60 वर्ष पहले ऑटो रबर पार्ट्स से शुरुआत, आज करोड़ों रुपये के टर्नओवर के साथ कार सीट कवर, बॉडी कवर तक फैला बिजनेस
चौधरी एंटरप्राइजेस ने 1984 में कार सीट कवर बेचना शुरू किया और 1987 में इसकी मैन्युफैक्चरिंग शुरू की गई.
भारत में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री तेजी से फल-फूल रही है. कार खरीदारों की संख्या बढ़ती देखकर कार कंपनियां लगातार नई लॉन्चिंग कर रही हैं. इसकी वजह से कार के एक्सटीरियर व इंटीरियर एक्सेसरीज की डिमांड भी बढ़ रही है. इस डिमांड को मेक इन इंडिया की मदद से पूरा करने की कोशिश में हरियाणा के सोनीपत की एक कंपनी भी जुटी हुई है. यह कंपनी है चौधरी एंटरप्राइजेस, जो ऑटोकेम (
) ब्रांडनेम से कार एक्सेसरीज की बिक्री करती है.YourStory Hindi ने चौधरी एंटरप्राइजेस में पार्टनर राकेश छाबड़ा से डिटेल में बातचीत की. पार्टनरशिप फर्म के रूप में ऑपरेशनल इस कंपनी को उनके पिता आत्म प्रकाश छाबड़ा ने 1963 में शुरू किया था. राकेश ने बताया कि उनका परिवार हरियाणा के हिसार जिले से ताल्लुक रखता है. उनके पिता ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से 1961 में लॉ की पढ़ाई की थी. उसके बाद उन्हें काफी अच्छे जॉब ऑफर हुए, यहां तक कि बर्मिंघम में स्कॉलरशिप बेसिस पर एलएलएम के लिए एडमिशन भी मिला था. लेकिन राकेश के दादाजी ने पिता को वहां नहीं जाने दिया क्योंकि वह इकलौते बेटे थे. इसके बाद गांव के लोगों ने राकेश के पिता को कहा कि अगर वह नौकरी करेंगे तो केवल अपने लिए कमाएंगे लेकिन अगर कुछ बिजनेस करेंगे तो गांव के दूसरे बच्चे भी सेटल हो जाएंगे. इसके बाद राकेश के पिता ने बिजनेस करने की ठान ली.
इसके बाद जब आत्म प्रकाश छाबड़ा सोनीपत आए तो उनके एक दोस्त को ऑटो रबर पार्ट्स बिजनेस की जानकारी थी. उनके साथ पार्टनरशिप में राकेश के पिता ने बिजनेस शुरू किया. निवेश राकेश के पिता ने किया था. ऑटो रबर पार्ट्स बनाने से कारोबार की शुरुआत हुई. आज कंपनी ऑटो कंपोनेंट्स, कार सीट कवर, कार मैट्स, कार बॉडी कवर और अन्य कार इंटीरियर व एक्सटीरियर एक्सेसरीज, बेड मैट्रेसेज आदि की मैन्युफैक्चरिंग व बिक्री कर रही है.
राकेश कब कारोबार से जुड़े
राकेश ने बताया कि वह 1980 में चौधरी एंटरप्राइजेस से जुड़े. तब तक कंपनी ऑटो रबर पार्ट्स ही बना रही थी. इसके बाद 1982 में कंपनी के पोर्टफोलियो में कारमैट्स को और 1983 में कारपेट्स एड किया गया. इसके बाद डीलर्स की ओर से कहा गया कि कार सीट कवर्स की कमी है तो इसे भी आपको शुरू करना चाहिए. फिर चौधरी एंटरप्राइजेस ने 1984 में कार सीट कवर बेचना शुरू किया और 1987 में इसकी मैन्युफैक्चरिंग शुरू की गई.
1995 तक कंपनी बिना किसी ब्रांडनेम के साथ बिक्री कर रही थी. साल 1995 में ब्रांडनेम ऑटोकेम ब्रांडनेम के साथ बिक्री शुरू की गई. राकेश बताते हैं कि उस वक्त आॅर्गेनाइज्ड सेक्टर में कार सीट कवर्स के मैन्युफैक्चरर्स की संख्या गिनी चुनी थी. तब चौधरी एंटरप्राइजेस ने साल 1996 में भारत का पहला सीट कवर कैटालॉग लॉन्च किया.
