सेवा क्षेत्र भी आ सकता है होलसेल प्राइस इंडेक्स के दायरे में, सरकार ने शुरू कर दी कवायद
सरकार पहली बार अर्थव्यवस्था के लगभग 60% में, मूल्य व्यवहार को शामिल करने के लिए नई सीरीज को अंतिम रूप दे रही है.
सरकार थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index or WPI) के तहत सेवा क्षेत्र (Service Sector) के प्राइस मूवमेंट को भी कवर करना चाहती है. इसके पीछे वजह है कि सरकार पहली बार अर्थव्यवस्था के लगभग 60% में, मूल्य व्यवहार को शामिल करने के लिए नई सीरीज को अंतिम रूप दे रही है. यह बात टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में कही गई है. वर्तमान में खुदरा मुद्रास्फीति (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) में सेवा क्षेत्रों के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, सिलाई व लॉन्ड्री, परिवहन, संचार, मनोरंजन सेवाओं पर डेटा शामिल किया जाता है. इसके अलावा क्लीनर, घरेलू मदद और घर के किराए जैसी सेवाओं के उपयोग को भी शामिल किया जाता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटर्नल ट्रेड (DPIIT) के एक सुझाव के बाद, WPI के संशोधन पर कार्य समूह वर्तमान में इस मामले पर विस्तार से विचार कर रहा है. इस कार्य समूह की अध्यक्षता नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद कर रहे हैं.
लग सकता है समय
चंद का मानना है कि सेवाओं को WPI में शामिल किया जाना चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि कार्य समूह के कुछ सदस्यों का कहना है कि सेवा मूल्य मुद्रास्फीति सूचकांक विकसित करने में समय लग सकता है क्योंकि कई क्षेत्रों के लिए विश्वसनीय डेटा प्राप्त करना कठिन है. वित्तीय सेवाओं और संचार के लिए डेटा प्राप्त करना आसान है, लेकिन ऐसी कई अन्य सेवाओं के लिए एक इंडेक्स बनाने में समय लगेगा जो इतनी व्यवस्थित नहीं हैं. लेकिन इस दिशा में काम किया जा रहा है. इसके अलावा, अर्थशास्त्री यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि तकनीकी परिवर्तन का प्रभाव कैसे होगा, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी से संबंधित क्षेत्रों में जैसा कि फिनटेक और यहां तक कि संचार जैसे क्षेत्रों के मामले में हुआ है.
महंगाई, GDP के लिए बेस ईयर संशोधित करना चाहती है सरकार
सरकार थोक और खुदरा मुद्रास्फीति के साथ-साथ जीडीपी और अन्य प्रमुख आर्थिक सूचकांकों के लिए बेस ईयर को संशोधित करने की मांग कर रही है, जो अभी 2011-12 है. योजना 2017-18 को बेस ईयर बनाने की थी, लेकिन ऐसे कई अर्थशास्त्री हैं जो अधिक ताजा बेस ईयर के लिए तर्क देते हैं. साथ ही यह मान्यता भी है कि 2017-18 को बेस ईयर नहीं बनाने से संशोधन में देरी होगी क्योंकि 2019-20 में आर्थिक मंदी थी और फिर अगले दो साल कोविड महामारी की भेंट चढ़ गए. उस स्थिति में, बेस ईयर को बदलकर 2022-23 करने की आवश्यकता होगी, लेकिन इसका मतलब होगा कुछ और वर्षों तक प्रतीक्षा करना. पहले से ही पिछले एक दशक में खपत के पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव आया है.
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Edited by Ritika Singh