एक कमेंट ने गिरीश को दिया था इंडिया की पहली SaaS यूनिकॉर्न Freshworks को शुरू करने का आईडिया
चेन्नै के रहने वाले गिरीश मातृबूथम ने 2010 में फ्रेशडेस्क नाम से क्लाउड बेस्ड कस्टमरहेल्प सर्विस कंपनी शुरू की. 2017 में नाम बदलकर फ्रेशवर्क्स किया और फिर 2018 में 100 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाने के साथ यूनिकॉर्न बन गई.
आप अगर कॉरपोरेट एंप्लॉयी हैं तो आप भी पंचइन-पंचआउट से लेकर, काम करने, छुट्टियां अप्लाई करने सभी कामों के लिए एक खास तरह का सॉफ्टवेयर जरूर इस्तेमाल करते होंगे. अगर करते हैं तो इनमें आने वाले एरर से भी आप कभी न कभी फ्रस्टेट हुए होंगे और फिर फ्रस्ट्रेट होकर कंपनी को कोसा भी होगा.
मगर क्या आपने सोचा है कि आपसे बड़ी विक्टिम तो यहां पर खुद आपकी कंपनी है क्योंकि उसने किसी को इस सॉफ्टवेयर के लिए मोटी तगड़ी रकम चुकाई है. उसके बाद भी काम बनने की जगह बिगड़ता रहे तो आप सोच सकते हैं कंपनियों पर क्या बीतती होगी?
दरअसल जैसे हम अपने घर में सफाई का काम आसान करने के लिए वैक्यूम क्लीनर खरीदते हैं, कपड़े धोने के लिए वॉशिंग मशीन, बर्तन धोने के लिए डिश वॉशर वैसे ही कंपनियां भी अपने काम को आसान, एफिशिएंट और ऑर्गनाइज्ड बनाने के लिए सॉफ्टवेयर खरीदती हैं. और जो कंपनियां ये सॉफ्टवेयर बेचती हैं वो SaaS कंपनी कहलाती हैं.
आज हम आपको बताएंगे एक ऐसी कंपनी के बारे में जिसने SaaS कंपनियों के निगेटिव इमेज के बीच न सिर्फ खुद को क्वॉलिटी प्रॉडक्ट देने वाली कंपनी के तौर पर खड़ा किया बल्कि यूनिकॉर्न कंपनी का दर्जा भी हासिल किया. हम बात कर रहे हैं
की.चेन्नै से हुई थी शुरुआत
फ्रेशवर्क्स को चेन्नै के रहने वाले गिरीश मातृूबूथम ने अपने दोस्त शान कृष्नासामी के साथ मिलकर बिजनेसेज को कस्टमर हेल्प सर्विस प्रोवाइड कराने के मकसद से 2010 में शुरू किया था. तब उसका नाम Freshdesk रखा गया जो कस्टमर हेल्प सर्विस मतलब कि कंपनियों को कस्टमर्स की परेशानियों से डील करने, उन्हें मैेनेज करने वाला सिस्टम था.
इसे एक उदाहरण से समझते हैं. आप कभी न कभी किसी न किसी कंपनी से त्रस्त होकर उसके कस्टमर हेल्प सर्विस ऑप्शन पर पहुंचे ही होंगे. कई बार ऑर्डर का स्टेटस जानने के लिए तो कई बार रिटर्न/रिफंड के लिए तो कई बार कोई शिकायत दर्ज कराने के लिए. इन सब के दौरान आपका सामना एक चैटबॉट से हुआ होगा, जो आपसे कुछ सवाल पूछकर कुछ उपाय बताता है. अगर बात नहीं बनी तो फिर एजेंट के पास कॉल जाती है.
ये सारी प्रक्रिया एक खास तरह के सॉफ्टवेयर पर होती है, जिसके जरिए कंपनियां अपने कस्टमर्स की शिकायतों का ट्रैक रख पाती हैं. Freshworks भी कंपनियों को बस इसी तरह का हेल्प डेस्क सिस्टम प्रोवाइड कराती है.
