GDP ग्रोथ रेट आधी होकर रह गई 6.3 फीसदी, समझिए क्या हैं इसके मायने, ये अच्छी खबर है या बुरी?
जीडीपी में 6.3 फीसदी की ग्रोथ खुश होने वाली बात है या नहीं? ऐसे में क्या ये कहा जा सकता है कि देश का विकास हो रहा है? आंकड़ों का गणित समझेंगे तो तस्वीर खुद-ब-खुद साफ हो जाएगी.
जब इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही के नतीजे आए थे तो लगा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) तेजी से पटरी पर लौट रही है. उस वक्त यानी अप्रैल-जून में जीडीपी 13.5 फीसदी (GDP Growth Rate) बढ़ी थी. हालांकि, केंद्रीय सांख्यिकी संगठन सीएसओ (NSO) की तरफ से जारी किए गए दूसरी तिमाही की आंकड़े कुछ चिंता देने वाले हैं. दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट घटकर आधी से भी कम हो गए है. दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 6.3 फीसदी हो गई है. बता दें कि पिछले साल जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 8.4 फीसदी थी. यानी इस बार ग्रोथ रेट पिछले साल से भी कम है. यहां एक सवाल उठता है कि इस ग्रोथ का मतलब क्या समझा जाए? क्या हमें चिंता करनी चाहिए या नहीं?आइए समझते हैं जीडीपी ग्रोथ रेट के 13.5 फीसदी से घटकर 6.3 फीसदी हो जाने के मायने.
होटल-ट्रांसपोर्ट को फायदा, 8 बुनियादी उद्योग पड़े सुस्त
एनएसओ की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार सभी सेक्टर्स प्री-कोविड लेवल को पार कर गए हैं. यानी भले ही ग्रोथ रेट दूसरी तिमाही में कम हुई है, लेकिन अच्छी बात ये है कि हम कोरोना काल से पहले के लेवल से भी आगे निकल चुके हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दूसरी तिमाही में ट्रेड, होटल्स, ट्रांसपोर्ट, ब्रॉडकास्टिंग से जुड़ी कम्युनिकेशन एंड सर्विसेज सेक्टर ने 14.7 फीसदी ग्रोथ दर्ज की है यानी डबल डिजिट ग्रोथ. यानी इन सेक्टर्स के लिए जीडीपी के आंकड़े अच्छे हैं.
वहीं दूसरी ओर देश के 8 प्रमुख बुनियादी उद्योगों की ग्रोथ रेट अक्टूबर में सुस्त पड़कर 0.1 फीसदी रह गई है. ये 8 उद्योग कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पादों, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली हैं. साल भर पहले इन उद्योगों में वृद्धि दर 8.7 फीसदी थी. अच्छी बात ये है कि सितंबर महीने में ये वृद्धि दर 7.8 फीसदी थी.
क्यों जीडीपी के आंकड़ों को अच्छा मानना चाहिए?
इन दिनों अगर आप दुनिया भर की बात करें तो हर कोई ग्लोबल मंदी को लेकर डरा हुआ है. भारत में महंगाई भी काफी ऊंचे लेवल पर है. अक्टूबर में यह 6.77 फीसदी रही. सितंबर में यह आंकड़ा 7.41 फीसदी था, जो अगस्त में 7 फीसदी था. महंगाई की वजह से ही भारत समेत दुनिया भर के देशों में सरकारों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है. ब्याज दरें बढ़ाने का मकसद ही यही होता है कि उसके जरिए चीजों की डिमांड को कम किया जा सके और पैसों के सर्कुलेशन को कम किया जा सके. ऐसे में देखा जाए तो जब डिमांड ही कम होगी तो जीडीपी की ग्रोथ रेट पर भी असर दिखना तय है. अच्छी बात ये है कि जीडीपी की ग्रोथ रेट सिर्फ कम हुई है, अभी भी यह पॉजिटिव है और काफी अच्छे लेवल पर है.
तो क्या ये कहना सही है कि विकास हो रहा है?
अगर बात किसी देश के विकास की करें तो बेशक उसमें जीडीपी का एक अहम रोल होता है, लेकिन सिर्फ जीडीपी के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि विकास हो रहा है. जीडीपी से सिर्फ सामान की खरीद-बिक्री का आंकड़ा सामने आता है, इससे यह नहीं पता चलता कि लोग किस हालत में रह रहे हैं. जीडीपी यह नहीं बताती कि किसी देश के लोगों की सेहत कैसी है और उनके वेलफेयर के लिए क्या काम हो रहा है.
जैसे आर्थिक गतिविधियां तेजी से बढ़ती हैं तो जीडीपी बढ़ती है, लेकिन इन गतिविधियों की वजह से बहुत सारा प्रदूषण भी बढ़ता है. इस प्रदूषण का लोगों की सेहत पर बुरा असर होता है, लेकिन जीडीपी में उसका कोई जिक्र नहीं होता. ये भी मुमकिन है कि लोग अधिक काम कर रहे हों, जिससे जीडीपी बढ़ी है. ऐसे में जीडीपी से आप ये नहीं जान सकते हैं कि लोगों को आराम करने का वक्त और परिवार के साथ खुशियां बांटने का वक्त मिल रहा है या नहीं. जीडीपी से यह पता नहीं चल सकता कि लोग खुश हैं या नहीं. ऐसे में जीडीपी को विकास का पैमाना नहीं, बल्कि सिर्फ एक अहम हिस्से की तरह ही देखा जा सकता है.
एक बार ये भी समझ लीजिए कि जीडीपी होती क्या है
जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट किसी भी देश में उत्पादन की जाने वाले सभी प्रोडक्ट और सेवाओं का मूल्य होता है, जिन्हें किसी के द्वारा खरीदा जाता है. इसमें रक्षा और शिक्षा में सरकार की तरफ से दी जाने वाली सेवाओं के मूल्य को भी जोड़ते हैं, भले ही उन्हें बाजार में नहीं बेचा जाए. यानी अगर कोई शख्स कोई प्रोडक्ट बनाकर उसे बाजार में बेचता है तो जीडीपी में उसका योगदान गिना जाएगा. वहीं अगर वह शख्स प्रोडक्ट बनाकर उसे ना बेचे और खुद ही इस्तेमाल कर ले तो उसे जीडीपी में नहीं गिना जाएगा. जानकारी के लिए बता दें कि कालाबाजारी और तस्करी जैसी चीजों की भी गणना जीडीपी में नहीं होती.
जीडीपी से दिखती है देश की अर्थव्यवस्था
अगर किसी देश की जीडीपी बढ़ रही है, मतलब उस देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है. जीडीपी की गणना के वक्त महंगाई पर भी नजर रखी जाती है. इससे सुनिश्चित होता है कि बढ़ोतरी असर में उत्पादन बढ़ने से हुए है, ना कि कीमतें बढने से. जीडीपी बढने का मतलब है कि आर्थिक गतिविधियां बढ़ गई हैं. ये दिखाता है कि रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं.