ये है उड़ीसा का 'आर्ट विलेज़' जहां हर घर में मौजूद है एक बेहतरीन कलाकार
इस खास गाँव में आपको हर ओर चित्रकला देखने को मिल जाएगी। गाँव के घरों की दीवारों पर की गई चित्रकारी हर किसी के भीतर इस गाँव के प्रति दिलचस्पी पैदा कर देती है।
"रघुराजपुर को उड़ीसा के ‘आर्ट विलेज’ के नाम से जाना जाता है। रघुराजपुर उड़ीसा के पवित्र शहर पुरी से 14 किलोमीटर दूर भार्गवी नदी के तट पर स्थित है। इस गाँव को प्रख्यात पत्रचित्र पेंटिंग की शुरुआत के लिए भी जाना जाता है।"
आमतौर पर गांवों के घरों को उनकी साधारण बनावट और सामान्य रंगरोगन के लिए जाना जाता है, लेकिन उड़ीसा का एक गाँव इससे ठीक उलट है। इस गाँव के हर घर में एक आर्टिस्ट मौजूद है और यही कारण है कि यहाँ घरों की दीवारों पर आपको आसानी से बेहतरीन चित्रकारी देखने को मिल जाएगी।
रघुराजपुर को उड़ीसा के ‘आर्ट विलेज’ के नाम से जाना जाता है। रघुराजपुर उड़ीसा के पवित्र शहर पुरी से 14 किलोमीटर दूर भार्गवी नदी के तट पर स्थित है। इस गाँव को प्रख्यात पत्रचित्र पेंटिंग की शुरुआत के लिए भी जाना जाता है।
इस खास गाँव में आपको हर ओर चित्रकला देखने को मिल जाएगी। गाँव के घरों की दीवारों पर की गई चित्रकारी हर किसी के भीतर इस गाँव के प्रति दिलचस्पी पैदा कर देती है।
गाँव ने दी हैं कई हस्तियाँ
इस गाँव से ही उड़ीसा के कुछ ऐसे बड़े दिग्गज निकले हैं, जिन्होने कला के क्षेत्र में एक बड़ा मुकाम हासिल किया है। पद्म विभूषण गुरु केलुचरण मोहापात्रा और गोतीपुआ नृतक पद्मश्री गुरु मगुनी चरण दास इसी गाँव के मूल निवासी रहे हैं।
यह गाँव शिल्पगुरु डॉ. जगन्नाथ महापात्रा का भी जन्मस्थान है जिन्होने पत्रचित्र कला में बड़ा योगदान दिया है। डॉ. जगन्नाथ महापात्रा ने रघुराजपुरगाँव में पत्रचित्र कला के विकास में भी एक बड़ी भूमिका निभाई है। पत्रचित्र पेंटिंग को उड़ीसा की सबसे पुरानी और मशहूर आर्ट फॉर्म माना जाता है। ये पेंटिंग मुख्यतौर पर हिन्दू पौराणिक कथाओं पर आधारित होती हैं। इस पेंटिंग के लिए कपड़े के टुकड़े का इस्तेमाल किया जाता है।
गाँव बना पर्यटन का केंद्र
साल 2000 के आस-पास इस गाँव को इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज द्वारा हेरिटेज विलेज के तौर पर विकसित किया जाना शुरू कर दिया गया था। आज यह गाँव देशी पर्यटकों के साथ ही विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
आज यह गाँव में क्षेत्र में पर्यटन का केंद्र बन चुका है। इस गाँव में आने वाले पर्यटकों के लिए गाँव के लोग गाइड का काम करते हैं और उन्हें इस गाँव के इतिहास और इससे जुड़ी कला की शुरुआत के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं। आज इस कला को धरोहर की तरह सहेज कर रखे हुए इस गाँव की तारीफ देश भर में हो रही है।
गाँव के तमाम परिवार इन आगंतुकों को अपने घरों पर आने का भी न्योता देते हैं। परंपरागत पेंटिंग के अलावा इस गाँव के आर्टिस्ट पत्तों से बने और पेंट किए हुए बुकमार्क आदि का भी निर्माण करते हैं। कोई भी पर्यटक इन कलाकारों से सीधे तौर पर भी उनकी कलाकृति खरीद सकता है।
कोरोना काल का प्रभाव
एक ऐसा गाँव जहां हर घर में एक कलाकार मौजूद है और मुख्य तौर पर उनकी जीविका इसी पर निर्भर है, वहाँ पर कोरोना वायरस महामारी ने बुरा प्रभाव डाला है।
हालांकि अब गाँव के इन कलाकारों ने अपनी पेंटिंग को लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का रास्ता अपनाना शुरू कर दिया है, जिसके उन्हें फायदा भी मिल रहा है।
इसी के साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसी साल जून में गाँव के करीब 150 से अधिक कलाकारों को आर्थिक मदद भी मुहैया कराई थी।
Edited by Ranjana Tripathi