कैसे बेंगलुरु की आवागमन समस्या को हल कर रहा है हासन का एक लड़का
बाउंस के सह-संस्थापक और सीटीओ वरुण अग्नि (Varun Agni) जब बड़े हो रहे थे तो उन्हें वास्तव में नहीं पता था कि आईआईटी जैसे प्रमुख संस्थानों पढ़ने का अपना ही एक रुतबा सा होता है। बेंगलुरु से लगभग 100 किलोमीटर दूर कर्नाटक के एक छोटे से कस्बे हासन से आने वाले वरुण को बस एक ही बात पता थी - कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी है और कंप्यूटर के साथ कुछ न कुछ करना है।
वे बताते हैं,
“कंप्यूटर में कुछ तो सुंदर बात है। आप उससे लगातार उस 'क्यों का जवाब पूछ सकते हैं? और तब तक गहराई में जा सकते हैं जब तक कि आप यह नहीं समझ जाते कि वह (कंप्यूटर) कैसे व्यवहार करता है। आप इससे जान सकते हैं कि एक सिलिकॉन एटॉम और फॉस्फोरस एटॉम क्या इंट्रैक्ट करते हैं और क्या ट्रांजिस्टर बनाते हैं। इस तरह की लर्निंग किसी लत की तरह होती है।"
हार्डवेयर और इंजीनियरिंग के लिए इस प्यार ने आखिरकार वरुण को अपने स्टार्टअप बाउंस (Bounce) के लिए बाइक और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) डिवाइस को जीरे से बनाने के लिए प्रेरित किया। आज भी, वह बाउंस को इंडियन कंडीशन और प्रॉबल्म्स को दूर करने के लिहाज से सिस्टम के निर्माण के लिए R & D लैब को बारीकी से चलाते हैं।
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का सही मिश्रण
कंप्यूटर के लिए वरुण का प्यार 2000 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ जब उन्होंने ग्यारहवीं कक्षा में हिंदी सिनेमा पर एक काम-चलाऊ ग्राफिक्स वेबसाइट का निर्माण किया। वे बताते हैं,
“जब मुझे वेबसाइट बनाना काफी पसंद था और काफी एंजॉय भी किया, तो जो अगली चीज मुझे ज्यादा पसंद थी, वह थी इलेक्ट्रॉनिक्स। इसलिए, मैं थोड़ा आगे बढ़ा और एक कंप्यूटर का निर्माण किया, और यह समझने की कोशिश की कि क्या कॉम्बिनेशन काम करते हैं। मैंने फील्ड प्रोग्रामेबल गेट ऐरे (FPGAs- Field Programmable Gate Array) के साथ प्रयोग किया।"
वह कहते हैं कि बिल्कुल जीरो से एक प्रोसेसर का निर्माण करना और वो भी ऐसा बनाना 'जैसा आप चाहते थे' काफी रोमांचक था। वरुण की इस सफलता ने उन्हें बैचलर करने के लिए आर. वी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बेंगलुरु में जाने के लिए प्रेरित किया। वे और ज्यादा एक्सप्लोर करना चाहते थे, इसलिए वे बाद में यूएस की मैरीलैंड युनिवर्सिटी से टेलीकम्युनिकेशन्स में मास्टर करने के लिए गए। वरुण कहते हैं कि कम्युनिकेशन की अविश्वसनीयता ने उन्हें हमेशा परेशान किया। वह बताते हैं कि सुंदरता ऐसे सवालों में निहित होती है जैसे- आप उन चीजों को कैसे करते हैं जिनमें बहुत अधिक फायर पावर के बिना छोटे प्रोसेसर होते हैं?
