‘रुक जाना नहीं’ : पहाड़ सी चुनौतियों से लड़कर पहाड़ के लड़के के अधिकारी बनने की कहानी
आज ‘रुक जाना नहीं’ किताब से प्रेरित इस मोटिवेशनल सीरीज़ में हमारे सामने है उत्तराखंड के नैनीताल के युवा, कंचन कांडपाल की प्रेरक कहानी, जिन्होंने हिंदी मीडियम से होकर पहाड़ सरीखी चुनौतियों से लड़ते हुए आख़िरकार अपना मुक़ाम हासिल किया और फ़िलहाल नागालैंड में IPS अधिकारी के रूप में सेवारत हैं।
शब्दों व भावों का संघर्ष सदियों से चला आ रहा है। भावों की सटीक अभिव्यक्ति के लिए शब्द जितनी ऊँची छलांग लगाते हैं, भावनाएँ उससे कई गुनी ऊँची दीवार खड़ी कर देती हैं, शब्द थक-हारकर चूर हो जाते हैं और ‘ज्यों गूँगा मीठे फल को रसिया’ वाली बात कहकर मन को संतोष करना पड़ता है।
31 मई, 2017 का दिन मेरे लिए कुछ ऐसा ही था, शाम के लगभग 7 बजे थे, नैनीताल की गर्मियों की ‘ठंडी हवा’ के बीच UPSC के फ़ाइनल रिज़ल्ट की PDF में अपना नाम देखना, सचमुच में अविस्मरणीय, अवर्णनीय पल था। ईश्वर की अनुकम्पा, परिजनों के आशीर्वाद व गुरुजनों के सहयोग ने जीवन को एक नया मंच दे दिया था, वर्षों से जिस पद की ओर टकटकी लगाकर देखा करते थे, आज वही IPS का पद अपने हाथ में था।
मेरा जन्म 1994 में नैनीताल में हुआ और शैक्षणिक माहौल परम्परा में मिलने के कारण सर्वश्रेष्ठ अंकों के साथ अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। कक्षा 10 में राज्य वरीयता सूची में तीसरा स्थान व 12वीं में राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। उसी वर्ष राज्य के प्रतिष्ठित पंतनगर विश्वविद्यालय में बी.टेक. पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया, वर्ष 2015 में स्नातक पूरा होने के साथ ही कैम्पस प्लेसमेंट हाथ में था, जब सभी साथी नौकरी पकड़कर मौज-मस्ती की भावी योजनाएं बना रहे थे, उसी समय मन में एक ख्याल आया, जन्म से मृत्यु तक की यात्रा तो सबने तय करनी है, हमारे इंसान होने की सार्थकता इसी बात में है कि समाज को हम क्या सौंपकर जाते हैं। बस यही विचार सिविल सेवा की तरफ अंतिम प्रेरणा साबित हुआ और किताबों की, मार्गदर्शन की खोज ने मुझे UPSC के मक्का यानी कि दिल्ली पहुँचा दिया।
युवाओं के मन में UPSC क्लिअर करने के सपनों, एक नए कल की उम्मीदों के अलावा यहाँ दिल्ली में एक भय अंदर-ही-अंदर सबको खाए जा रहा था, वह था- हिंदी माध्यम के साथ यू.पी.एस.सी का भेदभाव। मुखर्जी नगर पहुँचते ही एक बात सबने मन में बैठा दी, हिन्दी माध्यम से परीक्षा उत्तीर्ण करना उतना ही मुश्किल है, जितना किसी बॉलीवुड फिल्म को ऑस्कर से नवाजा जाना।
इसी भय के बीच कुछ सुझाव माध्यम बदल लेने के लिए भी प्रेरित कर रहे थे, हिंदी माध्यम का परीक्षाफल वर्ष-दर-वर्ष-खराब होता जा रहा था और कुछ परीक्षार्थी या तो अपने सपनों को तिलांजली देने को मजबूर हो रहे थे, तो वहीं कुछ इस पहाड़ सरीखी चुनौती से लड़ने-झगड़ने को भी तैयार थे। इन्हीं जुझारू परीक्षार्थियों में से ही कुछ ‘किरण कौशल, निशान्त जैन, प्रेम सुख डेलू’ बनकर प्रेरणा के रूप में भी स्थापित हो चुके थे।
बस, ‘दे दी चुनौती सिंधु को, तब धार क्या, मझधार क्या?’ और हम भी कूद पड़े इस ‘महासंग्राम’ में, और साथियों सच बताना चाहूँगा, हिंदी इस पूरी यात्रा में कमजोरी नहीं, बल्कि एक ताकत के रूप में साथ रही।
2016 मार्च में उत्तर प्रदेश सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा, अगस्त में UPSC सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा, सितम्बर में राजस्थान व जनवरी-2017 में उत्तराखण्ड सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा में लगातार उत्तीर्ण होता चला गया, उत्साह अपने चरम पर था और इसी उत्साह के बीच दो राज्यों की मुख्य परीक्षा व यू.पी.एस.सी. का इंटरव्यू दिया।
मई 2017 में 263वीं रैंक के साथ IPS सेवा की प्राप्ति हुई, और उस दिन उन सारे भय, आशंकाओं का भी अंत हो गया, जो छोटे शहर के युवाओं, सापेक्षिक रूप से कम संसाधन सम्पन्न क्षेत्रीय भाषाओं के परीक्षार्थियों को बड़े सपने देखने से रोकती है। दो राज्यों की सिविल सेवाओं की इंटरव्यू कॉल तथा IPS एक वर्ष के भीतर मिलना यदि संभव हुआ, तो इसका सीधा-सा अर्थ है कि अगर दृढ़ निश्चय, कुशल रणनीति व बेहतर मार्गदर्शन से अनवरत प्रयत्न किया जाएँ तो सफलता निश्चित रूप से आपके कदम चूमेगी।
युवा साथियों से यही कहूँगा कि-
‘ऊँचाइयाँ अगर बुलंद हो,
तो मौजूद हैं रास्ते,
हमें तो निकलना है बस,
तरक्की के वास्ते।’
गेस्ट लेखक निशान्त जैन की मोटिवेशनल किताब 'रुक जाना नहीं' में सफलता की इसी तरह की और भी कहानियां दी गई हैं, जिसे आप अमेजन से ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।
(योरस्टोरी पर ऐसी ही प्रेरणादायी कहानियां पढ़ने के लिए थर्सडे इंस्पिरेशन में हर हफ्ते पढ़ें 'सफलता की एक नई कहानी निशान्त जैन की ज़ुबानी...')