Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory
search

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT
Advertise with us

उन आईएएस टॉपर्स की कहानी जिनका संघर्ष बन गया मिसाल

जब कोई युवा अपने अभावग्रस्त परिवार के हालात को पछाड़ते हुए देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में काबिज हो जाता है, पूरे समाज के लिए हीरो बन जाता है। आइए, कुछ ऐसी ही प्रशासनिक शख्सियतों से आज रू-ब-रू होते हैं, जिनकी मेहनत पत्थर की लकीर बन कर उभर आई।

उन आईएएस टॉपर्स की कहानी जिनका संघर्ष बन गया मिसाल

Tuesday May 14, 2019 , 5 min Read

अंसार शेख, नंदिनी और कुलदीप

जब भी कोई युवा आईएएस, आईपीएस में सेलेक्ट हो जाता है, उसकी प्रतिभा पर हर कोई फ़क्र करने लगता है। ऐसी कामयाबी हासिल करने वालों में ज्यादातर संपन्न परिवारों के होते हैं, लेकिन जब कोई युवा अपने अभावग्रस्त परिवार के हालात को पछाड़ते हुए देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में काबिज हो जाता है, पूरे समाज के लिए हीरो बन जाता है। आइए, कुछ ऐसी ही प्रशासनिक शख्सियतों से आज रू-ब-रू होते हैं, जिनकी मेहनत पत्थर की लकीर बन कर उभर आई।


बेंगलुरू के एमएस रमैय्या इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी की सिविल इंजीनियरिंग की छात्रा रहीं आईएएस टॉपर नंदिनी कर्नाटक के कोलार ज़िले के एक शिक्षक की बेटी हैं। इंजीनियर होने के बावजूद नंदिनी ने कन्नड़ साहित्य को अपने वैकल्पिक विषय के रूप में चुना था। नंदिनी गुदड़ी के लालों की कामयाबी पर दो टूक कहती हैं कि 'सिर्फ प्रशासनिक सेवा ही क्यों, हम जहां भी हों, अपना सर्वश्रेष्ठ दें।'


एमएस रमैय्या इंस्टीट्यूट से इंजीनियरिंग के बाद जब वह कर्नाटक के पीडब्ल्यूडी विभाग में नौकरी कर रही थीं, उन्होंने एक दिन सोचा कि वह भी आईएएस अफ़सर बन सकती हैं, और बन गईं। उन्हे पहले प्रयास में ही 642वीं रैंक हासिल हो गई। ये तो रहीं आईएएस नंदिनी की बातें, लेकिन महाराष्ट्र के अंसार अहमद, उत्तर प्रदेश के कुलदीप द्विवेदी, प.बंगाल की श्वेता अग्रवाल, मध्य प्रदेश के नीरीश राजपूत आदि कुछ ऐसे नाम हैं, जो आंधियों में दीप जलाकर उजाले में आए हैं। वक्त ने उन्हें पीछे धकेलने में कोई कसर बाकी नहीं रखी लेकिन कड़ी मेहनत कर उन्होंने खुद अपना परचम फहरा दिया।


छात्र जीवन में ऐसे ही होनहार युवाओं में एक रहे हैं मनोज कुमार रॉय, जो दिल्ली में रहकर चुपचाप यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में भी जुटे रहे और अंडा-सब्जी बेचने से लेकर दफ्तर में पोंछा लगाकर अपना खर्च भी निकालते रहे। उन्हे अपनी चौथी कोशिश में कामयाबी मिली और अब वह भारतीय आयुध निर्माणी सेवा अधिकारी (IFoS) हैं। नौकरी के साथ ही वह गरीब छात्रों को यूपीएससी परीक्षा में पास होने के लिए पढ़ाते भी हैं।


एक हैं जालना (महाराष्ट्र) के एक गरीब परिवार में जनमे ऑटो चालक पिता की संतान अंसार अहमद शेख, जो अपनी पहली ही कोशिश में आईएएएस बन गए। उन्होंने एकला चलो के अंदाज में एक राह पकड़ी कि पुणे के प्रतिष्ठित कॉलेज में बी.ए. (राजनीति विज्ञान) में पढ़ाई के बाद रोजाना बारह घंटे सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने लगे। एग्जाम में बैठे तो पहली ही बार में 361वीं रैंक पर सेलेक्ट हो गए। उनके पिता तो जीवन भर ऑटो चलाते रह गए लेकिन गुदड़ी के लाल अंसार पूरी युवा पीड़ी के लिए मिसाल बन गए।


