'रुक जाना नहीं' : किसान परिवार और आर्थिक संघर्ष से IAS तक का सफ़र, गौरव सोगरवाल की प्रेरक कहानी
‘रुक जाना नहीं’ सीरीज़ में आज की प्रेरक कहानी है भरतपुर, राजस्थान के युवा गौरव सिंह सोगरवाल की। गौरव खेती-किसानी के परिवेश में पले-बढ़े। पढ़ाई के बाद आर्थिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए नौकरी भी की। गीता के निष्काम कर्मयोग को अपना सहारा बनाया। आज उत्तर प्रदेश में IAS अधिकारी हैं और फ़िलहाल गोरखपुर में SDM हैं। कोरोना संकट के दौरान राहत कार्यों में पूर्ण निष्ठा से जुटे गौरव और उनकी IAS पत्नी की कार्यशैली की चारों ओर प्रशंसा हो रही है। सुनिए गौरव सिंह की कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी...
राजस्थान के भरतपुर जिले के गाँव जघीना के खेती-किसानी के देहाती परिवेश में मेरा बचपन बीता। बचपन से ही पिताजी ने सिविल सेवा के प्रति आकर्षण पैदा किया। ग्रामीण पृष्ठभूमि के कारण सिविल सेवा के प्रति मेरा आकर्षण निरंतर बढ़ता रहा। आमजन की समस्याओं के समाधान एवं राष्ट्र-निर्माण के रूप में सिविल सेवा मेरे लिए एक मिशन बन गया था।
मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि एक निम्न-मध्यवर्गीय ग्रामीण परिवार से जुड़ी हुई है। बचपन से ही कृषि एवं अन्य गतिविधियों में मेरा प्रत्यक्ष अनुभव रहा है। पिताजी अध्यापक थे और माताजी गृहिणी। हम तीन भाई-बहन हैं। बड़ी बहन ने जीव-विज्ञान में पी.जी. किया है और छोटा भाई एम.बी.ए. के बाद बेंगलुरु में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है।
सिविल सेवा में जाने का सपना मेरे साथ मेरे पिताजी का भी था। एक सड़क दुर्घटना में पिताजी के आकस्मिक देहावसान के बाद दुनिया काफी बदल गई। परिवार एवं आर्थिक संघर्ष के रूप में जीवन के कई सारे उतार-चढ़ावों को देखा। परंतु सिविल सेवा में जाने का सपना अब और भी ज्यादा दृढ़ हो गया। पुणे से इंजीनियरिंग करने के बाद अपनी वित्तीय बाध्यताओं को पूरा करने के लिए लगभग तीन वर्ष तक नौकरी की। वर्ष 2013 में दिल्ली आ गया।
संघर्ष के दिनों में अपनी पढ़ाई एवं पारिवारिक दायित्वों के साथ सामंजस्य स्थापित करना बड़ा दुष्कर रहा। आध्यात्मिकता ने मेरा बहुत साथ दिया। ‘श्रीमद्भगवद् गीता’ का नियमित पठन एवं इस्कॉन के साथ जुड़ाव मेरे लिए मार्गदर्शक की भूमिका में सहयोगी रहे। पहले प्रयास में मेरा प्रारंभिक परीक्षा में 1 अंक से चयन रुक गया, तो वहीं दूसरे प्रयास में 1 अंक से मुख्य परीक्षा में चयनित नहीं हो पाया। इन असफलताओं ने मुझे काफी विचलित किया। परंतु अपने संघर्ष के दिनों की याद करके और आध्यात्मिकता का सहारा लेकर मैंने दृढ़ संकल्पित हो फिर से तैयारी की। इस दौरान मेरा चयन असिस्टेंट कमांडेंट के रूप में BSF में हो चुका था, अतः रोजगार की चिंता अब ज्यादा नहीं रही। अपने तीसरे प्रयास में मैंने मुख्य परीक्षा के लिए उत्तर लेखन-शैली पर ध्यान दिया और अपनी कमजोरियों को दूर करने का प्रयास किया।
मेरी रणनीति में समाचार-पत्र एक महत्त्वपूर्ण स्थान निभाते हैं। मैंने आसपास घटने वाली घटनाओं पर बारीकी से अपनी समझ विकसित करने की कोशिश की तथा अपनी पृष्ठभूमि और अपने अनुभवों को भी अपने उत्तर में सम्मिलित किया, जिसके परिणामस्वरूप मुझे सामान्य अध्ययन मुख्य परीक्षा में बेहतर अंक मिले। निबंध के लिए समय प्रबंधन व लेखन-शैली में भी सुधार किया। आख़िर मुझे IAS में उत्तर प्रदेश कैडर मिला।
मुझे लगता है कि महापुरुषों की जीवनियाँ एवं आध्यात्मिकता आपके व्यक्तित्व को संतुलित करने में मददगार साबित हो सकती हैं। ‘निष्काम कर्मयोग’ की विचारधारा को भी स्वीकार करने की कोशिश करें।
गेस्ट लेखक निशान्त जैन की मोटिवेशनल किताब 'रुक जाना नहीं' में सफलता की इसी तरह की और भी कहानियां दी गई हैं, जिसे आप अमेजन से ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।
(योरस्टोरी पर ऐसी ही प्रेरणादायी कहानियां पढ़ने के लिए थर्सडे इंस्पिरेशन में हर हफ्ते पढ़ें 'सफलता की एक नई कहानी निशान्त जैन की ज़ुबानी...')