जिस अशोक स्तम्भ के शेर पर हो रहा है हंगामा, जानें क्या है उसका इतिहास
सोमवार को नए संसद भवन पर अशोक स्तंभ का अनावरण किया गया. उसमें लगे शेर को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. विपक्ष आरोप लगा रहा है कि हमारे राष्ट्रीय चिन्ह में जो शेर हैं वो शांत हैं और उनका मुँह बंद है जबकि नए संसद भवन में लगे अशोक स्तम्भ के शेर का मुँह खुला है और आक्रामक दिखता है. नए अशोक स्तम्भ के मूर्तिकार सुनील देवरे ने कहा है कि स्तम्भ में कोई बदलाव नहीं किया गया है. सारनाथ में मौजूद स्तम्भ की ही ये कॉपी है.
भारत में अशोक स्तम्भ की एक अहम पहचान है जो भारत की महान ऐतिहासिक विरासत से आती है. इसे भारत की संस्कृति और शान्ति का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है और यही वजह है कि भारत ने अशोक स्तम्भ को राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अपनाया था.
अशोक स्तम्भ का इतिहास
सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए चार स्तंभों में एक सारनाथ का स्तम्भ है, जिसे अशोक स्तंभ के नाम से जाना जाता है. इसे अशोक ने 250 ईसा पूर्व में बनवाया था. इस स्तंभ के शीर्ष पर चार शेर बैठे हैं और सभी की पीठ एक दूसरे से सटी हुई है. इन चारों के ऊपर में एक छोटा दंड था जो 32 तीलियों के धर्मचक्र को धारण करता था, जो अध्यात्म के शक्तिशाली से बड़ा होने का परिचायक था. हालांकि, राष्ट्रीय चिन्ह में चक्र को स्तम्भ के निचले भाग में रखा गया है जिसकी 24 तीलियाँ हैं. इसी चक्र को भारतीय तिरंगे के मध्य भाग में रखा गया है. इसके नीचे मुण्डकोपनिषद का एक श्लोक सत्यमेव जयते लिखा है. ऐतिहासिक अशोक स्तंभ पर तीन लेख लिखे गए हैं जिनमें से पहला लेख अशोक के ही समय का है और ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है. जबकि दूसरा लेख कुषाण काल एवं तीसरा लेख गुप्त काल का है.
वास्तव में सारनाथ का स्तंभ धर्मचक्र प्रवर्तन की घटना का एक स्मारक था और धर्मसंघ की अक्षुण्णता को बनाए रखने के लिए अशोक द्वारा इसकी स्थापना की गई थी.
शेर और सारनाथ का महत्व
बौद्ध धर्म में शेर को बुद्ध का पर्याय माना गया है. पालि गाथाओं से हमें पता चलता है कि बुद्ध के पर्यायवाची शब्दों में शाक्यसिंह और नरसिंह शामिल हैं.
बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने के बाद भिक्षुओं ने चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण के लिए बौद्ध मत का प्रचार इस जगह से किया था, जो आज सारनाथ के नाम से प्रसिद्ध है. और फिर अशोक ने यहाँ यह स्तंभ बनवाया. जिसे हम वर्तमान में अशोक स्तम्भ के नाम से जानते हैं. हालांकि, जब भारत में इसे राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर अपनाने की बात की गई तो इसके जरिए सामाजिक न्याय और बराबरी की बात भी की गई थी.
कैसे बना अशोक स्तम्भ भारत का राष्ट्रीय चिन्ह?
इस स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया था. जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के नए ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीक के लिए संविधान सभा के सामने मौर्य सम्राट अशोक के सुनहरे अतीत के आदर्शों और मूल्यों को सम्मिलित करने का प्रस्ताव रखा था. सभी लोगों की मंज़ूरी के साथ इसे अपनाया गया.
यह प्रतीक भारत सरकार के आधिकारिक लेटरहेड का भी एक हिस्सा है. इसके अलावा भारतीय मुद्रा पर भी इसके चिन्ह को छापा जाता है. भारतीय पासपोर्ट पर भी प्रमुख रूप से अशोक स्तंभ को ही अंकित किया गया है. लेकिन किसी भी व्यक्ति या अन्य किसी निजी संगठन व संस्थान को इस प्रतीक को व्यक्तिगत तौर पर उपयोग करने की अनुमति नहीं है.