जब अडानी जैसी हालत हुई थी अंबानी की, 40 साल पहले धीरूभाई ने शेयर बेचने वालों को ऐसे सिखाया था सबक
इन दिनों गौतम अडानी की तमाम कंपनियों के शेयर गिर रहे हैं. इसकी वजह से हिंडनबर्ग की रिपोर्ट. ऐसे में वो 40 साल पुरानी कहानी याद आ रही है, जब रिलायंस के शेयर भी इसी तरह गिरे थे. उस वक्त धीरूभाई अंबानी ने शेयर गिराने वालों को कड़ा सबक सिखाया था.
करीब 20 दिन पहले एक रिपोर्ट आई थी... हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) रिपोर्ट. इसने गौतम अडानी (Gautam Adani) पर अकाउंटिंग फ्रॉड और स्टॉक प्राइस मैनिपुलेशन जैसे कई गंभीर आरोप लगाए. नतीजा ये हुआ कि करीब 7 दिनों के अंदर ही गौतम अडानी की लगभग आधी दौलत स्वाहा हो गई. 20 दिन पहले जो गौतम अडानी लगभग 130 अरब डॉलर की दौलत के साथ दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स थे, वह 7 कारोबारी सत्रों में ही 22वें नंबर तक पहुंच गए. उनकी दौलत भी आधी से भी कम होकर लगभग 60 अरब डॉलर रह गई.
इसके बाद से ही गौतम अडानी लगातर तमाम कोशिशें कर रहे हैं, जिससे अपने नुकसान को बचा सकें, लेकिन अभी तक उनकी हर कोशिश नाकाम होती सी दिख रही है. ऐसे में बहुत से लोगों को धीरूभाई अंबानी याद आ रहे हैं. लोगों को वो किस्सा याद आ रहा है, जब कोलकाता के बियर कार्टल ने रिलायंस के शेयरों में भारी गिरावट पैदा कर दी थी, लेकिन धीरूभाई अंबानी ने उन्हें मात दे दी. ऑस्ट्रेलिया के पत्रकार हामिश मैक्डोनाल्ड की किताब ‘अंबानी एंड संस’ और गीता पीरामल की किताब ‘बिजनेस महाराजास’ में इस किस्से को काफी अच्छे से समझाया गया है. आइए आज जानते हैं कैसे बियर कार्टल के साथ भिड़े थे धीरूभाई अंबानी और मुसीबत से निकाल दिया था रिलायंस को.
करीब 40 साल पुराना है ये किस्सा
इस कहानी की शुरुआत होती है 1977 में. ये वही साल है, जब धीरूभाई अंबानी ने अपनी कंपनी रिलायंस को शेयर बाजार में लिस्ट कराने का फैसला किया था. उस वक्त रिलायंस ने 10 रुपये के भाव पर करीब 28 लाख इक्विटी शेयर जारी किए थे. जैसे ही रिलायंस आ आईपीओ आया, लोगों ने उसे तेजी से खरीदना शुरू कर दिया. धीरूभाई अंबानी ने सिर्फ शेयर बाजार में अपनी कंपनी को लिस्ट ही नहीं कराया, बल्कि शेयर बाजार की हर बारीकी को समझना शुरू कर दिया. वह समझने लगे थे कि कैसे शेयर बाजार में कुछ कंपनियां और ब्रोकर या यूं कहें कि दलाल शेयरों की कीमतों को चढ़ाने-गिराने का खेल खेलते थे.
रिलायंस का आईपीओ लिस्ट हुए अभी करीब 1 ही साल बीता था और इतने कम समय में कंपनी के शेयर का दाम 5 गुना बढ़ गया था. यानी 1978 में रिलायंस के शेयर की कीमत 50 रुपये हो चुकी ती. अगले दो सालों में 1980 तक इसका भाव 104 रुपये हो गया. वहीं उसके अगले 2 साल में 1982 तक ये शेयर 186 रुपये का हो गया. यानी करीब 5 सालों में रिलायंस का शेयर अपने आईपीओ के शेयर प्राइस की तुलना में 18 गुना चढ़ चुका था. धीरूभाई अंबानी की ये कामयाबी शेयर बाजार के कई बड़े खिलाड़ियों को चुभने लगी थी.
तेजी से चढ़ते जा रहे थे रिलायंस के शेयर
1982 तक रिलायंस के साथ 24 लाख से भी अधिक निवेशक जुड़ चुके थे. उसी दौरान रिलायंस ने निवेशकों से कुछ अतिरिक्त पैसे उधार लेने के लिए डिबेंचर्स जारी किए. बता दें कि डिबेंचर तमाम कंपनियों के लिए कर्ज के जरिए पैसे जुटाने का एक तरीका होता है. जो लोग कंपनियों का डिबेंचर खरीदते हैं, उन्हें पैसों के बदले एक निश्चित ब्याज दिया जाता है. इन तमाम कोशिशों का नतीजों था कि रिलायंस का शेयर आए दिन बढ़ता ही जा रहा था. तभी कोलकाता के बियर कार्टल ने सोचा कि रिलायंस के शेयरों में शॉर्ट सेलिंग करनी चाहिए, जिससे कंपनी को भारी नुकसान होगा और बियर कार्टल का फायदा होगा.
और बियर कार्टल ने शुरू कर दी शॉर्ट सेलिंग
वो तारीख थी 18 मार्च 1982, जब अचानक से रिलायंस के शेयरों में गिरावट आने लगी. ये सब हो रहा था बियर कार्टल की प्लानिंग से, क्योंकि वह रिलायंस के शेयरों में शॉर्ट सेलिंग कर रहे थे. इसके तहत दलालों ने ब्रोकर्स से शेयर उधार लिए और उन्हें बेचना शुरू कर दिया. एक तय समय पर उन दलालों को इन शेयरों को वापस लौटाना था, वरना 50 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से हर्जाना लगता. 18 मार्च 1982 को बाजार खुलने के करीब आधे ही घंटे में बियर कार्टल ने 3.5 लाख से भी ज्यादा शेयर शॉर्ट सेलिंग के तहत बेच दिए. देखते ही देखते रिलायंस का शेयर 131 रुपये से गिरकर 121 रुपये पर पहुंच गया.