फेल रहा पहला स्टार्टअप
इस कंपनी को बनाने में गिरीश की प्रोफेशनल करियर का बहुत बड़ा रोल रहा है. मद्रास यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद फरवरी 1999 में गिरीश की मेंबर टेक्निकल स्टाफ के पोस्ट पर HCL-सिस्को में नौकरी लग गई.. लेकिन ये उनकी पहली नौकरी नहीं थी. इससे पहले चेन्नै की एक कंपनी पोलारिस सॉफ्टवेयर ने अपने प्रॉडक्ट मैनेजर्स को जावा लैंग्वेज की ट्रेनिंग के लिए गिरीश को बुलाया था, जिसके बदले उन्हें 28500 रुपये मिले थे.
एचसीएल में 15 महीने काम करने के बाद गिरीश ने ईफोर्स जॉइन कर लिया. जहां उन्होंने सॉफ्टवेयर इंजीनियर की तरह 13 महीने काम किया. ये 2001 की बात है, उस समय डॉटकॉम बबल की वजह से ढेरों नौकरियां जा रही थीं. इसी बीच गिरीश वापस लौट आए और माइंडशेयर नाम से अपनी ट्रेनिंग कंपनी शुरू की. इस वेंचर में उनके कॉलेज के दो दोस्तों ने पैसा लगाया लेकिन पॉजिटिव रेस्पॉन्स नहीं मिला और तीनों के पैसे डूब गए.
नौकरी से मिला कॉन्फिडेंस
अब गिरीश बेरोजगार थे और उन्हें बेसबरी से परमानेंट नौकरी की दरकार थी. किसी रेफरेंस की बदौलत उन्हें जोहो (पुराना नाम एडवेंटनेट) में इंटरव्यू देने का मौका मिला. HR ने जब उनसे इंटरव्यू के दौरान पूछा कि 5 साल में आप खुद को कहां देखते हैं. इस पर गिरीश ने जवाब दिया मैं अपनी खुद की कंपनी शुरू करूंगा. गिरीश को एडवेंटनेट के सॉफ्टवेयर सलूशन के लिए प्री-सेल्स डेमो तैयार करने की जॉब मिल गई.
गिरीश अपनी जिंदगी में फ्रेशवर्क्स को शुरू करने से ज्यादा जोहो में काम करने के दौर को वैल्यू देते हैं. जब एक कंपनी में आपको इतना कुछ सीखने को मिले तो उसे क्रेडिट देना जायज भी लगता है.
गिरीश को 2002 में जोहो में प्रॉडक्ट मैनेजर बनने का मौका मिला. तब तक उन्हें ये भी नहीं मालूम था कि प्रॉडक्ट मैनेजमेंट होता है क्या? खैर उनके काम को देखते हुए 2005 में उन्हें प्रॉडक्ट मैनेजमेंट का डायरेक्टर बना दिया गया. 2009 तक गिरीश कंपनी में प्रॉडक्ट मैनेजमेंट के वाइस प्रेजिडेंट बन चुके थे. गिरीश ने 2009 में टेक्सस से वापस चेन्नै शिफ्ट होने का फैसला किया. इस शिफ्टिंग की प्रक्रिया में उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने गिरीश के दिमाग में आइडिया ही पैदा कर दिया.
यहां से आया आईडिया
गिरीश अपने घर का सारा सामान वापस चेन्नै भेज रहे थे. वो शिपिंग कंपनी से सामान भिजवा रहा था उसने उनका टीवी तोड़ दिया. गिरीश लगातार 5-6 महीने तक फोन करते रहे मगर कंपनी से कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला. न इंश्योरेंस क्लेम का पैसा दिया. गुस्से में गिरीश ने ट्विटर पर अपनी शिकायत पोस्ट कर दी. और फिर कंपनी के सीईओ ने माफी मांगी और अगले ही दिन उनका पैसा वापस हो गया.
ये वाकया 2010 के शुरू का है. उस समय ट्विटर और फेसबुक का इस्तेमाल कस्टमर सर्विस के लिए होना शुरू ही हुआ था. इस वाकये ने गिरीश के दिमाग में खलबली मचा दिया. गिरीश को इस स्पेस में एक नया प्रॉडक्ट को लाने का मौका दिखाई दिया. मगर अभी भी ये आइडिया उनके दिमाग के किसी कोने में ही था. इसके बात हुए एक इंसिडेंट ने उस आइडिया को दिमाग के कोने से निकाल एग्जिक्यूट करने पर मजबूर कर दिया.
