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नमक मजदूरों की कहानी: देश ने जिसका बनाया नमक खाया, बदले में उसने आखिर क्या पाया?

नमक मजदूर अपनी जान खतरे में डालकर नमक पैदा करते हैं. बदले में उन्हें जिनते पैसे मिलते हैं उसके बारे जानने के बाद आप भी सोच में पड़ जाएंगे. हद तो ये है कि उनका काम कानूनी भी नहीं है.

नमक मजदूरों की कहानी: देश ने जिसका बनाया नमक खाया, बदले में उसने आखिर क्या पाया?

Wednesday November 30, 2022 , 7 min Read

बिना नमक की दाल या सब्जी की कल्पना करेंगे, तो आपको नमक की अहमियत समझ आ जाएगी. हर व्यक्ति के शरीर में करीब 200 ग्राम नमक होता है. खाने में नमक का एक अहम रोल है, लेकिन देश जिसका नमक खाता है, उसे वापस क्या लौटाता है? यहां बात हो रही है कच्छ के उन अगरिया मजदूरों (Salt Workers) की, जो नमक पैदा करने के लिए अपनी जान तक खतरे में डालते हैं. इन मजदूरों को ना तो उनकी मेहनत का दाम मिलता है, ना ही उनके काम को कोई अहमियत दी जाती है. आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि इन मजदूरों का काम दरअसल अवैध काम की कैटेगरी में आता है. बता दें कि गुजरात से देश में नमक की करीब 76 फीसदी मांग (Salt Market) पूरी होती है, लेकिन 70 फीसदी प्रोडक्शन (Salt Production) जिस तरीके से होता है, उसे अवैध माना जाता है.

अगर आप गुजरात के कच्छ के नक्शे को देखें तो उसका डिजाइन एक कछुए जैसा लगेगा. यही वजह है कि इसका नाम कच्छ रखा गया. खैर, इस वक्त कच्छ में नमक पैदा करने वाले अगरिया मजदूरों की जिंदगी एक कछुए जैसी ही हो गई है. उनका सिर्फ एक मकसद है... नमक पैदा करने का, जिसे हासिल करने के लिए वह धीरे-धीरे आगे बढ़ते जा रहे हैं. गुजरात में नमक का टर्नओवर करीब 5 हजार करोड़ रुपये का है. इस काम में करीब 5 लाख लोग लगे हुए हैं. इन लोगों की सुध ना तो सरकार ठीक से ले रही है, ना ही नमक इंडस्ट्री इनके लिए आगे बढ़ रही है. नमक बनाने वाले और नमक पैक कर के बेचने वालों के घर देख लेंगे तो दोनों की जिंदगी का फर्क आपको आसानी से समझ आ जाएगा.

मरने के बाद नहीं जलते नमक मजदूरों के पैर!

जो मजदूर नमक प्रोडक्शन के काम में लगे हैं, उनकी हालात बहुत ही खराब है. ये नमक ना तो उन्हें सुकून से जीने दे रहा है, ना ही मरने के बाद उनका पीछा छोड़ रहा है. दरअसल, नमक में काम करने से मजदूरों के पैर की चमड़ी बहुत ही सख्त हो जाती है. ऐसे में जब मौत के उनके शरीर को जलाया जाता है तो कई बार उनके पैर नहीं जलते हैं. ऐसे में उनके पैरों को नकम डालकर मिट्टी में दफनाना पड़ता है.

मोतियाबिंद, चर्म रोग जीवन बना देते हैं नरक

बात सिर्फ मजदूरों के पैर तक सीमित नहीं है. नमक की वजह से मजदूरों की आंखों पर भी बुरा असर पड़ रहा है और उन्हें मोतियाबिंद जैसी बीमारियां हो रही हैं. हर वक्त नमक में रहने की वजह से उन्हें चर्म रोग भी हो जाता है, जो उनके जीवन को नरक बनाने का काम कर रहा है.

गैर कानूनी है ऐसे नमक बनाना

मार्च 1930 में महात्मा गांधी की अगुआई में दांडी मार्च हुआ था, ताकि नमक बनाया जा सके. उससे पहले तक अंग्रेज नमक पर कंट्रोल रखते थे और भारतीयों को अंग्रेजों से ही नमक खरीदना पड़ता था. नमक पर अंग्रेज भारी टैक्स भी लगाते थे. खैर, 1930 के बाद नमक को लेकर भारतीय आत्मनिर्भर हो गए और वह खुद ही खेतों में नमक बनाने लगे. लेकिन शायद आपको पता ना हो कि अभी खेतों में यानी जमीन पर नमक बनाना गैर-कानूनी है. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार की तरफ से लीज को नहीं बढ़ाया गया है.

