राजधानी दिल्ली को बचाने के लिए घेर रहा 31 लाख पेड़ों का नेचुरल बैरियर
"जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही देश की राजधानी दिल्ली को बचाने के लिए उसे तीन तरफ से रोपित जंगलों से घेरा जा रहा है। इस बीच 'पीपुल्स मूवमेंट-प्लांटेशन ऑफ 10 लाख ट्रीज इन दिल्ली एंड एनसीआर' अभियान के तहत इस माह 28 जुलाई को दस लाख पेड़ लगाने की भी जोर-शोर से तैयारी चल रही है।"
आज, जबकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अमेरिका के बराबर के क्षेत्रफल में खाली पड़ी बेकार की जमीनों पर पौधे रोप कर दुनिया में कार्बन उत्सर्जन दो तिहाई घटाया जा सकता है, 'पीपुल्स मूवमेंट-प्लांटेशन ऑफ 10 लाख ट्रीज इन दिल्ली एंड एनसीआर' नाम से राजधानी दिल्ली में चलाए जा रहे एक अभियान के तहत स्वयंसेवी संस्थाओं एवं ढाई सौ स्कूल-कॉलेजों की मदद से आगामी 28 जुलाई को एक साथ दस लाख पौधे रोपे जाने की तैयारी है। इसके साथ ही राजधानी को तीन दिशाओं में 31 लाख पेड़ों के नेचुरल बैरियर से घेरा जा रहा है। वैज्ञानिक दृष्टि से जलवायु परिवर्तन को रोकने का इससे बेहतर तरीका और भी क्या हो सकता है।
हाल ही में ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ मैग्जीन में शोध वैज्ञानिकों ने भी जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्यतः ऊष्ण कटिबंधीय वनों के कटान को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि ऐसे क्षेत्रों में शीतलता देने वाले पेड़ों के कट जाने से तापमान में आश्चर्यजनक वृद्धि के साथ ही वन्य जीवों के संरक्षण का भी खतरा बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण ही कई दुर्लभ जीव विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए हैं और ऐसे इलाकों में पानी भी लगातार कम हो रहा है।
शोधार्थी प्रो. रेबेका सीनियर के मुताबिक, भारतीय जंगलों के भारी दोहन से कई जीव प्रजातियां संकट में पड़ गई हैं। वन क्षेत्र घटने के साथ ही जंगली जीवों के आवास नष्ट हो चुके हैं। जबकि वर्ष 2015 में पेरिस में हुए जलवायु समझौते में विश्व के तमाम देशों ने गर्मी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने पर समहमति जताई थी। पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान पैनल ने भी माना था कि हमारे प्रयास अभी नाकाफी हैं।
हमारे देश में इस बार की बरसात में पिछले सौ वर्षों में 05 जून 2019 को बारिश औसतन 35 फीसदी कम हुई। जून में बारिश का देश का सामान्य औसत 151.1 मिलीमीटर रहता रहा है, लेकिन इस बार का यह आंकड़ा 97.9 मिलीमीटर तक ही पहुंचा। जलवायु परिवर्तन पर ही 'ग्लोबल चेंज बॉयोलॉजी' में प्रकाशित एक अन्य ताज़ा स्टडी में बताया गया है कि पृथ्वी के तापमान में हो रही बढ़ोतरी को काबू में नहीं किया गया तो दक्षिण अमेरिका में पाए जाने वाले बंदरों का अस्तित्व पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। इस अध्ययन के दौरान इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के डाटाबेस में शामिल बंदर व लंगूरों की 426 प्रजातियों पर तापमान वृद्धि के असर का पता लगाया गया था।
इस समय हमारे देश में पेड़ों को लेकर तमाम बहसें चल रही हैं। इस बार मानसून में बारिश की कमी के बाद ये बहसें और तेज हो गई हैं। इस बीच अहमदाबाद-मुंबई के बीच बन रही बुलेट ट्रेन लाइन के लिए 54,000 मैंग्रोव के पेड़ काटे जाने पर महाराष्ट्र सरकार कह रही है कि हर एक मैंग्रोव के पेड़ के बदले पांच मैंग्रोव के पेड़ लगाए जाएंगे।
इस बीच स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक टॉम क्राउटर ने अपनी एक प्रकाशित रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए पूरी दुनिया में एक हजार अरब यानी पूरे 10 खरब पेड़ लगाने होंगे। जलवायु परिवर्तन के लिए राजनीतिज्ञों से भी कई सारे निर्णयों की उम्मीद है चाहे वो जलवायु परिवर्तन को मानते हों या नहीं। टॉम के रिसर्च के मुताबिक अगर आने वाले दशकों में इतने पेड़ लगाए जाएं तो पिछले पचीस वर्षों में फैले 830 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड को ये पेड़ सोख लेंगे। इसके साथ ही जीवाश्म ईंधन जैसे कच्चे तेल का इस्तेमाल और मांसाहार की खपत भी घटानी होगी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक माइलेस एलेन का कहना है कि बड़ी मात्रा में पेड़ लगाना ही सबसे बेहतर रणनीति हो सकती है।
इसी क्रम में जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति नजमी वजीरी ने एक नाबालिग बच्ची से जुड़े मामले में घर में नौकरानी रखने वाले दंपती पर दर्ज एफआईआर खारिज करने की एवज में देसी प्रजाति के छह फीट ऊंचे 100 पेड़ लगाने का निर्देश दे रखा है। न्यायमूर्ति ने बच्ची को दंपति के यहां नौकरानी रखवाने वाले आरोपी दो एजेंटों को 50-50 पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने में श्रमदान करने का भी निर्देश दिया है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सभी पेड़ देसी प्रजाति के साढ़े तीन साल की आयु के तथा कम से कम छह-छह फुट ऊंचे होने चाहिए। पेड़ लगाए जाने के बाद उप वन संरक्षक उनकी तस्वीरों सहित शपथ पत्र पेश करेंगे। एक अन्य जानकारी के मुताबिक, राजस्थान से आने वाली रेतीली धूल से राजधानी दिल्ली को बचाने के लिए करीब 31 लाख पेड़ों की दीवार से घेरा जाएगा।
दिल्ली सरकार की एजेंसियां 50 किस्म के देसी पेड़ों की दीवार से राजधानी की तीन ओर से घेराबंदी कर रही हैं। यमुना तट और अरावली वन क्षेत्र को घेरते हुए दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान की सीमा तक लगभग 31 लाख पेड़ों से नैसर्गिक अवरोधक (नेचुरल बैरियर) बनाया जा रहा है।