महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से सोलो ट्रिप पर निकली झारखंड की ये आदिवासी महिला बाइकर
महिला बाइकर्स की बात करें तो यह संख्या सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही देखने को मिलती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह लगभग दुर्लभ हो जाता है, हालांकि आज झारखंड के आदिवासी इलाके से आने वाली एक महिला बाइकर आज महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उत्तर भारत के तमाम इलाकों की सोलो ट्रिप कर निकली हुई हैं।
झारखंड के सरायकेला के आदिवासी समुदाय से आने वाली 30 वर्षीय कंचन उगुरसंडी ने अपनी सैलरी बचाकर बाइक खरीदी थी और अपने इस जुनून के साथ आगे बढ़ने के लिए उन्हें अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध भी जाना पड़ा था। साल 2019 से महिला सशक्तिकरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से कंचन ने पूरे उत्तर भारत में कई सोलो ट्रिप पूरे किए हैं।
आसान नहीं थी यह यात्रा
बीते साल जून सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की मदद से कंचन ने 19 हज़ार 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित लद्दाख में उमलिंग ला दर्रे के लिए सोलो ट्रिप की थी और ऐसा करने वाली वे पहली शख्स बन गई थीं। इसे लिए उन्होंने मनाली और लेह के रास्ते को तय करते हुए दिल्ली से उमलिंग ला तक 3,187 किमी की दूरी तय की थी।
कंचन ने अपनी इस यात्रा के दौरान हिमालय की सीमा में 18 खतरनाक पहाड़ी दर्रों को भी पार किया था। मीडिया से बात करते हुए कंचन ने बताया है कि खराब मौसम, बर्फ से ढके पहाड़ों और ऊंचे नीचे इलाके के कारण यह एक कठिन यात्रा रही है।
इसी के साथ इतनी ऊंचाई पर उन्हें कई बार ऑक्सीजन की कमी भी महसूस होती थी। हालांकि संगठन ने उन्हें एक मेडिकल टीम के साथ ही ऑक्सीजन सिलेंडर भी मुहैया कराए थे, जिससे उन्हें इस यात्रा के दौरान बहुत मदद मिली है।
महिला सशक्तिकरण है उद्देश्य
अपनी इस यात्रा के उद्देश्य पर बात करते हुए कंचन ने मीडिया को बताया है कि यह अनुचित है कि लड़की होने के लिए अपने परिवार या समाज से उन्हें समर्थन नहीं मिलता है। ऐसे में लड़कियों को खुद को साबित करना होगा कि वे हर वो काम कर सकती हैं जो लड़के कर सकते हैं।
मोटरसाइकिलिंग पर बात करते हुए कंचन का कहना है कि यह सिर्फ पुरुषों तक सीमित नहीं रहना चाहिए और अपने इस अभियान के साथ कंचन को विश्वास है कि कई लड़कियां भी अब एडवेंचर मोटरसाइकिलिंग के क्षेत्र में शामिल होंगी।
पहली सैलरी से खरीदी बाइक
कंचन के अनुसार वे एक गरीब आदिवासी परिवार से आती हैं, जहां लड़कियों को लड़कों की तरह आजादी नहीं है, ऐसे में बाइक चलाना तो दूर की बात थी। वे बचपन से मोटरसाइकिल की शौकीन रही हैं, हालांकि उनके पिता को उनके बाइक चलाने पर ऐतराज था।
हालांकि अपने जुनून को लेकर कंचन जिद्दी थीं और वे अपने सपने को किसी भी कीमत पर पूरा करना चाहती थीं। उनके अनुसार, जब उनका भाई बाइक चला सकता है तो वे ऐसा क्यों नहीं कर सकती हैं? जब कंचन नौकरी के लिए दिल्ली आईं तो उन्होने अपनी पहली सैलरी से एक बाइक खरीदी थी। कंचन के अनुसार, उन्होने इसकी जानकारी तब तक अपने परिजनों को नहीं दी थी और उन्हें उनके एक सीनियर ने बाइक चलाना सिखाया था।
Edited by Ranjana Tripathi