खेत में बनता है नमक, लेकिन ये खेती नहीं

अगर आपको ये लग रहा है कि नमक खेत में बनाया जाता है तो यह खेती है, तो आप गलत सोच रहे हैं. नमक खेत में बनता जरूर है, लेकिन खेती से इसका कोई नाता नहीं है. अगर खेती में किसान को किसी आपदा की वजह से कोई नुकसान होता है तो उसे सरकार की तरफ से मुआवजा मिल जाता है. वहीं अगर किसी आपदा के चलते नमक बनाने वाले मजदूरों को दिक्कत होती है तो उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिलता. मुआवजा नहीं देने की वजह भी यही है कि नमक बनाना खेती की कैटेगरी में नहीं आता. बल्कि अभी तो खेत में नमक बनाना ही गैर-कानूनी हो गया है. 

मजदूरों को दाम के नाम पर मिलती है खैरात!

अपनी जिंदगी दाव पर लगाकर मजदूर नमक तो पैदा करते हैं, लेकिन दाम के नाम पर उन्हें खैरात से ज्यादा कुछ नहीं मिलता. अगर आपको बताएं कि इन मजदूरों से नमक 250-300 रुपये टन के हिसाब से खरीदा जाता है तो शायद आपको भरोसा ना हो. यानी इन मजदूरों से 1 रुपये में 3-4 किलो नमक खरीदा जाता है और फिर उसे रिफाइन कर के बाजार में बेचा जाता है. ये कीमत भी उन्हें तब मिलती है जब वह अपने खेतों में नमक बनाते हैं. बहुत सारे मजदूर तो अपने गांव से दूर जाकर दूसरे के खेत में नमक बनाते हैं. उन्हें तो प्रति टन मुश्किल से 50-100 रुपये ही मिलते हैं.

अगरिया मजदूरों के बच्चे भी झेल रहे दंश

ऐसा नहीं है कि नमक पैदा करने की वजह से सिर्फ वही मुसीबतें झेल रहा है जो इस काम में लगा हुआ है. अगरिया मजदूरों के बच्चों को भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. बहुत सारे मजदूर अपना गांव छोड़कर दूर जाकर नमक बनाते हैं और फिर बारिश के मौसम में वापस आ जाते हैं. ऐसे में उनके बच्चों की शिक्षा और वैक्सिनेशन भी प्रभावित होते हैं. वहीं अगर परिवार के किसी शख्स को चर्म रोग आदि होता है तो उसके फैलने का भी डर होता है.

सवाल ये है कि सरकार क्यों नहीं कर रही हस्तक्षेप?

अगर हम बिना ब्रांड के सस्ते नमक की बात करें तो करीब 10 रुपये में एक किलो आयोडीन युक्त नमक मिल जाता है. ब्रांडेड नमक भी 20-30 रुपये किलो के हिसाब से मिल जाता है. वहीं अगर बात खपत की करें तो खाने में बहुत ही कम नमक खर्च होता है. 4 लोगों के परिवार में 1 किलो नमक आसानी से 15-20 दिन निकाल सकता है. ऐसे में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और मजदूरों को नमक का अच्छा दाम दिलवाना चाहिए, ताकि उनकी जिंदगी भी बेहतर हो सके. इससे भी जरूरी है कि इन नमक मजदूरों को सेफ्टी गियर्स मुहैया कराए जाएं. वैसे तो सरकार कभी-कभी मुफ्त में जूते और चश्मे मुहैया कराती है, लेकिन अगर नमक अच्छा दाम दिया जाएगा तो मजदूर खुद भी सेफ्टी गियर्स खरीद सकते हैं.

ये भी जान लीजिए कि कैसे बनता है नमक

नमक बनाने के लिए सबसे पहले पानी को बड़े-बड़े खेतों में जमा किया जाता है. वहां का पानी बहुत ही खारा है, जिसके चलते उसमें भारी मात्रा में नमक होता है. सूरज की गर्मी के चलते धीरे-धीरे पानी उड़ता जाता है और उसमें का नमक बच जाता है. इस नमक को इकट्ठा किया जाता है और प्रोसेस करते हैं. सबसे पहले खेत से निकाले गए नमक की धुलाई की जाती है, ताकि मिट्टी जैसी अशु्द्धियों को दूर किया जा सके. इसके बाद मशीनों में ही नमक को सुखाकर पीसा जाता है. इस पिसे हुए नमक को एक बेल्ट के जरिए दूसरी जगह भेजा जाता है, जहां नमक की पैकिंग होती है. रास्ते में नमक पर आयोडीन युक्त पानी का फव्वारा चलता है, जिससे नमक में आयोडीन मिलता है. नमक को 1 किलो या आधा किलो के पैकेट में पैक कर के बाजार में बेच दिया जाता है. नमक को जब ब्रांडेड कंपनियां रिफाइन करती हैं तो वह इसमें कुछ कैमिकल्स भी मिलाती हैं, जिससे उनका चिपचिपापन खत्म होता है और वह भुरभुरे बनते हैं.