समझिये क्या है ED और कैसे काम करता है?
क्या करता है प्रवर्तन निदेशालय उर्फ़ ईडी, क्या है इसका इतिहास और किन क़ानूनों के तहत काम करता है यह.
हम अक्सर ईडी के छापों की खबरें पढ़ते रहते हैं. पिछले महीने वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्य सभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए बताया कि पिछले आठ सालों [2014-2022] में ईडी ने 3010 छापे मारे हैं. उसके मुक़ाबले 2004-2014 के बीच 112 छापे मारे गए थे. पिछले आठ सालों में 99,356 करोड़ रुपए की सम्पत्ति अटैच की गयी है जबकि 2004-2014 के बीच 5,346 करोड़ रुपये की सम्पत्ति ज़ब्त की गयी थी. आइए समझते हैं ईडी के इतिहास और उसके काम को.
एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग में आने वाली संस्था है. ईडी वित्तीय रूप से किए गए गैरकानूनी कामों जैसे मनी लॉड्रिंग और फॉरेन एक्सचेंज वायलेशन की छानबीन करती है. विदेश में कर चोरी करके भेजे गए पैसे, वहाँ बनायी गयी सम्पत्ति इसके काम के दायरे में आते हैं. इसका मुख्यालय दिल्ली में है और देश के अलग-अलग शहरों में इसके जोनल ऑफिस हैं.
1947 में देश आज़ाद होने के बाद FERA यानि फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (Foreign Exchange Regulation Act) बना था. तब यह वित्त मंत्रालय का डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स के तहत आता था पर 1960 में इसे रिवेन्यू डिपार्टमेंट (Revenue department) के अंतर्गत शिफ्ट किया गया जो आज तक कायम है. बाद में इसका नाम बदलकर डायरेक्टरेट ऑफ एनफोर्समेंट या एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट रखा गया जिसका संक्षिप्त रूप ED आम प्रचलन में है. ईडी में मुख्यतः भारतीय राजस्व सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी तैनात किए जाते हैं. 1973 में FERA में एक संशोधन हुआ जिसके बाद फ़ॉरेन एक्सचेंज में काम करने के लिए अधिकृत डीलर होना आवश्यक कर दिया गया. उस संशोधन अधिनियम के द्वारा किसी भारतीय नागरिक द्वारा किसी विदेशी से सीधे पैसों के लेनदेन को ग़ैरक़ानूनी बना दिया गया.
90 के दशक में बाज़ार का उदारीकरण होने के बाद देश में काफी मात्रा में फॉरेन एक्सचेंज आने की वजह से डिपार्टमेंट को मैनेजमेंट की जरूरत हुई. और तभी इस एक्ट को बदलकर FEMA - फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट 1991 - कर दिया गया. 2002 में जब प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट बना तो सरकार ने तय किया कि इसका एनफोर्समेंट ईडी करेगी. 2018 जब सरकार ने देखा कि आर्थिक अपराधी काफी संख्या में देश से बाहर भाग रहे हैं तो फ्यूजिटिव ऑफेंडर एक्ट लाया गया और इसके क्रियान्वयन को भी ईडी के अंतर्गत रखा गया.
ईडी मुख्यतौर पर इन्हीं तीन कानूनों के अंतर्गत काम करती है:
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999 (Foreign Exchange Management Act- FEMA)
FEMA के अंतर्गत ईडी फॉरेन एक्सचेंज में वायलेशन में जांच करता है. FEMA विदेशी व्यापार, भुगतान और विदेशी मुद्रा विनिमय के सुव्यवस्थित संचालन के लिए प्रावधान करता है और उनसे जुड़े सभी उल्लंघनों की छानबीन के लिए ईडी अधिकृत है.
धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (Prevention of Money Laundering Act- PMLA)
PMLA को मनीलॉन्ड्रिंग को रोकने या मामले में शामिल अवैध संपत्ति को जब्त करने के लिए बनाया गया. PMLA के तहत ईडी को संपत्ति जब्त करने, छापा मारने और गिरफ्तारी का अधिकार मिला है. ईडी की ताकत अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि एजेंसी पूछताछ के बिना भी संपत्ति जब्त कर सकती है. गिरफ्तारी के समय ईडी कारण बता भी सकती है, नहीं भी बता सकती है.
भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम 2018 (Fugitive Economic Offenders Act- FEOA)
FEOA को आर्थिक अपराधियों को भारत से भागने से रोकने के लिए बनाया गया है. ईडी भगोड़े अपराधियों की संपत्ति कुर्क कर सकती है और केंद्र सरकार से अटैच कर सकती है. भगोड़े के प्रत्यर्पण में कठिनाई को देखते हुए उसकी पूरी संपत्ति को अटैच करने का अधिकार ईडी को दिया गया है.
इसके अलावा, ईडी एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट की बड़ी आर्थिक धोखाधड़ी के मामले भी देखती है. अगर किसी ने भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा अपने पास रखी या विदेशी मुद्रा का अवैध व्यापार किया है तो इसकी जांच भी ईडी करती है.
ईडी के अधिकार:
आमतौर पर ऐसा होता है कि सरकारी जाँच एजेंसियाँ जैसे सी.बी.आई केंद्र सरकार, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से आदेश मिलने पर जांच करती हैं. राज्य के मामले में राज्य सरकार की अनुमति जरूरी होती है. लेकिन ईडी को इन सब अनुमतियों से परे रखा गया है. ईडी को अगर किसी मामले की जानकारी पुलिस से पहले लग जाती है तो वह जाँच शुरू कर सकती है. सामान्यतः किसी थाने में एक करोड़ रुपये या उससे ज्यादा की हेराफेरी का मामला दर्ज होने पर पुलिस ईडी को इसकी जानकारी देती है. इसके बाद ईडी थाने से एफआईआर या चार्जशीट की कॉपी लेकर जांच शुरू करती है.
ईडी के पास मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपियों के खिलाफ जब्ती और गिरफ्तारी के अधिकार हैं. एक जांच अधिकारी के सामने भी दिया गया बयान कोर्ट में सबूत माना जाता है.
ईडी की गिरफ्तारी में जमानत मिलना मुश्किल होता है. पीएमएलए मामलों में ईडी तीन साल तक आरोपी की जमानत रोक सकती है.
ईडी देश के बाहर चल रही मनीलॉन्ड्रिंग की जांच में भी को-ऑपरेट करती है.
क्योंकि ईडी को आर्थिक अपराधों के लिए राजनेताओं या सरकारी अधिकारियों को तलब करने की खातिर सरकार की हरी झंडी की जरूरत नहीं पड़ती इसीलिए इसके एक्शन की टाइमिंग पर खूब सवाल उठते हैं. विपक्षी दल आरोप लगाते हैं कि ईडी को महत्वपूर्ण चुनावों से पहले विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है.