कुछ वैसा ही हाल आज अडानी का है
उस वक्त जो कुछ हो रहा था वह काफी हद तक आज के हालात से मिलता-जुलता था. जिस तरह अभी तेजी से अडानी ग्रुप के शेयरों में गिरावट आ रही है, वैसे ही उस वक्त रिलायंस के शेयर गिर रहे थे. फर्क सिर्फ इतना है कि उस वक्त बियर कार्टल की साजिश के तहत रिलायंस के शेयर गिर रहे थे, जबकि अभी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के चलते गौतम अडानी की तमाम कंपनियों के शेयरों में गिरावट आ रही है. हालांकि, दोनों में एक बड़ी समानता भी है. उस वक्त बियर कार्टल ने रिलायंस में शॉर्ट पोजीशन ली हुई थी, जबकि अभी हिंडनबर्ग ने विदेशी बॉन्ड के जरिए गौतम अडानी की कंपनियों के शेयरों में शॉर्ट पोजीशन ली है.
धीरूभाई अंबानी ने पटल दिया बियर कार्टल का पूरा खेल
बियर कार्टल की इस साजिश का जैसे ही धीरूभाई अंबानी को पता चला, उन्होंने दुनिया के टॉप बुल दलालों (शेयर बाजार को चढ़ाने वाले) से संपर्क किया. जैसे ही इन बुल्स ने शेयर खरीदने शुरू किए, देखते ही देखते रिलायंस के शेयरों के दाम बढ़ने लगे. 18 मार्च को ही शाम होते-होते ही शेयर चढ़ने लगे और 125 रुपये पर बंद हुए. अगर एक हफ्ते तक शेयरों की कीमत ज्यादा नहीं गिरती तो बियर कार्टल को भारी नुकसान होता. उन्हें उधार लिए गए शेयर ब्रोकर को वापस लौटाने के लिए या तो महंगे दाम में खरीदने पड़ते या फिर प्रति शेयर 50 रुपये का चार्ज चुकाना पड़ता.
करीब 3 दिन में रिलयांस को 11 लाख शेयर बिक गए. हालांकि, अच्छी बात ये थी कि इनमें से करीब 8.5 लाख शेयर को धीरूभाई अंबानी के बुल्स यानी बाजार को चढ़ाने वाले दलालों ने ही खरीदे थे. बियर कार्टल का पूरा खेल ही पलट गया. कहां वो लोग रिलायंस के शेयरों में भारी गिरावट लाना चाहते थे, जबकि रिलायंस के शेयर तो उल्टा चढ़ने लगे और उनकी कीमत 131 रुपये से भी ऊपर निकल गई. अब बियर कार्टल के सामने दो रास्ते थे. या तो वह ऊंची कीमत पर शेयर खरीद कर ब्रोकर को वापस लौटाते या फिर वह हर शेयर पर 50 रुपये का हर्जाना देते.
3 दिन तक बंद रखना पड़ा था शेयर बाजार
जब बियर कार्टल को ये समझ आया कि वह अपने ही बिछाए जाल में धीरूभाई अंबानी की सूझबूझ की वजह से फंस चुके हैं, तो उन्होंने मामला सेटल करने का प्लान बनाया. हालांकि, धीरूभाई अंबानी ने उनके खिलाफ खड़े हुए दलालों को सबक सिखाने का फैसला किया और बियर कार्टल को समय देने से मना कर दिया. हालात ऐसे हो गए कि खुद शेयर बाजार के अधिकारियों को बीच में आना पड़ा, ताकि समझौता कराया जा सके. इन सब की वजह से बाजार करीब 3 दिन तक बंद रखना पड़ा था. 10 मई 1982 तक रिलायंस का शेयर आसमान छूने लगा. उसके बाद से धीरूभाई अंबानी को शेयर बाजार का मसीहा कहा जाने लगा, क्योंकि उनकी कोशिशों के चलते उनकी कंपनी के निवेशकों का कोई नुकसान नहीं हुआ. उसके बाद से धीरूभाई अंबानी के खिलाफ साजिश करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई.
अडानी ने क्यों नहीं उठाया धीरूभाई अंबानी जैसा कदम?
देखा जाए तो गौतम अडानी के मामले में तस्वीर काफी अलग है. जहां धीरूभाई अंबानी के खिलाफ साजिश के तहत रिलायंस के शेयर गिराए जा रहे थे, वहीं गौतम अडानी के शेयरों में गिरावट उनके मैनेजमेंट और बिजनेस के तरीके को लेकर हुए कई खुलासों की वजह से आ रही है. गौतम अडानी ने भी शुरुआती दौर में धीरूभाई अंबानी की तरफ अडानी एंटरप्राइजेज के एफपीओ खरीदने के लिए कुछ दोस्तों (जिन्होंने बुल्स की तरह काम किया) से संपर्क किया, लेकिन निवेशकों का भरोसा नहीं जीत पाए. यहां बड़ी दिक्कत ये हुई कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद भी कई एजेंसियों ने रेटिंग घटा दी, कुछ बैंकों ने उनके बॉन्ड लेने से मना कर दिया, ऑडिट पर भी सवाल उठे हैं. इन तमाम वजहों के चलते निवेशकों का भरोसा जीतना मुश्किल हो रहा है.