वैज्ञानिक बनना चाहती हैं उत्तराखंड बोर्ड एग्जाम टॉपर शताक्षी तिवारी
रोजाना स्कूल का चालीस किलो मीटर लंबा सफर तय कर उत्तराखंड की अत्यंत मेधावी छात्रा शताक्षी तिवारी ने बोर्ड एग्जॉम में 98 प्रतिशत अंकों से टॉप किया है। पढ़ाई के दिनो की तमाम दुश्वारियां भी उनका रास्ता नहीं रोक पाईं। उनका सपना है खगोल विज्ञानी के रूप में इसरो ज्वॉइन करना।
कीचड़ में कमल खिलने जैसी तमाम कहावतें बार-बार ऐसे वक़्त में दुहराई जाती हैं, जब कोई तमाम विपरीत परिस्थितियों को थकाते हुए अपने जीवन में खिल उठता है। बोर्ड एग्जाम, यूपीएससी, इंजीनियरिंग आदि के इंट्रेंस टेस्ट में हर साल लाखों बच्चे सफल होते हैं लेकिन उनमें भी खास तौर से उनके नाम लिए जाते हैं, समाज उन्हे ही सिर-आंखों पर बैठाता है जो अपने घर-परिवार के खराब हालात से लड़ते हुए, जूझते, संघर्ष करते हुए सफलता के सिरहाने जा बैठते हैं।
उत्तराखंड में 12वीं बोर्ड एग्जाम में 98 फीसदी अंकों से पूरे प्रदेश में टॉप करने वाली शताक्षी तिवारी की कामयाबी की दास्तान भी कुछ वैसी ही है। इतनी बड़ी सफलता मिलने से पहले उन्हे रोजाना असामान्य स्थितियों का सामना करते हुए अपने स्कूल का चालीस किलोमीटर लंबा सफर तय करना पड़ा। वह बताती हैं कि स्कूल जाने-आने के समय भी वह स्वाध्याय में ही बिताया करती थीं। उनका सपना है खगोलविद बनना। इस समय वह देहरादून में वीआर क्लासेज से आइआइटी (जेईई मेंस) के लिए तैयारी कर रही हैं। वह खगोल भौतिकी में अपना कॅरियर बनाने के लिए इसरो ज्वॉइन करना चाहती हैं।
एसडीएमआई चिन्यालीसौड़ कॉलेज (उत्तराखंड) की छात्रा सताक्षी तिवारी बताती हैं कि वर्ष 2017 में सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज कंडीसौड़ (उत्तराखंड) से जब उन्होंने हाईस्कूल किया और उनको 86.6 प्रतिशत अंक मिले तो अपने भाई अभिमन्यु के कहने पर उन्होंने 11वीं में सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज शक्तिपुरम, चिन्यालीसौड़ में एडमिशन ले लिया। उनकी मां सुनीता तिवारी सीएचसी कंडीसौड़ में ही सुपरवाइजर हैं।
उनके पिता अनूप तिवारी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर हैं। कंडीसौड़ में मां की ड्यूटी होने के कारण उन्हे प्रतिदिन वहां से चिन्यालीसौड़ कुल चालीस किलोमीटर टैक्सी से आना जाना पड़ा। कुछ ऐसे हालात बने कि उनको पिछले साल अगस्त और सितंबर में कुछ दिन स्कूटी से भी स्कूल का सफर तय करना पड़ा। एक दिन स्कूल आते समय स्कूटी से फिसल जाने से वह घायल भी हो गईं। इससे वह दो सफ्ताह तक स्कूल नहीं जा पाईं मगर बिस्तर पर पड़े-पड़े अपने कोर्स की किताबों में डूबी रहीं। स्वस्थ हुईं तो फिर टैक्सी से स्कूल जाने-आने लगीं।
शताक्षी तिवारी बताती हैं कि घर से स्कूल पहुंचने और लौटने में लगभग दो घंटे रोजाना सफर में बिताने पड़े। रास्ते में भी वे कोर्स के पन्ने पलटती रहीं। उन्होंने ठान लिया था कि किसी भी कीमत पर इस पर बोर्ड एग्जाम में उन्हें कुछ कर दिखाना है। स्कूल से लौटने के बाद शाम से ही रात साढ़े ग्यारह बजे तक वह पढ़ाई किया करती थीं। फिर सुबह चार बजे से ही स्कूल जाने के समय तक पढ़ती रहती थीं। वह रोजाना विषय क्रम से भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और गणित पर कम से कम दो-दो घंटे का समय जरूर देती थीं। यद्यपि पढ़ाई के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा लेकिन पढ़ाई के दिनो में उनको अपने घर-परिवार, माता-पिता और शिक्षकों की ओर से पूरा सहयोग मिलता रहा है।