कोमा में मरीज की पत्नी, पति या बच्चे ही हो सकते हैं कानूनी अभिभावक: अदालत
उच्च न्यायालय ने अभिभावक एवं संरक्षक कानून, 1890, मानसिक स्वास्थ्य कानून, 1987 (निरस्त) सहित विभिन्न कानूनों के प्रावधानों पर विचार के बाद कहा कि इन कानूनों के प्रावधानों से यही पता चलता है कि जो व्यक्ति कोमा में है वह इसके दायरे में नहीं आता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि ऐसे व्यक्ति की पत्नी, पति अथवा बच्चे ही कानूनी अभिभावक हो सकते हैं जो कोमा में है और उन्हें मरीज की सभी तरह की सम्पत्ति की जानकारी का खुलासा करना होगा।
अदालत ने कहा कि कोमा में व्यक्ति का कोई पति, पत्नी या बच्चे नहीं हैं अथवा उसके परिवार ने उसे छोड़ दिया है तो उसके मित्र को किसी अदालत की पूर्व अनुमति से अभिभावक बनाया जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने अभिभावक एवं संरक्षक कानून, 1890, मानसिक स्वास्थ्य कानून, 1987 (निरस्त) सहित विभिन्न कानूनों के प्रावधानों पर विचार के बाद कहा कि इन कानूनों के प्रावधानों से यही पता चलता है कि जो व्यक्ति कोमा में है वह इसके दायरे में नहीं आता है।
न्यायूर्ति राजीव शकधर ने कहा कि इसी तरह की स्थिति 2019 में केरल उच्च न्यायालय के सामने भी आयी थी जिसने ऐसे मामलों से निपटने के लिए कुछ दिशानिर्देश प्रतिपादित किये थे जो उचित लगते हैं और दिल्ली में भी इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
आपको बता दें कि भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के मुताबिक पत्नी, बच्चों व माता-पिता को भरण पोषण का कानूनी अधिकार है, वहीं पति, पिता और पुत्रों पर पत्नी, बच्चों व माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी डाली गयी है ।
1948 का मानवधिकार घोषाणपत्र का अनुच्छेद 21 यहा सुनिश्चित करता है कि हर एक को ऐसे मापदण्ड के साथ जीने का अधिकार है जो उसके तथा उसके परिवार स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त हों, जिसमें चिकित्सा अवधान तथा जरुरी समाज की सेवाएं एवं बीमारी, अपंगता, वृद्धावस्था आदि से संबंधित सुरक्षा का अधिकार शामिल हैं ।
मरीज को उसकी बीमारी एवं इलाज के बारे में पूरी जानकारी देगा ताकि डॉक्टर एवं मरीज के बीच का विश्वास बना रहे।मरीज अपने इलाज, खान-पान के संबंध में डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करेगा।डॉक्टरी रिकॉर्ड में पारदर्शिता होनी चाहिए, उनकी उचित देखरेख होनी चाहिए तथा वह मरीज को उपलब्ध होने चाहिए।नर्सिंग स्टाफ प्रशिक्षित होना चाहिए तथा उन्हें मेडिकल की वर्तमान जानकारी होनी चाहिए।
(Edited by रविकांत पारीक )