रोमांचक और रोचक बना दिया.
जो बच्चे स्कूल नहीं आते थे, उनके लिए कविता मैम प्रेरणा बनीं. वे अब ना केवल अच्छे छात्र बन गए हैं, बल्कि उन्होंने अपने जीवन के लक्ष्यों को पहचाना है और उन्हें पूरा करने का संकल्प लिया.
कविता परमार एक ऐसी शिक्षिका हैं जिनके प्रति उनके छात्र बहुत गर्व महसूस करते हैं. कविता ने साबित किया है कि गाँवों में भी शिक्षा का स्तर ऊंचा हो सकता है. वो एक आदर्श हैं, जो इस बात को बल देती है कि जहां इच्छा और संकल्प होता है, वहां शिक्षा का मार्ग बन सकता है, चाहे वो गाँव ही क्यों ना हो.