कामयाबी की इन छोटी-छोटी दास्तानों में छिपा है मेहनत कर कुछ भी हासिल कर लेने का रहस्य। ऐसे प्रेरक युवा रहे हैं लखनऊ (उ.प्र.) के कुलदीप द्विवेदी, जिनके पिता सूर्यकांत लखनऊ विश्वविद्यालय में चौकीदारी (सिक्योर्टी गॉर्ड की नौकरी) करते रहे हैं। कुलदीप उनकी सबसे छोटी संतान हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक कुलदीप जिन दिनो यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे, उसके लिए अपने परिवार को सहमत करने में लंबा समय लगा। आखिरकार उन्होंने अपनी घर-गृहस्थी की फटेहाली को पछाड़कर वर्ष 2015 में सिविल सेवा परीक्षा में 242वीं रैंक पर आईपीएस सेलेक्ट हो गए।


एक ऐसी ही अनोखी प्रतिभा हैं पश्चिमी बंगाल के एक पंसारी की बेटी श्वेता अग्रवाल, जिन्होंने यूपीएससी परीक्षा में 19वीं रैंक हासिल कर अपनी जिंदगी में ऊंची उड़ान भरी। जिन दिनो उनके माता-पिता गरीबी से जूझ रहे थे, बंदेल के जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई कर श्वेता कोलकाता सेंट जेवियर्स कॉलेज से आर्थशास्त्र में स्नातक के बाद आईएएस बनने का सपना देखने लगीं। आखिरकार, तमाम अड़चनों पर पार पाते हुए यूपीएससी परीक्षा में अव्वल आ गईं। एक हैं भिंड (मध्य प्रदेश) के एक परिवार में जनमे नीरीश राजपूत, जिनके पिता वीरेन्द्र दर्जी का काम करते हैं। यद्यपि उन्हे चौथी कोशिश में सिविल सेवा परीक्षा में 370वीं रैंक की कामयाबी मिली लेकिन उससे पहले उन्हें सरकारी स्कूल की पढ़ाई करते हुए घर के खराब हालात के चलते लगातार पापड़ बेलनी पड़ी।


दृढ़ संकल्प के साथ कड़ी मेहनत कर अपनी गरीबी को कैसे पछाड़ा जा सकता है, यह कोई केंद्रपाड़ा (ओडिशा) के गांव अंगुलाई निवासी बीपीएल धारक किसान-पुत्र हृदय कुमार से सीखे। उनकी भी सफलता की राह में बाधाएं कुछ कम नहीं थीं। इंदिरा आवास योजना के तहत मिले घर में परिवार का गुजर-बसर होता था। हृदय की पढ़ाई-लिखाई के लिए सरकारी स्कूल तक किसान पिता की पहुंच रही, लेकिन उत्कल विश्वविद्यालय में समेकित एमसीए कोर्स करते हुए उन्हे तीसरी कोशिश में सिविल सेवा परीक्षा 1079वीं रैंक हासिल हो गई।


इसके साथ ही उनके करियर ने पूरे परिवार की राह मोड़ दी। एक ऐसे ही मेधावी हैं तमिलनाडु के एक गरीब परिवार में जनमे के. जयगणेश, जिन्हे पढ़ाई पूरी करने के लिए कभी वेटर तक का काम करना पड़ा था। आखिरकार उनको सिविल सेवा परीक्षा में छठवीं कोशिश में 156वीं रैंक मिल ही गई। इसी तरह की मिसाल हैं एक रिक्शा चालक के पुत्र गोविंद जायसवाल, जिन्होंने गरीबी के बीच कठिन संघर्ष करते हुए सिविल सेवा परीक्षा में 48वीं रैंक हासिल कर ली थी।


यह भी पढ़ें: बंधनों को तोड़कर बाल काटने वालीं नेहा और ज्योति पर बनी ऐड फिल्म