इस स्टार्टअप ने तैयार की सस्ती इलेक्ट्रॉनिक बैटरी, सिर्फ़ 15 मिनट में हो जाती है फ़ुलचार्ज
ईंधन के बढ़ते दामों और पेट्रोल-डीजल के चलते पर्यावरण को लगातार हो रहे नुकसान की वजह से, बेहतर और ईको-फ़्रेंडली मोबिलिटी सल्यूशन्स वक़्त की ज़रूरत बन चुके हैं। पिछले कुछ सालों से देश-विदेश हर जगह इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का ज़िक्र हो रहा है और अब धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के आधुनिक डिज़ाइन्स सामने आ रहे हैं।
भारतीय स्टार्टअप्स भी इस क्षेत्र में पीछे नहीं है। व्हीकल मैनुफ़ैक्चरर्स, मोबिलिटी ऐग्रीगेटर प्लेटफ़ॉर्म्स और गाड़ी के अन्य पार्ट्स (बैटरीज़, चार्जर्स आदि) बनाने वाले, देश में पूरी सक्रियता के साथ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के कॉन्सेप्ट को हक़ीक़त में तब्दील करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
मुंबई का स्टार्टअप, गीगाडाइन एनर्जी भी इस क्षेत्र में काम करने वाले स्टार्टअप्स में से एक है, जिसने इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की बैटरी के लिए एक ख़ास तकनीक विकसित की है। स्टार्टअप की योजना है कि 2020 की शुरुआत तक कमर्शल ऑपरेशन्स की शुरुआत की जाए। स्टार्टअप ने जो प्रोटोटाइप तैयार किया है, उसकी क्षमता 1 किलोवॉट आवर (केवीएच) तक है। जुबीन वर्गीज़ और अमेय गाडीवान ने मिलकर गीगाडाइन एनर्जी की शुरुआत की थी। नीति आयोग के इलेक्ट्रिक व्हीकल मिशन 2030 के मुताबिक़, भारत में 2030 तक ईवी बैटरीज़ का घरेलू मार्केट 300 बिलियन डॉलर्स तक पहुंच सकता है। गीगाडाइन नीति आयोग की इस मुहिम को आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है।
जुबीन और अमेय ने 2014 में मेकाट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही गीगाडाइन के कॉन्सेप्ट पर काम शुरू कर दिया था। दोनों को टेस्ला के मॉडल एक्स और मॉडल एस कारों के लॉन्च के बाद इस क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा मिली थी। जुबीन को कारों का शौक़ था और अमेय को तकनीक का, इसलिए दोनों ने अपने शौक़ को ही अपना करियर बनाने का फ़ैसला लिया और अपनी-अपनी योग्यता की एक शानदार जुगलबंदी तैयार करने के उद्देश्य के साथ उन्होंने एनएमआईएमएस में अपने आख़िरी साल के प्रोजेक्ट के तौर पर एक ईवी मॉडल तैयार करने का फ़ैसला लिया।
अपने प्रोजेक्ट के दौरान वे मुंबई के कबाड़ी बाज़ारों के चक्कर लगा रहे थे और इस दौरान ही उन्हें पता चला कि ईवी को पावर देने के लिए जिस बैटरी की ज़रूरत है, वह पूरी गाड़ी तैयार करने की लागत से तीन गुना ज़्यादा क़ीमत की है। इसके बाद ही, जुबीन और अमेय ने कॉलेज छोड़ दिया और 2015 में गीगाडाइन एनर्जी की शुरुआत की।
उन्होंने लेड-ऐसिज बैटरीज़ से शुरुआत की, जो सस्ती तो ज़रूर थीं, लेकिन उन्हें चार्ज होने में बहुत समय लगता था। इसके बाद उन्होंने लीथियम-आयन बैटरीज़ पर काम शुरू किया, जो आमतौर ईवी में इस्तेमाल होती हैं। ये बेटरीज़ जल्द ही चार्ज हो जाती हैं, लेकिन हरबार चार्ज होने के साथ इन बैटरीज़ की लाइफ़ कम होती जाती है। कंपनी के फ़ाउंडर और सीईओ जुबीन ने योर स्टोरी को बताया कि इसके बाद उन्होंने सुपरकैपेसिटर्स की ओर रुख़ किया, जो पहले ही से मार्केट में मौजूद थे।
