55 साल पहले आज ही के दिन हुआ था दुनिया का पहला हार्ट ट्रांसप्लांट
आज ही के दिन हुआ था दुनिया का पहला हार्ट ट्रांसप्लांट, जिसकी सफलता पर किसी को यकीन नहीं था, सिवा डॉ. बर्नार्ड के
1967 का साल था. तारीख 3 दिसंबर की रात. सुबह के तकरीबन 3 बज रहे थे. डॉ. क्रिश्चियन बर्नार्ड अपनी टीम के साथ केपटाउन के ग्रूट शहर हॉस्पिटल में ऑपरेशन थिएटर में टेबल पर झुके इस सदी का और तब तक मानव इतिहास का सबसे अनूठा ऑपरेशन करने में व्यस्त थे.
इस ऑपरेशन में उनके साथ तकरीबन 30 लोगों की टीम काम कर रही थी. ऑपरेशन पांच घंटे चला. पांच घंटे बाद जब डॉक्टर बर्नार्ड ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकले तो उनके चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी, जो उस वक्त किसी कैमरे में कैद नहीं की जा सकी. लेकिन जिसकी कहानी उनके साथी डॉक्टरों ने अनेकों बार याद की और सुनाई.
26 साल की एक महिला डेनिज डारवल की एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. डॉ. बर्नार्ड ने मरती हुए डेनिस का दिल निकाला और उसे एक 54 साल के लुईस वॉशकेन्स्की के शरीर में लगा दिया. लुईस जो अब तक खुद मरने की कगार पर थे. दुनिया से जा चुकी डेनिज का दिल अब लुईस के भीतर धड़क रहा था.
यह दुनिया का पहला सफल हार्ट ट्रांसप्लांट था. मेडिकल साइंस के इतिहास में हुई ऐसी क्रांति, जिसने आने वाले सालों में पूरी दुनिया में तकरीबन 2 लाख लोगों की जान बचाई. इस ऑपरेशन की सफलता को लेकर कोई आशान्वित नहीं था, सिवा डॉक्टर बर्नार्ड के.
लुईस वॉशकेन्स्की 54 साल के थे और लंबे समय से डायबिटीज के मरीज थे. लंबे समय तक शरीर में बढ़ी हुई शुगर ने दिल को इतना नुकसान पहुंचाया था कि अब उनका हृदय पूरी तरह बेकार हो चुका था. लुईस अस्पताल के बिस्तर पर पड़े बस आखिरी दिन गिन रहे थे.
डॉक्टर बर्नार्ड को यकीन था कि एक इंसान का दिल दूसरे इंसान के शरीर में लगाया जा सकता है. जबकि उनके साथ के बाकी लोगों को इस बात का यकीन नहीं था. जब डॉक्टर बर्नार्ड ने लुईस की पत्नी और परिवार वालों से कहा कि उनके बचने के 80 फीसदी चांस हैं तो बाकी लोगों ने इस दावे को झूठा और गुमराह करने वाला बताया.
उस प्रकरण के बारे में डॉ. बर्नार्ड ने लिखा था, “एक मरते हुए इंसान के लिए ऐसा मुश्किल फैसला लेना बहुत मुश्किल नहीं होता. उसे पता है कि वो वैसे भी मरने वाला है. अगर नदी किनारे शेर आपका पीछा कर रहा हो तो आप नदी में कूद जाएंगे, भले वह नदी मगरमच्छों से क्यों न भरी हो क्योंकि आपको कहीं न कहीं ये यकीन, ये उम्मीद चाहिए कि आप नदी को पार कर पाएंगे.” फिलहाल लुईस और उसके परिवार ने इस ऑपरेशन के लिए हामी भर दी थी.
डेनिज का एक्सीडेंट इस ऑपरेशन के एक दिन पहले 2 दिसंबर को हुआ था. वो केपटाउन की सड़क पर साइकिल से जा रही थी और पीछे से आ रहे तेज रफ्तार ट्रक ने उसे टक्कर मार दी. अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने बताया कि डेनिज की मौके पर ही मौत हो चुकी थी.
डेनिज का हार्ट लेने से पहले उसके परिवार की अनुमति जरूरी थी. डॉ. बर्नार्ड ने डेनिज के पिता से बात की. वह समय दूसरा था. कोई नहीं जानता था कि हार्ट ट्रांसप्लांट जैसी कोई चीज मुमकिन है और जिंदगी बचा सकती है. डेनिज के पिता सिर्फ इतना जानते थे कि एक साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट के लिए उनकी बेटी का दिल मांगा जा रहा है. लेकिन उस दुख की घड़ी में भी वो राजी हो गए.
जिस दिन ऑपरेशन किया जाना था, डॉ. बर्नार्ड ने कुछ घंटे अपने घर पर आराम किया. वो आराम करते हुए अपना सबसे पसंदीदा संगीत सुनते रहे. उसके बाद वो अस्पताल पहुंचे. ऑपरेशन की सारी तैयारियां हो चुकी थीं. यह ऐतिहासिक ऑपरेशन तकरीबन पांच घंटे चला. ऑपरेशन पूरा होने के बाद वो कुछ देर वहां बिल्कुल शांत खड़े रहे. फिर कुछ दूर हटे, चेहरे से मास्क हटाया और कहा, “इट वर्क्स.” (यह काम कर रहा है.)
लुईस का ऑपरेशन सफल रहा, लेकिन जिंदगी फिर भी बहुत लंबी नहीं हुई. 18 दिन बाद न्यूमोनिया से लुईस की मृत्यु हो गई. लेकिन इस ऑपरेशन ने मेडिकल साइंस को नई उम्मीद दे दी थी. अब ऑगर्न फेल होने की स्थिति में दूसरे शरीर से ऑर्गन ट्रांसप्लांट कर रोगी की जान बचाई जा सकती थी.
आने वाले सालों में हार्ट ट्रांसप्लांट मेडिसिन की सबसे क्रांतिकारी खोज साबित हुआ. धीरे-धीरे ट्रांसप्लांट की यह प्रक्रिया सिर्फ हार्ट ट्रांसप्लांट तक ही सीमित नहीं रही. किडनी, लिवर आदि क्रिटिकल अंगों का भी ट्रांसप्लांट किया जाने लगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल तकरीबन साढ़े तीन हजार हार्ट ट्रांसप्लांट होते हैं, जिसमें से आधे अकेले अमेरिका में होते हैं.
हाल ही में स्पेन में मानव इतिहास का पहला इंटेस्टाइन (आंत) ट्रांसप्लांट हुआ है. जिस बात का यकीन आज से 55 साल पहले सिर्फ डॉ. बर्नार्ड को था, आज हर कोई उस पर यकीन करता है. एक व्यक्ति की विज्ञान के प्रति निष्ठा और विश्वास ने मानव इतिहास की कहानी बदल दी.