शिक्षकों का कौशल सुधारने और वंचित बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में लगी है मुंबई की यह गैर-लाभकारी संस्था
सीईक्यूयूई (CEQUE) एक गैर-लाभकारी संस्था है, जो शिक्षकों को सशक्त करने और बनाने और उनके शिक्षण नवाचारों में सुधार करने के लिए काम कर रही है। इस तरह यह स्टार्टअप ग्रामीण बच्चों की शिक्षा में सुधार ला रही है।
"सीईक्यूयूई (CEQUE) का मतलब है- सेंटर फॉर इक्विटी एंड क्वालिटी इन यूनिवर्सल एजुकेशन। इसका उद्देश्य शिक्षकों की शिक्षण क्षमता में सुधार करने के साथ शिक्षा में सुधार करना है। इसके कार्यक्रम शिक्षकों को सहायता मुहैया कराने, शिक्षक क्षमता के निर्माण, उन्हें प्रशिक्षित करने और अध्यापन व शिक्षण के क्षेत्र में नयापन लाने में मदद करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।"
महाराष्ट्र के संगमेश्वर गांव के 8 वर्षीय बच्चे गंधर्व को कभी अपने शिक्षकों की तरफ से भेजे गए यूनिट टेस्ट को डाउनलोड करने के लिए इंटरनेट की सुविधा मिलने का इंतजार करना पड़ता था। फिर गंधर्व अपनी आंसरशीट शाम तक अपने शिक्षक पूर्वा सकपाल को भेजता था, जो लगभग 300 किलोमीटर दूर कामराज नगर की झुग्गियों से पढ़ाते थे।
यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने और पढ़ने वाले अधिकांश छात्रों के रोजाना के संघर्ष को दिखाता है। हालांकि पूर्वा जैसे शिक्षक कक्षाओं को अपने छात्रों के लिए अधिक आकर्षक और दिलचस्प बनाने की कोशिश कर रहे हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो महामारी आने के बाद गांवों में वापस चले गए हैं।
दूरस्थ शिक्षा को और सशक्त बनाने के लिए, डॉ अंजू सहगल ने ग्रामीण छात्रों को मुहैया कराए जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए गैर-लाभकारी सीईक्यूयूई की स्थापना की।
अंजू ने योरस्टोरी को बताया, "कक्षा में शिक्षक सबसे बड़ा कारक है जो मूल रूप से बच्चे की सीखने पर छाप छोड़ता है। यहीं कारण है कि जब हमने 2012 में अपनी यात्रा शुरू की तो हम शिक्षकों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते थे।”
सीईक्यूयूई (CEQUE) का मतलब है- सेंटर फॉर इक्विटी एंड क्वालिटी इन यूनिवर्सल एजुकेशन। इसका उद्देश्य शिक्षकों की शिक्षण क्षमता में सुधार करने के साथ शिक्षा में सुधार करना है। इसके कार्यक्रम शिक्षकों को सहायता मुहैया कराने, शिक्षक क्षमता के निर्माण, उन्हें प्रशिक्षित करने और अध्यापन व शिक्षण के क्षेत्र में नयापन लाने में मदद करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
CEQUE या 'सीखें'
अंजू कहती हैं, “ग्रामीण भारत में और स्लम समुदायों में काम करने के दौरान मैंने कई चीजें अनुभव कीं। मैंने महसूस किया कि आप सिर्फ स्थानीय संसाधनों के जरिए बरगद के पेड़ के नीचे बैठे महान शिक्षक बना सकते हैं। इसके लिए आपको किसी ईंट-गिट्टी की इमारत की जरूरत नहीं है।"
इसलिए 2012 में, सीईक्यूयूई ने शिक्षण नवाचारों का एक संग्रह बनाने का निर्णय लिया ताकि शिक्षक उन्हें सीख सकें और उन्हें अपनी कक्षाओं में लागू कर सकें। दो से तीन वर्षों तक परिणाम देखने के बाद, इसने ऐसा एक सिस्टम बनाने के लिए टीचर इनोवेटर प्रोग्राम शुरू किया, जहां शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा सके।
यह तीन वर्षीय कार्यक्रम है, जो शिक्षकों को नवीन शिक्षण विधियों को सीखने और छात्र सीखने को प्रभावित करने में मदद करता है। यह स्थानीय शिक्षा विभागों के साथ साझेदारी में काम करता है। इस बुनियादी समझ के साथ शिक्षक भी अपने स्वयं के नवाचार करते रहते हैं।
उदाहरण के लिए, कुंडा बछव ने नासिक के अनादवल्ली गांव में अपने छात्रों के लिए 200 किताबों की एक मोबाइल लाइब्रेरी खोली। दूसरी ओर प्रमोद खांडेकर ने गढ़चिरौली के अदापल्ली गांव में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए ओपन क्लास के प्रारूप में बच्चों को पढ़ाने के लिए गांव के घरों की दीवारों का पेंट कर ब्लैकबोर्ड के रूप इस्तेमाल किया। ये सिर्फ कुछ इनोवेशंस के उदाहरण हैं, जिन पर सीईक्यूयूई के शिक्षक काम कर रहे हैं।