2002 में पहली बार वॉरंटी वाले प्रॉडक्ट निकाले
राकेश का कहना है कि नॉर्थ इंडिया उनके बिजनेस को रास नहीं आया लेकिन भारत के बाकी हिस्सों में उनका बिजनेस काफी फला-फूला. साल 2002 में कंपनी ने पहली बार वॉरंटी के साथ प्रॉडक्ट निकाले. उस वक्त जो प्रॉडक्ट चीन से आते थे, उनकी लाइफ बहुत कम थी. लेकिन चौधरी एंटरप्राइजेस के प्रॉडक्ट के साथ 3 साल की वॉरंटी थी. इसकी बदौलत कंपनी के पास ऑर्डर्स की लाइन लग गई और चीन के प्रॉडक्ट्स को मात खानी पड़ी. इसके बाद साल 2004 में एक बार फिर चीन के कार सीट कवर्स व मैट कवर्स पॉपुलर हुए. इनसे टक्कर लेने के लिए चौधरी एंटरप्राइजेस ने फिक्स फिटिंग के कार सीट कवर लॉन्च किए.
2007 से 2012 तक खूब फला-फूला बिजनेस
राकेश आगे बताते हैं कि 2007 आते-आते कार सीट कवर मार्केट पूरी तरह से बदल गया क्योंकि हर गाड़ी की सीट अलग-अलग टाइप की आने लगी. इसकी वजह से अलग-अलग फिटिंग के सीट कवर्स की जरूरत पैदा हो गई. उस वक्त चौधरी एंटरप्राइजेस उन गिनी-चुनी कंपनियों में शामिल थी, जो हर कार के हर मॉडल की सीट की फिटिंग के हिसाब से सीट कवर्स उपलब्ध करा रही थी. वॉरंटी तो 3 साल की थी ही. राकेश बताते हैं कि साल 2007 से 2012 तक उनकी कंपनी ने एक तरह से एकछत्र राज किया.
कंपोनेंट्स बनाना कब शुरू किया
राकेश के मुताबिक, ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर के मामले में चौधरी एंटरप्राइजेस ने जनरल मोटर्स के साथ सबसे पहले 2007 में काम करना शुरू किया. इसके बाद साल 2012 में कंपनी मारुति के लिए ओई वेंडर के तौर पर जुड़ी. उस वक्त मारुति सुजुकी की सीट कवर मार्केट में पैठ केवल 9 प्रतिशत थी. चौधरी एंटरप्राइजेस के साथ आने के बाद मारुति ने अगले एक साल में 35000 से ज्यादा सीट कवर बेचे, 9000 से सीधे 35000 तक की छलांग. सीट कवर के मामले में डेढ़ साल में 400 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज की गई थी. इसके बाद कंपनी हुंडई, महिन्द्रा के साथ ओई वेंडर के तौर पर जुड़ी. बाद में कमर्शियल व्हीकल्स कंपनियों, टूव्हीलर कंपनियों के साथ भी जुड़े. राकेश ने बताया कि 2016 से उनका कारोबार गोदरेज के साथ भी है क्योंकि कंपनी मैट्रेसेज के कुछ पार्ट्स भी बनाती है. 2020 से चौधरी एंटरप्राइजेस ने चेयर्स के कुछ पार्ट्स बनाना भी शुरू किया.
2021 से कर रही एक्सपोर्ट
इसके बाद साल 2021 से एक्सपोर्ट शुरू किया, अमेरिका और जापान में. वर्तमान में कंपनी का टर्नओवर 1 अरब रुपये से ज्यादा है. चौधरी एंटरप्राइजेस की कुल 5 मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी हैं, जिनमें से 3 सोनीपत के राई में हैं. कंपनी डेली बेसिस पर 1000 से 1200 सीट कवर का उत्पादन करने में सक्षम है. बॉडी कवर 1500 रोज, कार मैट्स 800-1000 रोज और अन्य एक्सेसरीज 1000 पीस डेली की उत्पादन क्षमता है. चौधरी एंटरप्राइजेस के पूरे भारत में डिस्ट्रीब्यूटर्स व डीलर हैं. इंडीविजुअल्स उनसे कॉन्टैक्ट कर प्रॉडक्ट खरीद सकते हैं. वर्कफोर्स 500 के करीब है.
क्या है कंपनी का विजन
राकेश का कहना है कि चौधरी एंटरप्राइजेस की कोशिश 'मेक इन इंडिया' के तहत ज्यादा से ज्यादा प्रॉडक्ट्स बनाने की है ताकि विदेश से आने वाले प्रॉडक्ट्स पर निर्भरता कम हो. जो भी प्रॉडक्ट भारत में बनाए जा सकते हैं, उनकी मैन्युफैक्चरिंग की जा सके. राकेश 'फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो एंड स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेस' (FISME) के वाइस प्रेसिडेंट और 'राई इंडस्ट्रीज एसोसिएशन' के प्रेसिडेंट हैं.