कभी पानी को तरसने वाले किसान साल में उगा रहे तीन फ़सलें, इस एनजीओ ने बदली तस्वीर
इस मुहिम की बदौलत इस क्षेत्र में हर साल 2-3 अलग-अलग फ़सलों का उत्पादन हो रहा है और उत्पादन में 60 प्रतिशत तक का इज़ाफ़ा हुआ है।
कोका-कोला इंडिया फ़ाउंडेशन (इंडिया), आनंदाना ने एनएम सदगुरु वॉटर ऐंड डिवेलपमेंट फ़ाउंडेशन के साथ मिलकर झाबुआ ज़िले में 23 नए चेक डैम्स (बांध) बनाए और साथ ही, क्षेत्र में स्थापित पुराने 6 बांधों की स्थिति को बेहतर किया। इस मुहिम की बदौलत इस क्षेत्र में हर साल 2-3 अलग-अलग फ़सलों का उत्पादन हो रहा है और उत्पादन में 60 प्रतिशत तक का इज़ाफ़ा हुआ है।
क्या है 'छोटा बिहार' की कहानी?
मध्य प्रदेश की राजधानी से करीबन 350 किमी. दूर स्थित छोटा बिहार गांव में 250 परिवार रहते हैं। इनमें से ज़्यादातर परिवारों के घर मिट्टी, बांस और अन्य पेड़ों से बने हुए हैं। यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर है। खेती प्रधान गांव होने के बावजूद भी इस क्षेत्र की आबादी पानी की किल्लत से बुरी तरह जूझ रही थी। पानी की कमी से फ़सल का उत्पादन लगातार गिरता जा रहा था और इस वजह से यहां के किसान आजीविका के बेहतर साधनों के लिए शहरों का रुख करने लगे, लेकिन वहां पर उनका शोषण हुआ और वे गांव वापस लौट आए।
2008 से इस क्षेत्र के हालात बदलने लगे, जब एनएम सदगुरु वॉटर ऐंड डिवेलपमेंट फ़ाउंजेशन नाम के एनजीओ ने इस क्षेत्र में पानी की कमी की समस्या को दूर करने का जिम्मा उठाया। एनजीओ ने देश के 9 राज्यों को चुना और इसके अंतर्गत छोटा बिहार गांव भी आया। इस गांव में सुखेन नाम की नदी बहती है, जो नर्मदा नदी की ही सहयोगी नदी है। सुखेन नदी की मदद से करीबन 100 एकड़ ज़मीन की सिंचाई की जा सकती है। एनजीओ की प्रोग्राम मैनेजर सुनीता चौधरी ने जानकारी दी कि इस क्षेत्र में अपने ऑपरेशन्स शुरू करते हुए एनजीओ ने 4 सदस्यों की एक इन-हाउस टीम को गांव में तैनात किया।
चेक डैम्स का मुख्य उद्देश्य होता है, पानी को उसके सोर्स के पास ही स्थाई रखना। एक निश्चित निकासी की व्यवस्था की मदद से अन्य जगहों पर पानी के भंडारण का इंतज़ाम किया जाता है। अगर किसी बांध का पानी ओवरफ़्लो करने लगता है तो पानी को अन्य बांधों की तरफ़ बढ़ा दिया जाता है। इस प्रक्रिया की मदद से भूमिगत जल का स्तर भी बेहतर होता रहता है।
इंटरनैशनल वॉटर मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट (आईडब्ल्यूएमआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश राज्यों में पानी की समस्या देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक है। इन राज्यों में पर्याप्त बारिश के बावजूद पानी की निकासी की अनुपयुक्त व्यवस्था और वाष्पीकरण (इवेपरेशन) की वजहों से ये क्षेत्र पीने और सिंचाई के लिए आवश्यक पानी की समस्या से जूझते रहते हैं।
एनजीओ की प्रोग्राम मैनेजर सुनीता चौधरी ने बताया, "हमने मिट्टी की गुणवत्ता, रोज़गार के प्रकारों, नदी के पानी की स्थिति और आबादी जैसे सभी अहम पहलुओं पर सर्वे किया। सर्वे के आधार पर मिले परिणामों के हिसाब से हमने अपनी रणनीति तैयार की।" रणनीति तैयार करने के बाद सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रेन्सपॉन्सिबिलिटी) समूहों को भेज दी गई। कोका-कोला इंडिया फ़ाउंडेशन के सीनियर मैनेजर राजीव गुप्ता ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत, बांधों की कुल क्षमता 410 मिलियन क्यूबिक मीटर तक है।
राजीव बताते हैं कि एक समय तक जिन क्षेत्रों में पानी की भारी किल्लत थी, वहां अब हर हफ़्ते किसान 50 लीटर तक पानी का इस्तेमाल कर पा रहे हैं। इन सब कारकों की बदौलत फ़सल के उत्पादन में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। अब इन किसानों के पास अपने ख़ुद के वॉटर पम्प्स और नदी के किनारों पर ख़ुद की ज़मीनें भी हैं।
योर स्टोरी से हुई बातचीत में सुनीता ने बताया कि एनजीओ और कोका-कोला (इंडिया) फ़ाउंडेशन की इस नेक मुहिम की बदौलत मात्र दो सालों में ही छोटा बिहार की गांव की तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। बुंदेलखंड क्षेत्र के अन्य कई हिस्सों में भी पानी की उपलब्धता चेक डैम्स की बदौलत बेहतर हुई है। इन हिस्सों में गोपालपुरा और भीमपुरा शामिल हैं।
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