गरीब बच्चों की जिंदगी संवारने के साथ ही पर्यावरण बचा रहा यह अनोखा स्कूल
असम में एक दंपती द्वारा चलाए जा रहे स्कूल से न केवल गरीब पिछड़े बच्चों की जिंदगी संवर रही है बल्कि पर्यावरण संरक्षण पर भी दिया जा रहा है ध्यान।
आज प्लास्टिक का चलन इतना ज्यादा हो गया है कि यह हमारी धरती और उस पर मौजूद तमाम जीव जंतुओं के लिए एक संकट बन गया है। प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करने के लिए कई सारे प्रयास किए जा रहे हैं। असम के एक स्कूल में बच्चों को प्लास्टिक बीनकर हर हफ्ते स्कूल लाने को कहा जाता है। यह प्लास्टिक उनके लिए फीस के तौर पर काम करती है। इस पहल के जरिए न केवल प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम किया जा रहा है बल्कि लोगों में इसे लेकर जागरूकता भी फैलाई जा रही है। इस स्कूल का नाम 'अक्षर स्कूल' है।
अक्षर स्कूल की स्थापना जून 2016 में परमिता सरमा और माजिन मुख्तार ने की थी। वर्तमान में इसमें 4 से 15 साल तक के 100 से भी अधिक बच्चे अध्ययनरत हैं। इसे इंडियन ऑयल द्वारा वित्तीय सहायता मुहैया कराई जा रही है। अपने स्कूल के बारे में बात करते हुए माजिन कहते हैं, 'पहले स्थानीय ग्रामीण ढेर सारा प्लास्टिक इकट्ठा होने पर उसे जला देते थे। इससे पर्यावरण में जहरीली हवा की मात्रा बढ़ जाती थी। इसे रोकने के लिए हमने अपने स्कूल में प्लास्टिक स्कूल फीस की शुरुआत की।'
अक्षर स्कूल के बच्चों को इकट्ठा की गई प्लास्टिक से कई तरह के उपयोगी उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। इससे बाउंड्री वॉल, टॉयलेट, ईंट और प्लांट गार्ड्स बनाया जा रहा है। प्लास्टिक की चीजों को स्कूल में लगाने से बारिश के समय में होने वाली फिसलन को भी रोका जाता है। एक एकड़ में फैले इस स्कूल में दो सीनियर अध्यापक और चार जूनियर अध्यापक हैं। यहां विज्ञान, भूगोल, गणित समेत सारे विषय पढ़ाए जाते हैं। इस स्कूल में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे गरीब और पिछड़ी पृष्ठभूमि से आते हैं, इसलिए उन्हें रोजगार प्राप्त करने के लिए कई तरह की ट्रेनिंग भी दी जाती है।
योरस्टोरी से अपने स्कूल की बात करते हुए माजिन ने कहा, ' हमारे पास सीबीएससी, राज्य बोर्ड या आईसीएसई की मान्यता नहीं है। हमारे बच्चे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑपन स्कूलिंग के जरिए पंजीकृत किए जाते हैं। इससे बच्चों को अधिक बेहतर तरीके से चीजों को समझने की क्षमता विकसित होती है।' स्कूल में बच्चों का दाखिला उनकी उम्र के हिसाब से नहीं बल्कि उनके कौशल के आधार पर होता है। इतना ही नहीं, बड़ी कक्षाओं के बच्चे भी छोटी कक्षाओं के छात्रों को पढ़ाते हैं।
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