कांस्टेबल से आई.पी.एस. तक का सफर
आज ‘रुक जाना नहीं’ सीरीज़ में हम एक बेहद अनूठी और प्रेरक कहानी पढ़ेंगे। राजस्थान के झुँझनू जिले के गाँव में पले-बढ़े विजय ने दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल की नौकरी की। तीन प्रयासों में UPSC की प्रारम्भिक परीक्षा में फ़ेल होकर भी हिम्मत नहीं हारी और अंततः IPS अधिकारी बने। उन्हें गुजरात कैडर में पोस्टिंग मिली है। आइए, सुनते हैं उनकी कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी।
मैं राजस्थान के झुंझुनूं जिले के देवीपुरा गाँव का निवासी हूँ। पिताजी श्री लक्ष्मण सिंह किसान है एवं माताजी श्रीमती चन्दा देवी गृहिणी है। 5 भाई-बहनों में मैं तीसरा हूँ। आरम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई है। पढ़ाई में मैं शुरू से ही औसत था, 11वीं कक्षा में पिताजी ने संस्कृत स्कूल में दाखिला दिलवाया, क्योंकि संस्कृत पढ़ने के बाद अध्यापक बनना आसान होता था और पापा चाहते थे कि मैं शिक्षक बनकर परिवार का सहारा बनूं।
संस्कृत कॉलेज से शात्री (बी.ए ऑनर्स) करने के बाद मैं सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करने लगा। लेकिन राजस्थान में शिक्षक की भर्ती, सेना की भर्ती, राजस्थान पुलिस कांस्टेबल की भर्ती में मैं असफल रहा, तभी 2009 में दिल्ली पुलिस कांस्टेबल की भर्ती निकली। मेरा एक दोस्त पहले से दिल्ली पुलिस में सिपाही था, उसने मुझे दिल्ली आकर कोचिंग जॉइन करने की सलाह दी। दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पोस्ट पर मेरा चयन हो गया। जिस दिन मेरा कांस्टेबल का परिणाम आया था, मैंने अपने पिताजी को अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा खुश देखा।
सभी मध्यमवर्गीय बच्चे की तरह मेरे भी मन में आया कि काश मैं भी आईएएस या आईपीएस होता। थोड़े दिन बाद मेरा सब-इंस्पेक्टर का परिणाम आया, जिसमें मैं पास हो गया था। इस परिणाम ने मुझमें आत्मविश्वास बढ़ाया और मैंने निश्चय किया कि मैं भी सिविल सेवा की तैयारी करूँगा।
मैंने एस.एस.सी. का पेपर दिया। ट्रेनिंग से पासआउट होने के बाद एक साल के लिए मुझे दिल्ली के संगम विहार पुलिस स्टेशन में पोस्टिंग मिली। वहां हर सब-इंस्पेक्टर दिन में 15-16 घंटे काम करता था, थाने में आकर पढ़ाई से नाता टूट सा गया। 10-11 महीने के बाद मेरा एस.एस.सी. का परिणाम आया और मुझे केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क, केरल मिला था। मैंने 2 महीने में दिल्ली पुलिस से त्यागपत्र दे दिया और केरल में कार्य ग्रहण किया।
केरल आने के बाद थोड़ा ज्यादा समय पढ़ाई को देने लगा, लेकिन हिंदी माध्यम के मैटिरियल के लिए दिल्ली जाना पड़ता था, साथ ही अकेले तैयारी करने के कारण मैं हतोत्साहित हो जाता था। मैंने दुबारा एस.एस.सी. की परीक्षा दी, इस बार मेरी अच्छी रैंक होने के कारण मुझे दिल्ली में आयकर निरीक्षक मिला। फरवरी 2014 में मैंने दिल्ली जॉइन किया।
दिल्ली आने के बाद मैंने कुछ कोचिंग में क्लासेज ली, लेकिन उनके पढ़ाने के तरीके मुझे पसंद नहीं आये तो मैंने सेल्फ़ स्टडी का ही निर्णय लिया। तीन प्रयासों में मैं प्रारम्भिक परीक्षा भी नहीं उत्तीर्ण कर पाया था। मेरा खुद से विश्वास उठने लगा था, सारी ऊर्जा लगाने के बाद भी कुछ परिणाम नहीं निकल रहा था।
इसी बीच घर वाले शादी के लिए ज़ोर देने लगे, क्योंकि मेरी सगाई 2012 में ही हो गयी थी तो 2015 में मेरी शादी हो गयी। शादी के बाद मेरी पत्नी और मेरे एक मित्र ने मुझे अगले प्रयास के लिए न केवल प्रोत्साहित किया, बल्कि हमेशा मेरा हौंसला भी बढ़ाया, मेरी कमियां दूर करने में मेरी मदद की। 2016 में मुझे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। फिर वही हुआ, अन्तिम परिणाम में मैं 8 नम्बर से बाहर हो गया। 31 मई को परिणाम आया था, मैंने तय कर लिया था कि अब और नहीं।
दो दिन तक यही सोचता रहा कि किताबें कबाड़ी को बेच देता हूँ। एक दोपहर अपने घर के बालकनी में कबाड़ी का इन्तजार कर रहा था, कि पीछे से पत्नी सुनीता आयी और बोली, “इतने दिन स्टडी की है, बस 4 महीने की बात है, एक बार और कोशिश करो”। उसके इस विश्वास ने मेरा दिमाग बदला और मैंने पूरी मेहनत से एक बार फिर परीक्षा में बैठने का फैसला लिया। इस बार मैंने अपने पिछले प्रयास की कमियों को दूर किया और आखिरकार 574 रैंक के साथ चयनित हुआ।
मेरे आसपास के 15 गांवों में मेरा आज तक का पहला चयन था। जब मैं घर गया तो करीब 2-3 हजार लोग मेरे स्वागत के लिए खड़े थे। पूरे गांव ने साथ रहकर मेरी सफलता का जश्न मनाया।
मैंने हमेशा अपने चयन को सफलता न मानकर बस एक अवसर माना है, जो मुझे उन लोगों के दुख दूर करने में सक्षम बनाएगा, जिनकी परेशानियों को मैंने नजदीक से जाना है। अंत में इतना ही कहूंगा...
जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है,
जिंदगी का असली इम्तिहान अभी बाकी है।
अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीन हमने,
अभी तो सारा आसमान बाकी है।
गेस्ट लेखक निशान्त जैन की मोटिवेशनल किताब 'रुक जाना नहीं' में सफलता की इसी तरह की और भी कहानियां दी गई हैं, जिसे आप अमेजन से ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।
(योरस्टोरी पर ऐसी ही प्रेरणादायी कहानियां पढ़ने के लिए थर्सडे इंस्पिरेशन में हर हफ्ते पढ़ें 'सफलता की एक नई कहानी निशान्त जैन की ज़ुबानी...')