गिरीश हैकर न्यूज पर एक आर्टिकल पढ़ रहे थे. उसमें बताया गया था कि जेनडेस्क ने अपनी सर्विसेज के दाम 60 से 300 फीसदी तक बढ़ा दिए हैं और उनके कस्टमर इससे काफी नाखुश थे. उस आर्टिकल के कमेंट में किसी ने लिखा था, मार्केट में इस समय कस्टमर सपोर्ट स्पेस में खुला मौका है. कोई अक्लमंद शख्स आराम से इस मौके का फायदा उठा सकता है, सही टाइमिंग और सही प्राइसिंग रखकर जेनडेस्क और ईसपोर्ट्स के कस्टमर्स को अपना बना सकता है.
गिरीश के लिए ये कमेंट बिल्कुल आईओपनिंग मूमेंट था. गिरीश अपनी कंपनी के ब्लॉग में लिखते हैं, जोहो में रहते हुए कस्टमर हेल्पडेस्क सिस्टम्स पर काम करने का मेरे पास अच्छा खासा अनुभव था, मुझे मार्केट के बारे में मालूम था. क्लाउड कम्प्यूटिंग स्पेस में उस वक्त जो भी कुछ हो रहा था सब पर मेरी नजर थी. डोमेन जानकारी भी थी. इन सबके बाद भी अगर मैं इस फायदे को नहीं भुनाता तो ये मेरी बेवकूफी ही होती. बिना देर किए उन्होंने कस्मटर सपोर्ट मार्केट में एक SaaS कंपनी शुरू करने का फैसला किया. इस एक फैसले ने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल दी.
6 लोगों की टीम के साथ शुरू की कंपनी
गिरीश के लिए अगले कुछ सप्ताह काफी तनाव भरे बीते, एक्साइटमेंट और डर दोनों था. डर ये कि काम के साथ ये स्टार्टअप, फिर स्कूल की फीस, घर का लोन वगैरह ये सब कैसे जाएगा. मगर उन्होंने स्टार्टअप के साथ जाने का फैसला किया. इस स्पेस की सभी कंपनियों पर रिसर्च की. कुछ डोमेन नाम फाइनल किए. उन्हें मालूम पड़ा कि freshdesk.com नाम का डोमेन कुछ दिन में एक्सपायर हो रहा है. उन्होंने डोमेन नेम को बैकऑर्डर किया और एक महीने से कम समय के अंदर वो डोमेन नेम उन्हें मिल गया.
अब गिरीश को जरूरत थी एक को-फाउंडर की. गिरीश के साथ जोहो में शान कृष्नासामी काम करते थे जो टेक के मामले में बेजोड़ थे. गिरीश ने शान के सामने प्रपोजल रखा और शान ने एक्सेप्ट कर लिया. दोनों ऑफिस का काम खत्म करके, फ्रेशडेस्क पर भिड़ते. कई सप्ताह तक ऐसा ही चलता रहा. मगर बाद में दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि अगर Freshdesk को सफल बनाना है तो इसे पूरा टाइम देना होगा. फिर दोनों ने अक्टूबर 2010 में एक साथ कंपनी से रिजाइन कर दिया.
दो लोगों की टीम 6 लोगों की हो चुकी थी,- जिसमें 3 डिवेलपर्स, 1 UI/UX designer, और 1 QA / कस्टमर सपोर्ट इंजीनियर थे. गिरीश खुद सीईओ और प्रॉडक्ट मैनेजर बने.
अब बारी आई कंपनी को रजिस्टर कराने की. गिरीश बताते हैं कि वो कंपनी इंडिया में शुरू करना चाहते थे मगर उस समय इंडिया में कोई ऐसा पेमेंट गेटवे प्रोवाइडर नहीं था जो रेकरिंग पेमेंट सलूशन ऑफर कर रहा हो. हम जिन पेमेंट प्रोसेसर्स के साथ काम करना चाहते थे वो सभी अमेरिकी बैंक अकाउंट के साथ काम करते थे. इसलिए हमने Freshdesk को अमेरिका में इनकॉरपोरेट करने का फैसला किया. उन्हें इंडिया में भी बिजनेस करना था इसलिए एक कंपनी यहां भी रजिस्टर कराई.
