बचपन में तारों को निहारते थे, आज छात्रों के लिए स्थापित कर रहे हैं एस्ट्रॉनॉमी लैब
अपने बचपन में आसमान के तारों को निहारने वाले आर्यन आज छात्रों को एस्ट्रॉनॉमी की शिक्षा दिलाने की पहल कर रहे हैं। तंग आर्थिक स्थिति में गुज़रा आर्यन का जीवन आज सबके लिए प्रेरणा है।
एक ओर हम सभी जहां अपने बचपन में अपने पसंदीदा खेल खेलते थे और कार्टून देखते थे, 19 साल के आर्यन मिश्रा अपने बचपन में छत पर बैठकर सितारों को निहारते थे।
उत्तर प्रदेश के भदोही में जन्मे आर्यन के पिता अखबार विक्रेता हैं। आर्यन को शुरुआत से ही इस कॉस्मिक दुनिया से खासा लगाव था। इस जुनून के साथ ही आर्यन लगातार इस पर अध्ययन करते रहे, इसी बीच आर्यन ने मंगल और बृहस्पति के बीच एक उल्का पिंड का पता लगाया, जिसके लिए उन्हे अवार्ड भी मिला, तब आर्यन की उम्र महज 14 साल थी।
आर्यन ने अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए साइबर कैफे और किताबों का सहारा लिया, जिसके दम पर आर्यन ने एक एस्ट्रॉनॉमी क्लब में सदस्यता भी पा ली। इस दौरान आर्यन को यह महसूस हुआ कि भारत में बड़ी संख्या में ऐसे छात्र हैं जिन तक इस तरह की शिक्षा की पहुँच नहीं है।
अपने उद्देश्य को पूरा करते हुए आर्यन ने स्पार्क एस्ट्रॉनॉमी की स्थापना की। दिल्ली आधारित यह स्टार्ट अप स्कूलों में एस्ट्रॉनॉमी से जुड़ी लैब स्थापित करने का काम करता है।
योरस्टोरी से बात करते हुए आर्यन ने बताया,
“एस्ट्रॉनॉमी आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था का बड़ा हिस्सा नहीं है, ऐसे में बहुत ही कम छात्र ऐसे होते हैं, जिन्हे इस बारे में पढ़ने का मौका मिलता है। हमारा उद्देश्य यही है कि हम इस रिक्त स्थान को भर सकें और स्कूलों के साथ कम कर इस विषय से संबन्धित लैब की स्थापना कर सकें।”
आर्यन के अनुसार वो सिर्फ इंटीरियर और लेयआउट के साथ लैब में विषय से संबन्धित सोध के लिए उपकरण स्थापित करने में भी मदद करते हैं।
बीते साल आर्यन ने विभिन्न शहरों के 5 स्कूलों में एस्ट्रॉनॉमी से संबन्धित लैब्स की स्थापना करने का काम किया है। आर्यन शुरुआत से ही मजबूत इरादों वाले छात्र रहे। उनके सपने को पूरा करने के लिए उनके पिता ने भी उनका सहयोग किया। आर्यन के पिता अखबार बेंचने के साथ ही सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी भी करते थे।
दिल्ली के वसंत विहार स्थित चिन्मय विद्यालय से स्कूली पढ़ाई करने वाले आर्यन अशोका विश्वविद्यालय से भौतिकी विषय में स्नातक कर रहे हैं।
आर्यन के अनुसार उन्होने महज 9 साल की उम्र से ही एस्ट्रॉनॉमी में रुचि दिखाना शुरू कर दिया था। आर्यन कहते हैं,
“बचपन में हम गर्मियों की छुट्टियों में अपनी नानी के घर जाया करते थे। गर्मी अधिक होने के चलते सभी छत पर सोते थे। वो मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत रातें होती थीं। मैं हमेशा सितारों से भरे उस आसमान को निहारा करता था। मैं यह जानना चाहता था कि उस पार क्या है?”
आकाश अपने लिए एक टेलीस्कोप खरीदना चाहते थे, लेकिन कम आय के चलते वो इसके लिए अपने परिवार को परेशान नहीं करना चाहते थे, ऐसे में आकाश ने अपने जेब खर्चों को बचाते हुए 5 हज़ार रुपये यह राशि इकट्ठी की। इसके लिए आर्यन अपने ट्यूशन क्लासेस तक पैदल ही जाया करते थे।
आर्यन ने जब अपने घरवालों को बताया कि वो खगोल विज्ञानी बनना चाहते हैं तब परिवार से उन्हे विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन जब उन्हे एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की तरफ से उल्कापिंड की खोज के लिए अवार्ड मिला, तब परिवार ने भी उन्हे स्वीकृति दे दी।
आर्यन कहते हैं,
“आमतौर पर अख़बार बेंचने वाले के बेटे की तस्वीर लोग अख़बार के पहले पन्ने पर नहीं देखते हैं।”
आर्यन ये नहीं चाहते थे कि एस्ट्रॉनॉमी का ज्ञान अर्जित करने के लिए उन्हे जिस कठिनाई का समाना करना पड़ा वो किसी अन्य छात्र को करना पड़े। आर्यन ने अपने दोस्तों से 2 लाख रुपये उधर लेकर अपना ये वेंचर शुरू किया।
आर्यन के अनुसार,
“अधिकतर स्कूलों में एस्ट्रॉनॉमी के लिए विशेष लैब नहीं हैं, अगर हैं भी तो छात्रों को इसके लिए अधिक पैसे देने होते हैं। मेरा उद्देश्य यही था कि छात्रों को उचित पैसों पर एस्ट्रॉनॉमी का ज्ञान मिल सके।”
आर्यन स्कूलों से 3 लाख रुपये की राशि चार्ज करते हैं, जबकि वही स्कूल छात्रों से महज 60 रुपये प्रति साल के हिसाब से शुल्क लेते हैं।
(Edited By प्रियांशु द्विवेदी)