कमजोरी को ही बना लिया हथियार, अब साइकिल पर सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर रहे हैं दिव्यांग गोविंद
मजबूत हौसले और लगन के साथ किसी भी मुश्किल को पार कर सफलता का शिखर छुआ जा सकता है और गोविंद इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण हैं। दिव्यांग होने के चलते कभी उन्हें लोगों की तरह-तरह की नकारात्मक बातें सुननी पड़ती थीं और तब लोग गोविंद से यह कहते थे कि ‘वे भविष्य में कुछ नहीं कर पाएंगे’, लेकिन गोविंद ने उनकी बातों पर ध्यान ना देते हुए अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बना डाला और लगातार आगे बढ़ते गए।
उदयपुर के एक सामान्य से घर में जन्मे गोविंद जन्म के समय से ही दिव्यांग हैं। दिव्यांग होने के चलते गोविंद को अपने शुरुआती जीवन में काफी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा है। शुरू में उनके स्कूल में दाखिला मिलने में भी परेशानी भी हुई लेकिन यह कठिन समय भी उनके मनोबल को जरा सा भी हिला नहीं सका।
साइकिल से सफर की शुरुआत
मीडिया से बात करते हुए गोविंद ने बताया है कि वे बस इस बात पर ध्यान देते हैं कि उन्हें जो भी मिला है वे उसमें कैसे खुश रह सकते हैं और जो करना चाहते हैं वो कैसे कर सकते हैं। यही उनके लिए मोटिवेशन का काम करता है। गोविंद के अनुसार लोग पहले ही हार मान लेते हैं और फिर वे कुछ भी हासिल नहीं कर पाते हैं, इसलिए लोगों को हौसला रखते हुए शुरुआत करनी चाहिए।
गोविंद शुरुआत में फिल्ममेकिंग के शौकीन थे हालांकि समय गुजरने के साथ उनकी दिलचस्पी खेलों की तरफ अधिक बढ़ने लगी। गोविंद को बचपन से ही साइकिलिंग पसंद थी और गोविंद ने अपने लिए आगे चलकर इसे ही लेकर आगे बढ़ना चुना।
तय किया 1700 किलोमीटर का सफर
साल 2017 में गोविंद तब चर्चा में आए जब उन्होने 17 सौ किलोमीटर की दूरी साइकिल पर तय की थी। साइकिल पर गोविंद का यह सफर उदयपुर से बैंगलोर के बीच का था।
हालांकि यह सफर तय करने के बाद गोविंद कुछ और एडवेंचर करना चाह रहे थे और इसी क्रम में उन्होने साइकिल से ही मनाली से खारदूंगला तक का सफर भी पूरा कर डाला।
साइकिल करवाई मोडिफ़ाई
गोविंद के लिए आम साइकिल चला पाना मुश्किल हैं क्योंकि उसके लिए गोविंद को अपने पैरों का सहारा लेकर ब्रेक लगानी पड़ती थी। ऐसे गोविंद ने यह महसूस किया कि उन्हें इसे मोडिफ़ाई करना होगा। इसके लिए उन्होंने उदयपुर में कई दुकानों के चक्कर काटे और अंत में वे अपनी साइकिल को मोडिफ़ाई करवाने में सफल रहे। मोडिफ़ाई किए जाने के बाद उनकी साइकिल के अगले टायर के पास ब्रेक लगा दिए गए जिससे उनके लिए साइकिल चलाना और बिना किसी दिक्कत के लंबी दूरी तय करना आसान हो गया है।
आज लोग गोविंद से यह पूछते हैं कि क्या उन्हें डर नहीं लगता है ऐसे में गोविंद जवाब देते हैं कि ‘अगर वे डर गए तो फिर वे अपने जीवन में और कुछ भी नहीं कर पाएंगे।’ यही सकारात्मक सोच गोविंद के भीतर लगातार आगे बढ़ने का जज़्बा भर देती है और गोविंद के इस हौसले को देखकर लोग उनसे प्रेरणा भी लेते हैं।
Edited by Ranjana Tripathi