गिरीश ने जब अपने शुरुआती कस्टमर्स के पैटर्न को देखा तो उन्हें बड़ी अनोखी चीजें मालूम पड़ी. उन्हें दो तीन चीजें समझ में आईं वो ये कि मौजूदा कस्टमरहेल्प सॉफ्टवेयर अभी कंपनियों की बेसिक प्रॉब्लम ही सॉल्व नहीं कर पा रहे थे. फेसबुक, ट्विटर पर होने वाली शिकायतों को टिकट सिस्टम में बदलने वाला फीचर भी यूनिका था, वो काम भी करता लेकिन मार्केट को अभी इसकी जरूरत नहीं है.
दूसरा उन्हें ये समझ आया कि SMB कस्टमर एक ऐसा सलूशन चाहते हैं जो सस्ता हो और कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट का एक इंटीग्रेटेड सलूशन हो. यानी कस्टमर रिलेशनशिप सर्विस से जुड़ी सभी चीजें एक ही सिस्टम के अंदर. इन्हीं नतीजों के आधार पर गिरीश ने अपने प्रॉडक्ट को अपडेट कर लिया.
पहले ही दिन बन गई MNC
अब कंपनी ने Freshdesk की बीटा टेस्टिंग यूजर्स को इनवाइट भेजना शुरू किया. साथ में शुरू की तगड़ी मार्केटिंग. आज के डिजिटल युग में अगर आप स्मार्ट हैं तो डिजिटल मार्केटिंग के जरिए बड़े कम पैसों में आप अपनी मार्केटिंग कर सकते हैं. गिरीश ने भी यही काम किया.उन्होंने गूगल ऐडवर्ड्स, फेसबुक और लिंक्डइन पर 10 से 50 डॉलर के खर्च पर मार्केटिंग शुरू की.
कई ब्लॉग पोस्ट भी लिखे गए जिन पर काफी अच्छे व्यूज आए. और कुछ ही समय बाद कंपनी ने मार्केटिंग पर 350 से 400 डॉलर के खर्च के बदले 150 साइनअप यानी क्लाइंट हासिल कर लिए. गिरीश को जब पहले ही 100 दिनों में 100 कस्टमर और 200 दिनों में 200 कस्टमर मिले तब उन्हें भरोसा हो गया कि वो वाकई कुछ जबरदस्त कर रहे हैं.
Freshdesk ने कस्टमर सपोर्ट सर्विस के फील्ड में तहलका मचा दिया. इसने खासकर SMB कंपनियों के लिए कस्टमर्स के साथ कनेक्ट करना, उनकी शिकायतों को सॉल्व करने का प्रोसेस बड़ा आसान और किफायती कर दिया जिसकी उस समय मार्केट में बहुत बड़ी डिमांड थी. कुछ समय बाद उसने सोशल मीडिया पर होने वाली कस्टमर की शिकायतों को सॉल्व करने का सिस्टम भी सॉफ्टवेयर में जोड़ दिया.
इसके अलावा Freshdesk एंप्लॉयीज के साथ भी कनेक्ट और कम्यूनिकेट करने वाले सलूशन ऑफर करने लगी थी.मतलब कंपनियां फ्रेशवर्क्स के सॉफ्टवेयर को खरीदकर एंप्लॉयीज और कस्टमर दोनों को मैनेज कर सकती थीं, जो उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं था.
फ्रेशवर्क्स को मार्केट से बहुत तगड़ा रेस्पॉन्स मिला. कंपनी को पहला कस्टमर ऑस्ट्रेलिया से मिला. इसके बाद पांच और कस्टमर अलग अलग देशों से मिले. इस तरह पहले ही दिन से कंपनी मल्टीनैशनल कंपनी बन चुकी थी.
फ्रेशडेस्क Vs कॉम्पिटिटर्स
Freshdesk के शुरुआती दिनों से इसके कॉम्पिटीटर्स के साथ इसकी तगड़ी फाइट रही है. पहला नाम तो जेनडेस्क का ही है. जब Freshdesk लॉन्च हुआ तो जेनडेस्क के सीईओ ने गिरीश पर उससे मिलता जुलता नाम रखने का आरोप लगाया. गिरीश ने बड़ी चालाकी से इस आरोप को कैपिटलाइज कर लिया.
उन्होंने ट्विटर पर जेनडेस्क के आरोप की फोटो लगाकर खुद यूजर्स से कहा कि आप ही फैसला किजिए आखिर हमने क्या गलत किया है? और इस तरह नई नवेली Freshdesk को सालों पुरानी कंपनी जेनडेस्क के बराबर फेम मिल गया.