सुपरकैपेटसिटर्स की चार्जिंग की क्षमता भी अधिक होती है और लाइफ़साइकल भी लंबी होती है। लेकिन सुपरकैपेसिटर्स के साथ भी कुछ समस्याएं होती हैं। इनकी एनर्जी डेन्सिटी कम होती है, यानी एक निर्धारित क्षेत्र में जमा होने वाली ऊर्जा। इसके अलावा, बिना किसी बाहरी लोड के भी इन बैटरीज़ की पावर खर्च हो जाती है यानी इनका सेल्फ़-डिस्चार्ज रेट भी अधिक होता है।
जुबीन और अमेय ने तय किया कि वे इन समस्या का कोई प्रभावी हल खोज निकालेंगे। जुबीन ने स्पष्ट करते हुए बताया, "भारत ने बैटरी सप्लाई चेन पूरी तरह से स्थापित नहीं है, इसलिए हमने तय किया कि हम उन मटीरियल्स का इस्तेमाल करेंगे, जो प्रकृति से हमें पर्याप्त मात्रा में मिल सकते हैं। अच्छी बात यह थी कि हमें पहले से विकसित तकनीक में सुधार करने थे, न कि पूरी तरह से एक नई तकनीक तैयार करनी थी।"
जुबीन और अमेय ने ग्रैफीन, कम्पोज़िट नैनोमटीरियल्स और आर्टिफ़िशियल ऐटम्स को मिश्रित करते हुए सुपरकैपेसिटर्स की परफ़ॉर्मेंस को बेहतर किया। वे सुपरकैपेसिटर्स की एनर्जी डेन्सिटी बढ़ान और सेल्फ़-डिस्चार्ज रेट को कम करने में क़ामयाब हुए।
स्टार्टअप का दावा है कि उनकी तकनीक की मदद से ईवी बैटरीज़ को मात्र 15 मिनट में पूरी तरह से चार्ज किया जा सकता है। यह तकनीक बैटरीज़ को सस्ता, हल्का और ईको-फ़्रेडली बनाती है। इतना ही नहीं, कंपनी का यह भी दावा है कि आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली लीथियम-आयन बैटरीज़ की अपेक्षा उनकी तकनीक से तैयार होने वाली बैटरीज़ की लाइफ़ 50 गुना तक ज़्यादा है।
बैटरीज़ के साथ-साथ गीगाडाइन ईवी से संबंधित एनर्जी ईको-सिस्टम से जुड़े कई अन्य प्रोडक्ट्स और सर्विसेज़ भी ऑफ़र कर रहा है। इनमें बैटरी पैक्स, सेल्स और बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम आदि शामिल हैं।
स्टार्टअप कुछ पेटेन्ट्स के लिए आवेदन दे रखा है और उन्हें स्वीकृति मिलने का इंतज़ार है। कंपनी देश की पहली सुपरकैपेसिटर आधारित बैटरी मैनुफै़क्चरर बनना चाहती है। कंपनी चाहती है कि उनकी तकनीक से बनीं बैटरीज़ का इस्तेमाल न सिर्फ़ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में हो बल्कि अन्य कन्ज़्यूमर डिवाइसेज़ में भी इनका इस्तेमाल हो सके।
2018 के शुरुआत में गीगाडाइन ने अघोषित तौर पर मुंबई के ऐंजल नेटवर्क से सीड फ़ंडिंग हासिल की। कंपनी फ़ंडिंग की मदद से मुंबई में रिसर्च और डिवेलपमेंट फ़ैसिलिटी और लैब्स स्थापित करने की जुगत में लगी हुई है। कंपनी 2020 तक कमर्शल लॉन्च की तैयारी कर रही है।
पिछले महीने ही, दोनों फ़ाउंडर्स को फ़ोर्ब्स इंडिया की अंडकर 30 लिस्ट में जगह मिली है। स्टार्टअप के पास पांच पीएचडी वैज्ञानिकों और शोधार्थियों की टीम है, जो मटीरियल साइंस और एनर्जी स्टोरेज के क्षेत्रों में विशेषज्ञ हैं। अपनी क़ाबिल टीम की बदौलत स्टार्टअप इलेक्ट्रिक स्कूटर में अपनी बैटरी की तकनीक का सफल परीक्षण कर चुका है।
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