देशद्रोह का आरोप, 30 साल जेल में और फिर बने अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति
नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela) पूरी दुनिया में रंगभेद (racism) का विरोध करने के एक प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं. मंडेला की स्मृति को चिह्नित करने के लिए उनके जन्मदिन 18 जुलाई (18 July) को यूनाइटेड नेशंस ने दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय नेल्सन मंडेला दिवस (Nelson Mandela International day) मनाने का भी निर्णय लिया है.

ईमेज क्रेडिट: Nelson Mandela Foundation living the legacy
नेल्सन मंडेला को साउथ अफ्रीका (South Africa) का ‘गाँधी’ (Gandhi) भी कहा जाता है. जैसे गाँधी ने भारत में स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी गई थी वैसे ही दक्षिण अफ्रीका में मंडेला ने आजादी के साथ रंगभेद के खिलाफ लम्बी लड़ाई लड़ी.
लम्बी लड़ाई मतलब 3 दशक की लड़ाई. इस दौरान ही उन्होंने 27 साल जेल में काटे थे.
भारत जब अपनी आज़ादी मिलने के कगार पर था तब 1944 में मंडेला ने रंगभेद के विरूद्ध आंदोलन की शुरुआत की थी. उस वक्त मंडेला अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (African National Congress) में शामिल थे. इसी साल उन्होंने अपने दोस्तों और समर्थनकारियों के साथ मिल कर अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग (African National Congress Youth League) की स्थापना की. 1947 में वे लीग के सचिव भी चुने गये.
देशद्रोह का मुक़दमा
साल 1960 में मंडेला को गिरफ्तार किया गया और बाद में रिहा कर दिया गया. 1961 में मंडेला अंडर ग्राउंड हो गए और एक साल बाद 1962 में वे वापस अपने देश साउथ अफ्रीका आते हैं. 5 अगस्त 1962 को उनकी गिरफ्तारी होती है जिसके लिए उन्हें मजदूरों को हड़ताल के लिए भड़काने और बिना अनुमति लिए देश छोड़ने के आरोप में उसी साल नवम्बर में 5 साल की सजा सुनाई जाती है. गिरफ्तारी के बाद मुक़दमा चलाया जाता है और 1964 में मंडेला और 7 और लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है. यहीं मंडेला 27 साल, 1990 तक जेल में रहे जहां उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा था.

ईमेज क्रेडिट: Nelson Mandela Foundation living the legacy
किन-किन जेलों में रहे मंडेला?
प्रेटोरिया लोकल प्रिजन- 7 नवम्बर 1962
प्रेटोरिया लोकल प्रिजन- 1963, जब वह रॉबेन द्वीप के कारागार से वापस प्रेटोरिया प्रिजन लाये गए
रॉबेन द्वीप कारागार- जून 1964
पोल्लस्मूर प्रिजन- मार्च 1982
विक्टर वेर्स्टर प्रिजन- 7 दिसंबर 1988
11 फरवरी 1990 को विक्टर वेर्स्टर प्रिजन से मंडेला को 27 साल बाद रिहा किया गया.
जेल में सजा काटने के दौरान उन्होंने अपनी बायोग्राफी ‘लॉन्ग वॉक टू फ्रीडम’ (Long Walk to Freedom) लिखी जो 1994 में प्रकाशित हुई.
रिहाई के बाद उन्होंने नए दक्षिण अफ्रीका की नींव रखी. 1994 में दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए. अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने 62 प्रतिशत मत प्राप्त किए और बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी. और इस तरह 10 मई 1994 को मंडेला अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने.
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की जगह लोकतांत्रिक सरकार बनाने के लिए उनके संघर्ष को सम्मानित करते हुए साल 1993 में उन्हें शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया.
इतना ही नहीं, मंडेला उन दो गैर -भारतीयों में एक हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्तम सम्मान भारत रत्न (Bharat Ratan) से 1990 में सम्मानित किया गया है.