वे बताते हैं, “मैंने ZigBee प्रोटोकॉल पर काम किया, जो एक लो एनर्जी प्रोटोकॉल है, जो छोटे प्रोसेस कंट्रोलर को जोड़ने पर काम करता है। यह आपको एक मेश नेटवर्क में जानकारी भेजने की अनुमति देता है। यह एक ऐड-हॉक मेश नेटवर्क है। सूचना प्रसारण और मल्टीकास्ट के माध्यम से प्रचारित होती है, नेटवर्क में प्रत्येक अलग-अलग नोड इसे पिक करते हैं और इसे अगले नोड के लिए फॉरवर्ड करते हैं, और अंत में आपके पास गेटवे होता है, जो इंटरनेट से जुड़ होता है। इसका उपयोग यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि ब्रिज काम कैसे कर रहे हैं। ब्रिज सलामती की निगरानी के लिए आप इसका उपयोग कैसे करते हैं?" यह फिर से एक हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर मिक्स है जो वास्तविक दुनिया में प्रभाव ला सकता है।"
वह कहते हैं कि बाउंस उनकी यह देखने की जिज्ञासा के बिना संभव नहीं था कि हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर वास्तविक दुनिया में क्या प्रभाव ला सकते हैं। सहयोग के साथ समस्याओं को हल करने में भी वरुण एक मजबूत विश्वास रखते हैं। वे बताते हैं,
“इसे भारत बनाम अमेरिकी की तरह देखिए कि वहां इसे कैसे देखा जाता है। वहां, इसका काम क्लासरूम के साथ बहुत कम और इंडस्ट्री के साथ कुछ ज्यादा है। यह कोलैबोरेशन मेरे सबसे बड़े takeaways में से एक था।”
रीइन्वेंटिंग द व्हील
2013 में वरुण के अंदर उद्यमी बनने की जिज्ञासा तब जगी जब वह डायमेंशन डेटा में एक नेटवर्क आर्किटेक्ट के रूप में काम कर रहे थे। हालाँकि वह सिलिकॉन वैली में स्टार्टअप शुरू कर सकते थे, लेकिन इसके बजाय उन्होंने भारत वापस जाने का फैसला किया।
वे बताते हैं,
“यहां कि समस्याएं और उनके लिए आप क्या सलूशन बना सकते हैं वे बिल्कुल अलग और यूनीक हैं। भारत में एक बड़ा अवसर है यदि आप भारत केंद्रित समस्याओं पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। सपोर्ट स्ट्रक्चर विकसित हो रहा है। भारत में भी अद्भुत प्रतिभा और पारिस्थितिकी तंत्र है।”
इस समय के दौरान, वह अपने बचपन के दोस्त, विवेकानंद एचआर और उनके दोस्त अनिल जी के साथ जुड़े। तीनों ने अलग-अलग आइडिया और सलूशन पर विचार करना शुरू कर दिया। उनकी पहली पसंद एक अकाउंटिंग ऐप थी। लेकिन जब उन्होंने अपनी रॉयल एनफील्ड पाने के लिए अनिल को लगभग 90 दिनों तक इंतजार करते देखा, तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि क्या वे इसके बारे में कुछ कर सकते हैं। इसने स्टार्टअप को मोटरसाइकिल रेंटल प्लेटफॉर्म बनाने के लिए प्रेरित किया। और इस तरह से Wicked Ride 2014 में पैदा हुई थी। यह 2016 तक चली जब बेंगलुरु में यातायात की स्थिति और खराब हो गई। अंततः मेट्रोबाइक्स का जन्म हुआ जिसे अब बाउंस के नाम से जाना जाता है। बाउंस बेंगलुरु स्थित लास्ट मील मोबिलिटी स्टार्टअप है। स्टार्टअप वर्तमान में अपने डॉकलेस स्कूटरों को बेंगलुरु और हैदराबाद में ऑपरेट करता है। इसके पास बेंगलुरु में 13,000 और हैदराबाद में 2,000 से अधिक व्हीकल्स हैं। यात्रियों के लिए बाउंस डॉक्ड स्कूटर रेंटल सर्विस 35 शहरों में उपलब्ध है। टीम का दावा है कि अब तक 16 मिलियन से अधिक राइड की जा चुकी हैं।