यह कार्यक्रम कक्षा एक से आठवीं तक में पढ़ने, लिखने और गणित कौशल सिखाने पर फोकस करता है। इस कार्यक्रम से अब तक सात अलग-अलग जिलों के 400 से अधिक शिक्षक और 8,000 छात्र प्रभावित हुए हैं।
अंजू कहती हैं, "हम स्कूल प्रणाली के लीडर्स को प्रशिक्षित करने पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे उन्हें बेहतर अकादमिक लीडर बनने में मदद मिलती है। इन प्रमुखों को केंद्र प्रमुख (केपी) या क्लस्टर संसाधन समन्वयक कहा जाता है, जिनके नेतृत्व में लगभग 15 स्कूल हैं। वे शिक्षकों और बेहतर शिक्षा के लिए आवश्यक अन्य संसाधनों मुहैया कराने के लिए जिम्मेदार हैं।”
इस कार्यक्रम को 'केंद्र प्रमुख अकादमिक लीडरशिप कार्यक्रम; कहा जाता है, जिसने महाराष्ट्र के 34 जिलों में 2,500 से अधिक केपी, 1.2 लाख शिक्षकों और 2.5 लाख छात्रों को प्रभावित किया है।
सीईक्यूयूई के प्रयासों को बैंक ऑफ अमेरिका, एचटी पारेख फाउंडेशन और जेएलएल सहित विभिन्न संगठनों की ओर से जोरदार समर्थन दिया गया है। ये सभी अपने कार्यक्रम के लिए बड़े दानदाता रहे हैं। केंद्र प्रमुख पहल को तो यूनिसेफ और महाराष्ट्र राज्य सरकार की तरफ से सहयोग मिला है।
महामारी से आया बदलाव
अंजू का कहना है कि महामारी के दौरान अन्य लोगों की तरह उन्हें भी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि वे शिक्षकों तक नहीं पहुंच पा रही थीं।
वह कहती हैं, “लेकिन हमने यह भी महसूस किया कि शिक्षक स्वयं बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहे थे। हम लगभग 300 शिक्षकों के साथ काम कर रहे हैं और ये शिक्षक केवल 35 प्रतिशत छात्रों तक ही पहुंच पाए थे, जो उनके साथ रजिस्टर्ड थे।"
वह आगे कहती हैं, “हमने बड़ी मात्रा में डेटा एकत्र किया, इसमें विभिन्न समुदायों की संख्या भी शामिल है। हमने महसूस किया कि कई परिवारों ने वास्तव में पलायन नहीं किया था, लेकिन डिजिटल भेदभाव के कारण, बच्चों के पास या तो उपकरणों तक पहुंच नहीं थी, या उनके पास उपकरणों को रिचार्ज करने के लिए पैसे नहीं थे, या उनके माता-पिता काम के लिए बाहर गए हुए थे।”
इसलिए, इन्हें यह भी सुनिश्चित करना था कि यह भी जो भी समाधान बनाएं, वे बहुत कम तकनीकी संसाधन वाले हों। वहीं टीम शिक्षकों का सहयोग मुहैया कराने के विचारों के साथ आगे बढ़ रही थी।
सीईक्यूयूई ने छात्रों के लिए ऑडियो संसाधनों और कार्यपुस्तिकाओं जैसे लगभग 160 कम-तकनीकी संसाधनों का निर्माण किया, जिन्हें पढ़ने, लिखने, मूलभूत गणित आदि के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।
इस तरह, भले ही शिक्षक सप्ताह में एक या दो बार ही इन बच्चों तक पहुंच पा रहे थे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान उनके पास पढ़ाई के लिए सामग्री थी।
अंजू कहती हैं, "इसमें शिक्षकों और छात्रों दोनों की बहुत निगरानी की जरूरत थी, लेकिन हम अन्य ग्रामीणों और ग्राम पंचायत सदस्यों के माध्यम से उनके लिए सहयोग हासिल करने में सक्षम थे।"
उन्होंने उन बच्चों को समूहबद्ध किया जिनके पास स्मार्टफोन तक पहुंच थी, और वे बच्चे जिनके पास स्मार्टफोन सहित दूसरे संसाधनों तक पहुंच नहीं थी। इसके बाद शिक्षक को अलग से एक शेड्यूल तैयार करना था।
कई मामलों में, शिक्षकों ने उन जगहों पर शारीरिक रूप से जाने और सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए पढ़ाने का फैसला किया, जहां उन्हें सामुदायिक समर्थन मिला।
चुनौतियां और आगे की राह
सबसे बड़ी चुनौती शिक्षकों और छात्रों को ऑनलाइन शिक्षण जैसे आधुनिक शैक्षिक समाधानों के अनुकूल बनाना है।
अंजू कहती हैं, “इसके अलावा, छात्रों और उनके परिवारों की वित्तीय स्थिति ने भी महामारी में एक महत्वपूर्ण चुनौती निभाई। क्योंकि सभी के पास उचित तकनीक तक पहुंच नहीं थी।”
अंजू का कहना है कि वर्ष 2021-22 में वे 6 जिलों के 1800 शिक्षकों के साथ काम करने जा रही हैं।
वह कहती हैं, "न केवल हम उन्हें बेहतर बनाने में मदद कर रहे हैं, बल्कि हम आने वाले दिनों में उन्हें एक लीडर के रूप में विकसित करने में भी मदद कर रहे हैं, जो आगे चलकर जिले के अन्य शिक्षकों की मदद और प्रशिक्षित कर सकते हैं और उस जिले के लिए एक संसाधन समूह बन सकते हैं।"
Edited by Ranjana Tripathi