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नटराज और अप्सरा पेंसिल की कहानी, 65 वर्ष पहले 3 दोस्तों ने किया था शुरू

हिंदुस्तान पेंसिल्स का दावा है कि वह प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना पेंसिल बनाती है.

नटराज और अप्सरा पेंसिल की कहानी, 65 वर्ष पहले 3 दोस्तों ने किया था शुरू

Sunday March 19, 2023 , 5 min Read

पेंसिल...स्कूल की यादों का एक अहम हिस्सा. जब भी पेंसिल की बात चलती है तो सबसे पहले कौन सा नाम जेहन में आता है? हम में से ज्यादातर का जवाब होगा नटराज (Nataraj) और अप्सरा (Apsara). और हो भी क्यों न इन दोनों ब्रांड्स का भारत के पेंसिल मार्केट पर दबदबा जो रहा. लाल और काले रंग की ये पेंसिल हर बच्चे के स्कूल बैग में रहा करती थीं. इन दोनों ब्रांड्स की मालिक है मुंबई बेस्ड 'हिंदुस्तान पेसिंल्स प्राइवेट लिमिटेड' (Hindustan Pencils Pvt. Ltd.). इस कंपनी को 65 वर्ष पहले साल 1958 में शुरू किया गया था.

हिंदुस्तान पेंसिल्स भारत की सबसे बड़ी पेंसिल मैन्युफैक्चरर है. भारत में बिक्री के साथ-साथ कंपनी के प्रॉडक्ट दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट होते हैं. आइए जानते हैं आज इस कंपनी की कहानी...

भारत में था विदेशी पेंसिलों का दबदबा

भारत में ब्रिटिश शासन काल में और आजादी के कुछ सालों बाद तक भी सुई से लेकर रेल तक विदेश से बनकर आते थे. आयातित सामान में पेंसिल भी शामिल थी. ऐसा नहीं था कि देश में आजादी से पहले पेंसिल बनाने का नहीं सोचा गया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विदेश से सप्लाई थम गई और ऐसे में देश के अंदर कुछ कारोबारियों ने पेंसिल बनाने का फैसला किया. लेकिन देसी पेंसिल में वह क्वालिटी नहीं थी, जो आयातित पेंसिल में थी. द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद विदेश से सप्लाई एक बार फिर शुरू हो गई और देश में बनीं पेंसिल मात खाने लगीं.

जब देश आजाद हुआ तो कुछ वर्षों बाद पेंसिल निर्माताओं की गुहार पर सरकार ने पेंसिल के आयात पर कुछ प्रतिबंध लगाए. मकसद था कि घरेलू मैन्युफैक्चरर्स ग्रो कर सकें. लेकिन मुश्किलें इतनी जल्द हल नहीं होने वाली थीं. देसी पेंसिलों से कंज्यूमर संतुष्ट नहीं थे. ये पेंसिल, विदेशी पेंसिलों के मुकाबले कमजोर थीं और महंगी भी.

फिर हिंदुस्तान पेंसिल्स हुई शुरू

साल 1958 में बीजे सांघवी (जिन्हें बाबूभाई बुलाया जाता था), रामनाथ मेहरा और सूकानी नाम के तीन दोस्तों ने हिंदुस्तान पेंसिल्स नाम की कंपनी शुरू की. इस बिजनेस के गुर सीखने के लिए तीनों दोस्त जर्मनी होकर आए थे. कंपनी का पहला प्रॉडक्ट नटराज पेंसिल था. क्वालिटी अच्छी थी और पेंसिल का दाम भी ठीक था. धीरे-धीरे ये पेंसिल लोगों को पसंद आने लगी और फिर इतनी पॉपुलर हो गई कि पेंसिल के मायने ही नटराज समझे जाने लगे. आगे चलकर कंपनी ने बाकी स्टेशनरी को भी अपने पोर्टफोलियो में जोड़ा.

