प्लास्टिक और औद्योगिक कचरे से एनवायरमेंट-फ्रेंडली ईटें बना रहा है उदयपुर के इंजीनियरिंग छात्रों का यह स्टार्टअप
भारत दुनिया में ईंटों का दूसरा सबसे बड़े उत्पादक देश है और एक वर्ष में अनुमानित 200 बिलियन ईंटों का उत्पादन करता है। यह बड़े सरकारी और निजी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में ज्यादा इस्तेमाल होती हैं। लेकिन यह कहा जाता है कि, ईंटों के उत्पादन से उच्च गुणवत्ता वाली मिट्टी की एक बड़ी मात्रा खपत होती है और इससे वायु में प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है, जो एक पर्यावरणीय खतरा है। इसलिए इन ईंटों के उत्पादन का कोई ग्रीन सलूशन होना चाहिए। हालांकि इस संबंध में राजस्थान के उदयपुर के छात्रों का एक समूह है, जो घरेलू और औद्योगिक कचरे से ईंटों का उत्पादन कर रहा है।
टेक्नो इंडिया एनजेआर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, उदयपुर के सिविल इंजीनियरिंग के छात्र, कुंजप्रीत कौर अरोड़ा, कृष्णा चौधरी, ददिप्य कोठारी, और हनी सिंह कोठारी के ग्रुप ने इस पर काफी टेस्टिंग और प्रोडक्शन किया है। उदयपुर ब्लॉग की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने एनआईटी त्रिची (NIT Trichy), तमिलनाडु में आयोजित स्मार्ट इंडिया हैकथॉन 2018 में 75,000 रुपये का इनोवेशन अवॉर्ड भी जीता है।
इस ग्रुप के दिमाग में यह आइडिया तब आया जब उन्होंने देखा कि उनके कॉलेज के ग्राउंड में तमाम प्लास्टिक की बोतलें पड़ी हैं। लेकिन उनका कोई उपयोग नहीं हो रहा है। कुंजप्रीत ने एडेक्स लाइव को बताया, "सिविल इंजीनियरिंग के छात्र होने के नाते, हमने सोचा क्यों इन बोलतों का कुछ युजफुल इस्तेमाल किया जाए।"
अपने प्रोफेसर्स के मार्गदर्शन के साथ उन्हें अपनी रिसर्च को अंजाम देने में लगभग एक वर्ष का समय लगा। इसके बाद टीम ने एक प्रोटोटाइप तैयार किया, जिसमें 30-40 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा, 40-50 प्रतिशत विध्वंस कचरा (demolition waste) और 20 प्रतिशत मार्बल और थर्मल कचरा शामिल था। घर बनाने के लिए उपयोग में आने वाली ये ईंटें 30 से 40 प्रतिशत प्लास्टिक बॉट्लस, 20 प्रतिशत मार्बल के छोटे टुकड़ों और औैद्योगिक कचरे को एक साथ मिलाकर बारीक चूरे से तैयार की जाती हैं। इसमें बाइंडर की तरह प्लास्टिक को उपयोग में लिया जाता है। साथ ही इन ईटों की खास बात ये है कि इन्हें रिसाइकल किया जा सकता है।
टीम ने पाया कि शहर की नगर पालिका को मार्बल टुकड़ों (marble slurry) के कचरे को निपटाने में काफी मुश्किल होती है। तभी उनको आइडिया आया और उन्होंने मार्बल के छोटे टुकड़ों के घोल से ईंटें बनाने का फैसला किया है। पारंपरिक ईंटों की तुलना में, ये ईंट पर्यावरण के अनुकूल हैं और कम समय में तैयार की जा सकती हैं। साथ ही, 100-120 ईंटों का निर्माण एक घंटे में सिर्फ 3 रुपये प्रति ईंट के हिसाब से किया जा सकता है।
कुंजप्रीत कहते हैं, “हम एक ईको-फ्रेडली तकनीक लेकर आए हैं जो वायु प्रदूषण को काफी कम करेगी और कचरे को भी प्रभावी ढंग से मैनेज करेगी। इससे कोई अवशेष नहीं बचेगा।"
ग्रुप ने अपने इनोवेशन को व्रिक्स (Wricks) नाम दिया है। तकनीकी के बारे में बात करें तो, पारंपरिक ईंटों की तुलना में इन ईंटों में दबाव झेलने की ताकत ज्यादा होती है। एक ईंट केवल एक-दो प्रतिशत पानी को अवशोषित करती है जबकि एक पारंपरिक ईंट 20 प्रतिशत पानी को अवशोषित करती है।
ऊंची इमारतों के लिए, पारंपरिक ईंटों के बजाय इंजीनियरों के लिए व्रिक्स (Wricks) सबसे अच्छा विकल्प होगा। व्रिक्स के आविष्कार का उद्देश्य सामाजिक कल्याण की दिशा में है, इस बारे में बात करते हुए, कुंजप्रीत ने कहा,
“जैसा कि आप देख सकते हैं, हमारी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों से भारी मात्रा में कचरा पैदा होता है और किसी को नहीं पता होता है कि इसे कम या नष्ट कैसे करना है। यहां तक कि लोगों को ये भी जानकारी नहीं है कि इसका सही उपयोग कैसे करें। हम लाल मिट्टी की ईंटों पर टिके हैं जो वायु प्रदूषण और मिट्टी के क्षरण का कारण बनती हैं। वहीं अगर हम 10 लाख 'व्रिक्स' बेचते हैं, तो इसका मतलब ये होगा कि हम सभी कैटेगरी के कचरो को मिलाकर 2,50,000 किलोग्राम कचरे को रीसायकल करेंगे।"