GDP में 1.9 फीसदी की गिरावट का मतलब समझिए, जानिए आप पर कैसे होगा असर
तिमाही दर तिमाही के आधार पर जीडीपी ग्रोथ रेट में 1.9 फीसदी की गिरावट (GDP Growth Rate Fall) देखने को मिली है. तो क्या आने वाले दिनों में महंगाई और अधिक बढ़ने वाली है? आइए समझते हैं इसका आप पर क्या असर होगा.
भारत सरकार ने जीडीपी (GDP) के आंकड़े जारी कर दिए हैं. वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही यानी दिसंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 4.4 फीसदी (GDP Growth Rate) रही है. इससे पहले यानी दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 6.3 फीसदी थी. यानी तिमाही दर तिमाही के आधार पर जीडीपी ग्रोथ रेट में 1.9 फीसदी की गिरावट (GDP Growth Rate Fall) देखने को मिली है. ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि इसे अच्छा समझा जाए या फिर खराब. अच्छी बात ये है कि सरकार ने वित्त वर्ष 2023 में अर्थव्यवस्था के 7 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया है. आइए समझते हैं जीडीपी ग्रोथ रेट में गिरावट के क्या मायने (GDP Fall Impact) हैं.
एक बार ये भी समझ लीजिए कि जीडीपी होती क्या है
जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट किसी भी देश में उत्पादन की जाने वाले सभी प्रोडक्ट और सेवाओं का मूल्य होता है, जिन्हें किसी के द्वारा खरीदा जाता है. इसमें रक्षा और शिक्षा में सरकार की तरफ से दी जाने वाली सेवाओं के मूल्य को भी जोड़ते हैं, भले ही उन्हें बाजार में नहीं बेचा जाए. यानी अगर कोई शख्स कोई प्रोडक्ट बनाकर उसे बाजार में बेचता है तो जीडीपी में उसका योगदान गिना जाएगा. वहीं अगर वह शख्स प्रोडक्ट बनाकर उसे ना बेचे और खुद ही इस्तेमाल कर ले तो उसे जीडीपी में नहीं गिना जाएगा. जानकारी के लिए बता दें कि कालाबाजारी और तस्करी जैसी चीजों की भी गणना जीडीपी में नहीं होती.
जीडीपी से दिखती है देश की अर्थव्यवस्था
अगर किसी देश की जीडीपी बढ़ रही है, मतलब उस देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है. जीडीपी की गणना के वक्त महंगाई पर भी नजर रखी जाती है. इससे सुनिश्चित होता है कि बढ़ोतरी असर में उत्पादन बढ़ने से हुए है, ना कि कीमतें बढने से. जीडीपी बढने का मतलब है कि आर्थिक गतिविधियां बढ़ गई हैं. ये दिखाता है कि रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं.
अब जीडीपी कम होने के मायने समझिए
इस वक्त दुनिया महंगाई से जूझ रही है. ऐसे में जीडीपी के आंकड़ों में गिरावट आना अच्छी खबर तो बिल्कुल भी नहीं है. जीडीपी में गिरावट का मतलब है कि देश में महंगाई आने वाले दिनों में बढ़ सकती है. जीडीपी ग्रोथ रेट गिरने का मतलब है कि देश में उत्पादन कम हो रहा है. जीडीपी निगेटिव नहीं है, लेकिन पिछली तिमाही के मुकाबले गिरावट है. अगर जीडीपी की गिरावट का असर महंगाई पर दिखता है तो रिजर्व बैंक को फिर से रेपो रेट बढ़ाना पड़ सकता है ताकि महंगाई पर काबू किया जा सके.
क्या होता है रेपो रेट?
आसान भाषा में समझें तो रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से बैंकों को लोन दिया जाता है. यानी इसके बढ़ते ही बैंकों को केंद्रीय बैंक की तरफ से मिलने वाला लोन महंगा हो जाता है.
रेपो रेट बढ़ने से कैसे लगती है महंगाई पर लगाम?
जब रेपो रेट में बढ़ोतरी की जाती है तो इससे बैंकों को मिलने वाला लोन महंगा हो जाता है. ऐसे में जब बैंक को ही महंगा लोन मिलता है तो वह ग्राहकों को दिए जाने वाले लोन को भी महंगा कर देते हैं. होम लोन और ऑटो लोन लंबी अवधि के होने की वजह से उन्हें फ्लोटर इंस्ट्रेस्ट रेट पर दिया जाता है. यह रेट रिजर्व बैंक की दर के बढ़ने-घटने के आधार पर बदलता रहता है. यही वजह है कि जैसे ही रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाता है, होम लोन और कार लोन की ईएमआई पर सीधा असर होता है. हालांकि, इसका उन्हें फायदा होता है, जो लोग एफडी में पैसे लगाते हैं. मौजूदा समय में रेपो रेट 6.5 फीसदी है.
लोगों का खर्च हो जाता है कम, घटने लगती है डिमांड
लोन को महंगा करने की सबसे बड़ी वजह होती है मार्केट में पैसों के सर्कुलेशन को कंट्रोल करना. लोन महंगा होने से लोग कम खर्च करने की कोशिश करते हैं. वहीं जिनकी पहले से ही होम लोन या ऑटो लोन ईएमआई चल रही होती हैं, उनका पहले की तुलना में अधिक पैसा खर्च होने लगता है. ऐसे में वह तमाम चीजों के लिए पैसे कम खर्च करते हैं और डिमांड घटती है, जिससे महंगाई पर काबू करने में आसानी होती है. वहीं एफडी पर अधिक ब्याज मिलने से भी बहुत से लोग अपने खर्चों को छोड़कर पैसे बचाने की कोशिश करते हैं, ताकि अधिक रिटर्न मिले. इन वजहों से मार्केट में पैसों का सर्कुलेशन घटता है.