1970 के दशक में लॉन्च हुई अप्सरा

साल 1970 के दशक में कंपनी ने अप्सरा पेंसिल लॉन्च की. यह नटराज से थोड़ी महंगी थी. इसे प्रीमियम स्टेशनरी ब्रांड के तौर पर उतारा गया और इस ब्रांड के तहत पहला प्रॉडक्ट ड्रॉइंग पेंसिल के रूप में लाया गया. 1990 के दशक में अप्सरा ब्रांड के तहत राइटिंग पेंसिल और अन्य स्टेशनरी प्रॉडक्ट लॉन्च किए गए. एक ओर जहां नटराज की ब्रांडिंग लंबी चलने वाली पेंसिल के तौर पर की गई, वहीं अप्सरा को सुंदर और ज्यादा साफ हैंडराइटिंग जनरेट करने वाली पेंसिल के तौर पर स्थापित किया जाने लगा. नटराज और अप्सरा के साथ अपनी ड्युअल ब्रांड स्ट्रैटेजी की मदद से हिंदुस्तान पेंसिल्स ने सभी सेगमेंट को कवर कर लिया.

कंपनी ने साल 2007 में नटराज पेन्स की मैन्युफैक्चरिंग शुरू की. आज हिंदुस्तान पेंसिल्स, नटराज ब्रांडनेम के अंतर्गत पेंसिल के साथ-साथ इरेजर, शार्पनर, स्केल्स, मैकेनिकल पेंसिल्स, मैथामेटिकल इंस्ट्रूमेंट्स, कलर पेंसिल्स, कटर और किट बनाती व बेचती है. वहीं अप्सरा ब्रांडनेम के साथ पेंसिल, इरेजर, शार्पनर, स्केल्स, प्रोफेशनल पेंसिल्स, इंस्ट्रूमेंट सेट्स, चॉक, किट्स, कलर पेंसिल्स, आर्ट मैटेरियल्स और पेन बनाती व बेचती है.

रोजाना कितना उत्पादन

कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक, मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में रोज 85 लाख पेंसिल, 17 लाख शार्पनर, 27 लाख इरेजर, 3 लाख स्केल और 10 ​लाख पेन बनते हैं. कंपनी की 10 फैक्ट्रियां हैं, जो भारत में 5 जगहों पर हैं. त्रुटिहीन क्वालिटी स्टैंडर्ड्स को सुनिश्चित करने के लिए हर छोटे कंपोनेंट जैसे पेंसिल लैकर, शार्पनर ब्लेड, स्क्रू, पेन के टिप आदि की इन-हाउस मैन्युफैक्चरिंग सुनिश्चित की गई है. वर्तमान में हिंदुस्तान पेंसिल्स का नियंत्रण सांघवी परिवार के पास है. हिंदुस्तान पेंसिल्स के कॉम्पिटिटर्स में कैमलिन और डोम्स शामिल हैं.

the-story-of-nataraj-pencils-apsara-pencils-by-hindustan-pencils-pvt-ltd-old-brands-of-india-brands-saga

पर्यावरण के प्रति भी जिम्मेदार

हिंदुस्तान पेंसिल्स का दावा है कि वह प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना पेंसिल बनाती है. कंपनी की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, वह पेंसिल बनाने के लिए जंगल की लकड़ी का उपयोग नहीं करती है. पर्यावरण के प्रति चिंता ने कंपनी को खुद के प्लांटेशन विकसित करने के लिए प्रेरित किया है. इसके अलावा, हिंदुस्तान पेसिंल्स उन किसानों से लकड़ी खरीदती है जो या तो अपने खेत, जमीन या अपने आवासीय परिसर के आंगन में पेड़ उगाते हैं. यह प्रैक्टिस गुणवत्तापूर्ण लकड़ी की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करती है.

कंपनी का दावा है कि हिंदुस्तान पेंसिल्स पर्यावरण के क्षरण को रोकने के लिए प्रक्रियाओं के निरंतर सुधार और इनपुट के अधिकतम इस्तेमाल में विश्वास रखती है. कंपनी द्वारा उपयोग किए जाने वाले सभी इन्ग्रीडिएंट्स, नॉन-टॉक्सिक नेचर के हैं. लकड़ी, पेंसिल के लिए मुख्य इनपुट में से एक है, इसलिए कंपनी प्लांटेशन डेवलप करने और इस कीमती प्राकृतिक संसाधन के रिन्युअल को सुनिश्चित करती है. इसके अलावा इको-फ्रेंडली वाटर बेस्ड लैकर और पीवीसी मुक्त फॉर्म्युलेशंस पर स्विच करने के लिए अनुसंधान और विकास प्रयास भी किए जा रहे हैं.