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भारत में 4.5 फीसदी परिवारों को चला रहीं हैं सिंगल मदर्स: संयुक्त राष्ट्र महिला रिपोर्ट

भारत में 4.5 फीसदी परिवारों को चला रहीं हैं सिंगल मदर्स: संयुक्त राष्ट्र महिला रिपोर्ट

Friday July 12, 2019 , 2 min Read

"सकारात्मक बदलाव के बावजूद, भारत में घर चलाने वाली सिंगल मदर के परिवार में गरीबी दर 38 फीसदी है, जबकि दंपति द्वारा चलाए जा रहे परिवार में 22.6 फीसदी है, क्यों?"



Single mother

(फोटो: Shutterstock)



हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र महिला की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 4.5 फीसदी घरों को सिंगल मदर्स चला रही हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सिंगल मदर्स की संख्या 1.3 करोड़ है। रिपोर्ट के मुताबिक अनुमानित ऐसी ही 3.2 करोड़ महिलाएं संयुक्त परिवारों में भी रह रही हैं।


इस रिपोर्ट में 89 देशों के परिवारों का सर्वेक्षण किया गया। इसमें कहा गया है कि दुनिया में दस सिंगल पेरेंट परिवारों में से आठ को महिलाएं (84 फीसदी) चला रही हैं। इस लिहाज से दुनिया में 10.13 करोड़ परिवारों में सिंगल मदर अपने बच्चों के साथ रहती हैं। जबकि कई अन्य सिंगल मदर संयुक्त परिवारों में रहती हैं।


रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में महिलाएं और पुरुष विवाह में देरी कर रहे हैं, इसलिए अधिक महिलाएं अपनी शिक्षा पूरी करने, खुद को श्रम शक्ति में स्थापित करने और आर्थिक रूप से खुद का समर्थन करने में सक्षम हो रही हैं। सकारात्मक बदलाव के बावजूद, भारत में घर चलाने वाली सिंगल मदर के परिवार में गरीबी दर 38 फीसदी है, जबकि दंपति द्वारा चलाए जा रहे परिवार में 22.6 फीसदी।




इसके प्रमुख कारणों में से एक, रिपोर्ट कहती है कि जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (डीएचएस) के अनुसार केवल 26 प्रतिशत ही अुपनी खुद की एक आय प्राप्त कर पाती हैं, जबकि उनमें से अधिकांश अपने पति या परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों पर निर्भर होती हैं। ।


रिपोर्ट में सिंगल मदर्स के नेतृत्व वाले परिवारों में अस्थिर आय का मुकाबला करने के लिए समाधान की पेशकश भी की गई है, जैसे कि विविध और गैर-भेदभावपूर्ण पारिवारिक कानून, सुलभ यौन और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल, महिलाओं के लिए पर्याप्त आय की गारंटी और महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा की रोकथाम और त्वरित प्रतिक्रिया शामिल हैं।


संयुक्त राष्ट्र महिला की उप कार्यकारी निदेशक अनीता भाटिया बताती हैं, "हालांकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कुछ प्रगति हुई है, महिलाओं और लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है और उनके योगदान को कम आंका जाता है। सरकारों को 2030 के एजेंडे और सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप निर्धारित समयसीमा और संसाधनों के साथ प्राथमिकताओं और कार्यों की पहचान करके लैंगिक समानता के लिए अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करना चाहिए।"