इसी तरह फ्रेशवर्क्स ने 2018 में दूसरे बड़े कॉम्पिटीटर सेल्सफोर्स के इवेंट के दौरान उसके ही टावर के ऊपर फेल्सफोर्स लिखा हुआ एक बड़ा सा पैराशूट जैसा बड़ा गुब्बारा उड़ा दिया. वह लोगों को ये मैसेज देना चाहती थी कि उन्हें सेल्सफोर्स जैसे महंगे सॉफ्टवेयर को यूज करना बंद कर देना चाहिए.
कुछ ही घंटों के अंदर ट्विटर Freshdesk के टैग्स से भर गया. इस कैंपेन ने उसे फोर्ब्स से लेकर, ऐडवी और टेकक्रंच जैसे पब्लिकेशन में कवरेज दिलाई. इस तरह Freshdesk को एक बार फिर मुफ्त की पब्लिसिटी मिल गई.
कहते हैं जब आप तेजी से ग्रो करते हैं तो आपको क्रिटिसाइज करने वाले भी उसी रफ्तार जमा हो जाते हैं. जेनडेस्क के बाद अगला आरोप जोहो ने लगाया. जोहो ने गिरीश पर आरोप लगाया कि उन्होंने वहां के कॉन्फिडेंशियल जानकारी को चुराकर उसके आधार पर ही Freshdesk को बनाया है.
बिजनेस मॉडल
गिरीश को शुरुआती दिनों में ही असल प्रॉब्लम समझ आ चुकी थी. बिजनेस सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए बहुत बड़ा हेडेक थे. बिजनेस सॉफ्टवेयर का नाम सुनकर कंपनियों के दिमाग में दो ही चीज आती थी ढेर सारा खर्चा और समय की खपत.. इसलिए गिरीश ने Freshdesk को न सिर्फ किफायती रखा बल्कि ईजी टू गो रखा.
उनके मुताबिक जहां बाकी दूसरे प्रोवाइडर्स के टूल को इंप्लीमेंट करने में एक डेढ़ साल लग जाते थे वहीं उनका प्रॉडक्ट तीन से चार सप्ताह में पूरी तरह रेडी टू यूज था. इसी वजह से कंपनी का यूजर बेस बड़ी तेजी से बढ़ता गया और उसके क्लाइंट प्रोफाइल में बड़े बड़े नाम शामिल होते गए.
नए प्रॉडक्ट्स और रिब्रैंडिंग
समय के साथ Freshdesk बिजनेसेज के लिए नए-नए प्रॉडक्ट लाते गई. फ्रेशडेस्क आज की तारीख में 5 तरह की सर्विस ऑफर करती है- सपोर्ट डेस्क, मैसेजिंग, कॉन्टैक्ट सेंटर, ऑम्निचैनल सूइट, कस्टमर सक्सेस. सबसे पहला प्रॉडक्ट फ्रेशडेस्क- जो कंपनियों को कस्टमर्स के साथ आसानी से कम्यूनिकेट करने की फैसिलिटी देता है.
अगला आया फ्रेशटीम- HR डिपार्टमेंट के लिए है, फ्रेशसर्विस- IT सर्विस मैनेजमेंट की फैसिलिटी देती है, फ्रेशमार्केटर- एक मार्केटिंग ऑटोमेशन टूल है जो कस्टमाइज मैसेज भेजने की सर्विस देता है, फ्रेशसेल्स- सेल्स बढ़ाने का वादा करता है और फ्रेशचैट- बिजनेसेज को रियल टाइम चैट सॉफ्टवेयर के जरिए सलूशन प्रोवाइड करने में हेल्प करती है. ये सभी ऐप मिलकर एक कस्टमर सपोर्ट सिस्टम क्रिएट करते हैं. ऐसे सिस्टम को खासकर SMB क्लाइंट्स से काफी पॉजिटिव रेस्पॉन्स मिला है. आज कंपनी के 145 देशों में एक लाख से ज्यादा क्लाइंट है.