वरुण याद करते हैं, "2016 में, किसी भी लोकेशन पर किसी व्हीकल के मौजूद होने के लिए इतना ज्यादा इंटेलीजेंस मौजूद नहीं थी। दरअसल यह डॉक्ड साइकिल शेयरिंग (docked cycle sharing) थी जो वायर्ड इंटरनेट पर चल रहा था, और हब और डिमांड सेंटर में स्थापित करने के लिए डॉक्स की आवश्यकता थी। हालांकि यह आपको सीमित कर सकता है, लेकिन थैंक्स टू रियल इस्टेट, कैपिटल, इंफ्रास्ट्रक्चर और यहां तक कि एग्जीक्यूशन की स्पीड कि अब हम इससे आगे बढ़ चुके हैं। हमने समस्या को हल करने के लिए IoT का उपयोग करने का अवसर देखा।"
IoT ने स्टार्टअप को इंटेलीजेंस को डॉक से बाइक में मूव करने में मदद की।
देर रात तक काम करना
चुनौती एक स्थायी तकनीकी समाधान बनाने की थी। वरुन कहते हैं,
“आइडिया माइक्रोकंट्रोलर और विभिन्न लॉग पर काम करना रहा है। और 2016 में, बहुत सारी नेटवर्क प्रॉबलम्स थीं, और आपको यह पता लगाने की जरूरत थी कि बाइक के IoT पर खपत को कैसे कम किया जाए और कैसे इसे मैनेज किया जाए।”
टीम ने बाइक को आत्मनिर्भर बनाने का फैसला किया ताकि यूजर्स अपने क्षेत्रों के करीब बाइक का उपयोग कर सकें।
इसके लिए, उन्हें चाबी रहित समाधानों का निर्माण करना पड़ा क्योंकि एक चाबी को जोड़ने का मतलब था अधिक रिसोर्सेस को लगाना। बाइक में समान IoT डिवाइस टीम को वाहनों को ट्रैक करने में भी मदद करता है। और एक यूजर्स ऐप का उपयोग करके बाइक को अनलॉक कर सकता है। लेकिन कई चुनौतियां भी थीं।
मई 2018 में टीम को सबसे खराब समय का सामना करना पड़ा जब 100 से अधिक बाइक पायलट के लिए तैयार थीं। लेकिन, अगले दिन, 70 बाइकों की बैटरी नहीं थी। और उन्हें ड्रॉइंग बोर्ड में वापस जाना पड़ा। IoT डिवाइस की बैटरी जो अधिक कुशल और मजबूत होने के लिए आवश्यक बाइक को लॉक और अनलॉक करती है। इसलिए, उन्होंने इसे बेहतर बनाने के लिए विभिन्न पहलुओं जैसे हीट, मूवमेंट, ट्रैवल टाइम और अन्य डिटेल को फैक्टरिंग करना शुरू कर दिया।
वे कहते हैं,
“हमने काम किया और यूजर्स के लिए इसे सुविधाजनक भी बनाया। वे जहां चाहें वाहन पिक और और ड्रॉप कर सकते थे। ऐप ने उन्हें वाहन की कंडीशन के बारे में भी जानकारी दी। और हमने बाइक डिवाइस से वो डेटा हासिल किया- उसकी लोकेशन, फ्यूल लेवल और हेल्थ और मेंटेनेंस।"
बाइक-शेयरिंग प्लेटफॉर्म बाउंस ने अब तक 207.7 मिलियन डॉलर जुटाए हैं और इसकी वैल्यू 520 मिलियन डॉलर है। वर्तमान में, स्टार्टअप एक दिन में 120,000 राइड करने का दावा करता है। शुरुआती दिनों में, वरुण लगातार 48 घंटे काम करते थे। हालांकि अब जब वे कम घंटे काम करते हैं, वह अभी भी छोटी डिटेल को लेकर पैशनेट रहते हैं।
वरुण कहते हैं,
"सीटीओ या नहीं सीटीओ - आपको फिर भी हैंडसम होने की जरूरत है, आपको अपने हाथों को गंदा करने की जरूरत है, नई चीजों को आजमाएँ और काम करते रहें, और मुझे लगता है कि यही सबसे अच्छा तरीका है कि लोग आपके फॉलो करें।"
आज, वरुण बाउंस के लिए नई टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट पर केंद्रित हैं। वह कहते हैं,
''हम कम्यूट को सहज और आसान बनाने के अलग-अलग तरीके खोज रहे हैं - हमारे और उपभोक्ता दोनों के लिए।''
सभी टेकी के लिए वरुण कहते हैं,
"मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि आप किस भाषा को जानते हैं या कागजों में आपके पास कितना कौशल है। टेस्ट यह है कि आप उस कौशलों के साथ कर क्या सकते हैं। 'क्यों' हमेशा महत्वपूर्ण होता है यह पूछते रहें कि क्यों? प्रत्येक स्तर पर गहराई तक जाते रहें, और आप कुछ नया खोजेंगे, और ऐसा समाधान खोजेंगे जो किसी और के पास न हो।”