घर में बीमारियां ना आएं इसके लिए वास्तु कैसा हो?
वास्तु शब्द, ‘वास’ और “अस्तु” से बना है, वास का अर्थ है “निवास करने योग्य स्थान” और “अस्तु” का अर्थ है “ऐसा ही हो” यानि वास्तु का अर्थ है स्थान द्वारा अपनी मनोकामना को सिद्ध करना। धनार्जन, रिश्तों में मधुरता, प्रभाव में विस्तार और उचित स्वास्थ्य व्यक्ति के जीवन के चार प्रमुख उद्देश्य होते हैं।
हमारा देश आयुर्वेद और योग के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है पर क्या हम उसका सही प्रयोग कर रहे हैं? हमारे बुजुर्ग और पूर्वज सात्विक भोजन और नियमित व्यायाम पर बल देते थे। आजकल के आधुनिक युग में हमारा खानपान और रहन-सहन दोनों ही बदल गए हैं। आजकल हम में से कई लोग सेडेनटेरी (गतिहीन या आसीन) लाइफस्टाइल जीते हैं और फास्ट फ़ूड का अधिकतर सेवन करते हैं।
इस कारण हर दूसरा आदमी किसी न किसी जीवनपर्यंत चलने वाली बीमारी से ग्रसित है। रक्तचाप, कमर में दर्द, गठिया, मधुमेह, पेट सम्बंधित रोग आजकल सामान्य है।
वास्तु शब्द, ‘वास’ और “अस्तु” से बना है, वास का अर्थ है “निवास करने योग्य स्थान” और “अस्तु” का अर्थ है “ऐसा ही हो” यानि वास्तु का अर्थ है स्थान द्वारा अपनी मनोकामना को सिद्ध करना। धनार्जन, रिश्तों में मधुरता, प्रभाव में विस्तार और उचित स्वास्थ्य व्यक्ति के जीवन के चार प्रमुख उद्देश्य होते हैं। वास्तु की उर्जाएं इन चारों आयाम को प्रभावित करती हैं।
इस लेख में हम वास्तु का स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभावों की चर्चा करते हैं। वास्तु-उर्जा के तीन क्षेत्र; उत्तर-पूर्व, ब्रह्मस्थान (मध्य) और दक्षिण-पश्चिम स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन दिशा-क्षेत्रों में वास्तु दोष होना घर के सदस्यों को अलग-अलग बीमारियों से ग्रसित कर सकता है।उत्तरपूर्व में लाल रंग होना या किसी मर्म-स्थान पर कीलें लगी होना माइग्रेन या सिरदर्द दे सकता है।
मध्य में पानी या खड्डा होने से रीढ़ की हड्डी संबंधी बीमारी या चोट लगने का संशय रहता है, मध्य-क्षेत्र में यदि हरा रंग है तो पेट-संबंधी रोग लगे रहते हैं। दक्षिण-पश्चिम में रसोई होने से घर की स्त्री को कमर या पैरों में हमेशा दर्द कितनी भी दवाइयों के बावजूद रहेगा। इसी तरह अगर दक्षिण-पूर्व में टॉयलेट हो तो घुटने के रोग का कारक होता है। दक्षिण में काला रंग किडनी संबंधी रोग देता है।
अलग-अलग दिशा-क्षेत्रों में शयनकक्ष का भी अलग-अलग प्रभाव होता है। बेडरूम का पूर्व, दक्षिण-दक्षिण-पूर्व, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना उत्तम माना जाता है। यदि आपका बेड दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में है तो बीमारियाँ पीछा नहीं छोड़ती हैं। पश्चिम-उत्तर-पश्चिम (यानि पश्चिम और उत्तर-पश्चिम के मध्य में) बेडरूम थाईराइड रोग के योग बनाता है वहीं उत्तर-पूर्व का बेडरूम मनोरोग का कारक है।
आइए अब जानते हैं कि अच्छे स्वास्थ के लिए वास्तु को कैसे उपयोग में लें
सर्वप्रथम घर को साफ़-सुथरा और व्यवस्थित रखें। घर में मकड़ियों के जाले, दीवारों में सीलन, किसी प्रकार की सडन न हो। आप जब सोयें तो आपका सिर दक्षिण या पूर्व की तरफ हो और उत्तर की तरफ कतई ना हो। जब आप उत्तर की तरफ सिर रखकर सोते हैं तो सर्कुलेटरी सिस्टम से संबंधी रोगों को आमंत्रण देते है और शरीर का रक्त-संचार खराब होता है। इस कारण चक्कर आना या वर्टिगो जैसे रोग हो सकते हैं।
वास्तु-शास्त्र में अच्छे स्वास्थ्य के लिए उत्तर और उत्तर-पूर्व के मध्य के दिशा-क्षेत्र का महत्त्व है इसे शास्त्रों में स्वास्थ्य और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला क्षेत्र माना गया है, यहाँ पर अगर बीमार व्यक्ति को सुलाया जाए तो जल्द ही रोग से निदान मिलेगा पर जैसे ही रोग-मुक्त हो इस क्षेत्र में सोना बंद कर देना चाहिए। कई लोगों पर दवाइयां काम नहीं करती है ऐसी स्थिति में अगर दवाइयां उत्तर-उत्तर-पूर्व में रखी जाएँ तो उसका फायदा होने लगता है।
आचार्य मनोज श्रीवास्तव ऐसे वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी हैं जिनको बीस साल से ज्यादा का कॉर्पोरेट लीडरशिप का अनुभव है। वे पूर्व में एयरटेल, रिलायंस और एमटीएस जैसे बड़े कॉर्पोरेट हाउस में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे हैं। आजकल वे पूर्ण रूप से एक वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।
अपने सवाल और सुझाव के लिये आप भी इनसे जुड़ सकते हैं : +91-9136001697, +91-7827892886