जानिए वास्तु के उन चार घटकों के बारे में जिनसे वास्तुऊर्जा हमें प्रभावित करती हैं
वास्तु एक विस्तृत विषय है जिसके अनेक भाग हैं। वास्तु उर्जा एक सूक्ष्म उर्जा है जो हमारे अवचेतन के द्वारा हमारे जीवन के सभी पहलूओं को प्रभावित करती है। जब वास्तु उर्जाएं सकारात्मक होती हैं तो वे हमारे जीवन में प्रगति, पूर्ती और सम्रद्धि लाती हैं और जब ये उर्जाएं नकारात्मक होती है तो जीवन में बाधाएं, रुकाव और निराशा लाती हैं। वास्तु के बारे में ये भ्रान्ति है कि सिर्फ कुछ टोटके करने से, कोई मूर्ति लगाने से, दरवाजे के उपर कोई शीशा लगाने से वास्तु का निवारण हो जाता है। यह बिलकुल गलत है और वास्तु विज्ञान इन शोर्ट-कट्स से कहीं ज्यादा गहरा है
वास्तु उर्जाओं के चार घटक हैं जो इसे मूर्त रूप देते हैं। इनमें सर्वप्रथम है प्राणउर्जा जो हमारे घर या आसपास के वातावरण के कारण हम तक पहुँचती है। यह एक प्राकृतिक उर्जा है। जिस इमारत में हम रह रहे हैं या जिसमें बैठ कर काम कर रहे हैं, उस इमारत के चारो और की ज़मीन, उसकी गुणवत्ता, उसमे उतार-चढ़ाव, पानी का स्तोत्र एवं उसकी दिशा, आसपास की इमारतों की ऊँचाई, मार्ग वेध और घर के आसपास चिकित्षालय, मंदिर आदि अनेक पैरामीटर पर निर्भर करती है।
इसके अलावा जमीन से निकलने वाली उर्जाएं जिनको हम जियोपथिक उर्जाएं कहते है उनकी गुणवत्ता पर भी निर्भर करती है। घर के मुख्यद्वार के सामने बिजली का खम्बा, ट्रांसफार्मर या मोबाइल टावर भी इन प्राणउर्जा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। हमारे आसपास से आने वाली प्राण उर्जा मुख्य प्रवेश द्वार से हमारे घर में प्रवेश करती है और वास्तुविज्ञान में इसका महत्व 70 प्रतिशत के करीब है।
वास्तु का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग है भवन जिसमें हम रहते या कार्य करते हैं। भवन का महत्व वातावरण से आने वाली प्राणउर्जा को संगृहीत और वितिरित करना है। भवन का आँगन, कोर्टयार्ड या बालकनी क्या सही दिशा में है जिससे इस प्राणउर्जा को सफल रूप से संग्रहण किया जा सके? क्या भवन की आंतरिक रचना इस वास्तु उर्जा को पूरे भवन में वितरण में सहायक है या बाधित कर रही है ये देखना आवश्यक है।
बेसमेंट में ये उर्जा पूर्ण रूप से नहीं पहुँच पाती है इसलिए वास्तु में ये माना गया है कि वहाँ पर कोई व्यावसायिक या महत्वपूर्ण कार्य नहीं करने चाहिए। दुसरे शब्दों में भवन एक प्रकार का पात्र है और उसकी संरचना इस प्रकार होनी चाहिए कि वो अधिक से अधिक प्रकृति से आने वाली प्राण उर्जा का संग्रहण कर सके और भवन में रहने वालों को लाभान्वित कर सके।
वास्तु का तीसरा घटक है उस भवन में रहने वाले लोग। एक भवन का वास्तु एक ही समय पर उसमें रहने वाले मनुष्यों पर अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है क्योंकि हम सबका भाग्य अलग है और इसलिए सबको अलग-अलग उर्जा की आवश्यकता है। जब हम एक प्रकार की उर्जा से संरेखित होते हैं तब हम अपने छुपे हुई प्रतिभा को सक्रिय कर पाते हैं। कई बार हम उस उर्जा से अलाइन हो जाते हैं जिससे हमारी प्रतिभा निष्क्रिय हो जाती हैं।
वास्तु में एक और भ्रान्ति है कि उत्तर-पूर्व की दिशा सबके लिए उत्तम है। भवन का वास्तु मानव की ऊर्जा से जुडा है इसलिए सबके लिए एक ही उर्जा फलदायक नहीं होती। किसी के लिए उत्तर-पूर्व तो किसी के लिए पश्चिम, या दक्षिण दिशा फलदायक होती है। इसको समझना और इस हिसाब से भवन का चयन और निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है। किसी भवन के वास्तु-अध्ययन में यह समझना कि उसके रहने वालों को क्या समस्याएँ हैं और क्या अरमान हैं इसलिए जरूरी है।
वास्तु का चौथा घटक है समय। हर मनुष्य का भाग्य अलग-अलग समय पर अलग होता है। जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं।इस पहलू को समझने के लिए एक वास्तु कंसलटेंट को ज्योतिष का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। ज्योतिषीय उर्जा भी मनुष्य को वास्तु उर्जा के साथ साथ प्रभावित करती हैं। इन दोनों विधाओं का समावेश वास्तु उपाय को व्यक्तिगत बनाता है। ज्योतिष में महादशा और अन्तर्दशा का अध्ययन संभावित परिस्थितियों का आगाह करता है और सही वास्तु उपाय करने में साहयक होता है।
कई बार समय सही होंने पर वास्तु दोष का भी प्रभाव नहीं पड़ता पर जैसे ही महादशा बदलती है वास्तु दोषों का दुष्प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है और हम अचंभित होते हैं कि इसी घर में या ऑफिस में इतने सालों तक सफलता की सीढियां चढ़ते रहे फिर अचानक ये क्या हो गया। हमने तो घर में कोई बदलाव नहीं किया फिर वास्तु दोष कैसे सक्रीय हो गए?
वास्तु यन्त्र, टोटके, मूर्ति और प्रतीक से कहीं ज्यादा गहरा विषय है और हर भवन अलग होता है, उसकी उर्जायें अलग होती है, उसके वास्तु उपाय भी अलग होते हैं। इसलिए भवन का वास्तु उपाय करने से पहले ये जानना कि हमारी क्या इच्छाएं हैं और क्या समस्याएं हैं आवश्यक है क्यूंकि यही वास्तु उपाय का आधार है।