डिजिटल फार्मिंग से गन्ना किसान को मिला तीन गुना ज्यादा मुनाफा
इस समय पूरे देश में सक्रिय किसान कॉल सेंटर, ई-चौपाल, किसान चौपाल, ग्रामीण ज्ञान केंद्र, ई-कृषि, किसान क्रेडिट कार्ड आदि योजनाओं ने खेती में नई रफ्तार ला दी है। मोदी सरकार ने आय दोगुनी करने का वायदा किया था, किसान डिजिटल फार्मिंग (फेसबुक पेज और ह्वाट्सएप ग्रुप) के सहारे तीन गुना ज्यादा कमाई करने लगे हैं।
कभी एक जनसभा में सफलता का पाठ पढ़ाते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने मंत्र दिया था- 'बच्चों के लिए पढ़ाई, युवाओं के लिए कमाई, बुजुर्गों के लिए दवाई और किसानों के लिए सिंचाई', इसके साथ ही उन्होंने कुछ साल पहले किसानों के लिए 'डिजिटल इंडिया' का शुभारंभ किया था। उसके बाद पूरे देश में किसान कॉल सेंटर, ई-चौपाल, किसान चौपाल, ग्रामीण ज्ञान केंद्र, ई-कृषि, किसान क्रेडिट कार्ड आदि योजनाओं के माध्यम से जागरूक ग्रामीण पारंपरिक खेती छोड़कर नए-नए प्रयोग करने लगे।
फेसबुक, व्हॉट्सएप, यूट्यूब, सीडी के सहारे सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े डिजिटल एग्रीकल्चर के एग्रो-क्लाइमेटिक आधारित आधुनिक प्लेटफॉर्म ने उन्हे पंख लगा दिए। घर बैठे कृषि वैज्ञानिकों तक उनकी सीधी पहुंच हो गई। वे वीडियो देख-सुनकर खेती में अपनी किस्मत आजमाने लगे। सरकार ने तो उनकी आय दोगुनी करने का वायदा किया था, लेकिन इस समय कई किसान डिजिटल फार्मिंग से अपनी उपज का तीन गुना ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। उन्ही में एक हैं नागपुर (महाराष्ट्र) के गन्ना किसान राजेश बागल, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग की मदद से कई गुना ज्यादा कमाई की है।
वर्ष 2013 में जब राजेश ने अपने अस्ता गांव की तीन एकड़ जमीन में गन्ना लगाया तो प्रति एकड़ करीब चालीस टन फसल मिली थी। जब वह अपने ही गांव के अमोल पाटिल द्वारा संचालित 'होय एमही शेतकारी' व्हाट्सअप ग्रुप से जुड़े तो उनको जानकारी मिली कि डिजिटल तरीके से खेती करने वाले अनेक किसान तो एक एकड़ में सौ टन गन्ना पैदा कर ले रहे हैं। इस सच का उन्होंने मौके पर जाकर जायजा लिया। इसके बाद उन्होंने उनकी खेती के आधुनिक तरीके को गहराई से जाना-समझा। इसके बाद अपना स्मार्टफोन खरीद कर वह भी 'होय एमही शेतकारी' व्हाट्सअप ग्रुप से जुड़ गए और हर ताजा जानकारी साझा करने लगे। आखिरकार, डिजिटल माध्यमों से खेती कर उन्होंने भी एक एकड़ में सौ टन गन्ना पैदा कर लिया। इस बार उन्होंने अपने इलाके में स्थित केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की चीनी मिल को एक हजार टन गन्ना सप्लाई कर लगभग पचीस लाख रुपए कमाए हैं, जो उतने ही रकबे की पिछली फसल से तीन गुना अधिक रही है।
मोदी सरकार अगले तीन वर्षों में यानी 2022 तक डिजिटल टेक्नोलॉजी (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, बिग डेटा अनालिटिक्स, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स) के जरिए कृषि का आधुनिकीकरण करने में जुट गई है। इसी क्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा विकसित एक सौ मोबाइल एप्स संकलित कर अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर लिए हैं।
उधर, पंजाब के एग्रीकल्चर डेवलेपमेंट ऑफ़िसर अमरीक सिंह के 'पंजाबी यंग इनोवेटिव फार्म्स एंड एग्रीप्रेन्योर्स' व्हाट्सएप ग्रुप, सीतापुर (उ.प्र.) के विकास सिंह तोमर के 'कृषि समाधान ग्रुप', हरदोई निवासी भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. पुरुषोत्तम के 'पल्स क्रॉप प्रमोशन ग्रुप', महाराष्ट्र के अनिल बांडवाने के 'बलीराजा' व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़कर महाराष्ट्र हरियाणा, पंजाब, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश के लाखों किसान डिज़िटल खेती का पाठ पढ़ रहे हैं।
एक ऐसे ही फेसबुक ग्रुप 'सुगर केन ग्रोवर ऑफ इंडिया' में तो पाकिस्तान तक के किसान जुड़ गए हैं। इतना ही नहीं, किसान अपनी पसंद और जरूरतों के हिसाब से स्वयं के व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पेज बना रहे हैं। उधर, कृषि प्रौद्योगिकी कंपनी 'क्रॉपइन' खेती में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) और सैटेलाइट तकनीक पर जोर दे रही है। इसी कड़ी में वह स्मार्ट रिस्क और स्मार्ट फार्म प्रोग्राम (नया ऐप) लॉन्च कर डिजिटल प्लेटफॉर्म खेतों से रीयल-टाइम अलर्ट जुटा रही है।