कंपनी अब खुद को एक मल्टी प्रॉडक्ट ब्रैंड की तरह पोजिशन करना चाहती थी. मगर एक दिक्कत थी कंपनी भले कई प्रॉडक्ट्स ऑफर कर रही थी मगर उसका नाम अभी भी Freshdesk ही था, जो उसके एक प्रॉडक्ट का नाम था. इसलिए 2017 में गिरीश समेत अन्य एग्जिक्यूटिव्स ने कंपनी का नाम बदलकर Freshworks करने का फैसला किया.
फंडिंग और एक्विजिशन
अभी तक गिरीश ने कंपनी के लिए किसी से कोई फंड नहीं लिया था. उन्होंने दोस्तों करीबी रिश्तेदारों से पैसे लेकर ही कंपनी शुरू की. फ्रेशवर्क्स के बढ़ते मार्केट शेयर की वजह से धीरे धीरे इनवेस्टर्स का ध्यान उसकी तरफ जा रहा था. फिर 2011 में कंपनी को एक्सेल पार्टनर्स से 1 मिलियन डॉलर का पहला फंड मिला. दूसरे राउंड में टाइगर ग्लोबल और एक्सेस से 5 मिलियन डॉलर का फंड मिला.
इसी तरह सातवें राउंड फंडिंग में कंपनी को जुलाई, 2018 में एक्सेल और सिकोया से 100 मिलियन डॉलर का निवेश मिला और फ्रेशवर्क्स यूनिकॉर्न कंपनी बन गई. यह इंडिया की पहली SaaS कंपनी थी. अब तक कंपनी 9 राउंड में टोटल 484 मिलियन डॉलर का फंड जुटा चुकी है.
गिरीश बताते हैं जब भी उन लोगों फंडिंग प्लान किया उन्हें एक से बढ़कर एक इनवेस्टर्स से प्रपोजल मिला. यही रीजन था कि उन्हें बेस्ट इनवेस्टर्स को चुनने का मौका मिला और आज उनके पास एक्सेल, सिकोया, टाइगर जैसे नाम इनवेस्टर की तरह जुड़े हुए हैं.
फ्रेशवर्क्स ने अब तक 13 कंपनियों का अधिग्रहण किया है. इनमें आंसरआईक्यू, कैनवसफ्लिप, जारगेट, नटेरो जैसे नाम शामिल हैं. फ्लिंट उसका सबसे हालिया अधिग्रहण है जो उसने 9 जुलाई, 2020 को किया है.
शेयर बाजार में एंट्री
फ्रेशवर्क्स का IPO 22 सितंबर को 2021 को लिस्ट हुआ और वह अमेरिकी बाजार में लिस्ट होने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई. लिस्टिंग से फ्रेशवर्क्स को 1.03 बिलियन डॉलर का फंड मिला और वैल्यूएशन बढ़कर 10 बिलियन डॉलर हो गया. NASDAQ पर उसकी लिस्टिंग के बाद शेयरों को काफी तगड़ा रेस्पॉन्स मिला और एक समय इसका वैल्यूएशन 12 बिलियन डॉलर के भी पार निकल गया.
रेवेन्यू और कमाई
कड़ी मेहनत की बदौलत कंपनी ने 8 सालों के अंदर-अंदर 2018 रेवेन्यू 100 मिलियन डॉलर तक पहुंचा लिया. एक साल बाद ही कंपनी का रेवेन्यू बढ़कर 200 मिलियन डॉलर पहुंच गया और कस्टमर बेस डेढ़ लाख से बढ़कर 2 लाख 20 हजार हो गया. फरवरी 2021 में ही कंपनी ने 300 मिलियन डॉलर का मार्क छू लिया.
अगर आंकड़ों को कैलकुलेट करें तो निकलकर आता है कि कंपनी ने महामारी के दौरान भी 40 फीसदी सालाना के हिसाब से ग्रोथ हासिल की है. कंपनी इस समय अमेरिका, यूरोप के पेरिस, नीदरलैंड्स, फ्रांस जैसे देशों से लेकर, जापान, इंडिया में अपने दफ्तर खोल चुकी है. कंपनी ने मार्च तिमाही में 42 पर्सेंट का रेवेन्यू ग्रोथ हासिल किया है. मगर कंपनी का लॉस कुछ बढ़ा है. कंपनी को मार्च तिमाही में 49.1 मिलियन डॉलर का घाटा हुआ जो 2021 के मार्च तिमाही में 2.4 मिलियन डॉलर ही था.