जब उत्तराखंड की बहादुर बच्ची राखी रावत के गांव में गुलदार बन गया चुनाव का मुद्दा
11 साल की राखी ने पिछले महीने एक गुलदार से लड़ते हुए अपने चार साल के भाई को उसका निवाला होने से बचा लिया
बाघ की शक्ल वाला गुलदार घूरता है तो बड़े-बड़ों के पांव हिल जाते हैं लेकिन 11 साल की राखी ने पिछले महीने एक गुलदार से लड़ते हुए अपने चार साल के भाई को उसका निवाला होने से बचा लिया। दिल्ली से इलाज कराकर राखी अब घर लौट आई है। सबक ये कि अब राखी के गांव में गुलदार ही सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है।
14, नवंबर चाचा नेहरू के दिन के रूप में याद किया जाता है, जनवरी में देश के बहादुर बच्चों को सम्मानित किया जाता है। बाल-दिवस के मौके पर जरूर याद कर लेना चाहिए कोटद्वार (उत्तराखंड) के गांव देवकुंडाई की एक बहादुर लड़की राखी को। यह, अभी पिछले महीने, अक्तूबर का वाकया है। कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल) के विकासखंड बीरोंखाल में मात्र 11 साल की राखी रावत ने अपनी जान जोख़िम में डालकर अपने चार साल के भाई राघव को गुलदार का निवाला बनने से बचा लिया। गुलदार के हमले में वह गंभीर घायल हो गई। जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करती राखी को बेस अस्पताल में इलाज के बाद हायर सेंटर, फिर दिल्ली रेफर कर दिया गया।
जिस समय गुलदार ने अटैक किया, राखी अपने छोटे भाई के साथ घर से बाहर खेलने गई थी। जब वह उसे कंधे पर बैठाकर घर लौट रही थी, तभी रास्ते में घात लगाकर बैठे गुलदार ने उसके भाई पर ऊपर से झपट्टा मार दिया। इस दौरान अपनी जान की परवाह किए बगैर राखी ने भाई को अपनी गोद में दबोच लिया। उसकी जान बच गई लेकिन भूखे गुलदार ने उसे बुरी तरह लहूलुहान कर डाला।
वैसे राखी अब दिल्ली से इलाज कराकर अपने घर लौट आई है। उसकी मां शालिनी देवी बताती हैं कि दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल से उसका इलाज हुआ। अब पूरी तरह से स्वस्थ है और खुशहाल भी कि उसने अपने मासूम भाई को बचा लिया। राखी जब दिल्ली से अपने गांव लौटी, गांव में लोगों ने विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी, पूर्व राज्यमंत्री जसवीर राणा, पूर्व ब्लॉक प्रमुख गीता नेगी, बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अजय पंत आदि की मौजूदगी में उसका फूल-मालाओं से स्वागत किया। उसके साथ उसके घर वालों का भी लोगों ने सम्मान किया। राखी को उसकी बहादुरी के लिए 21 हजार रुपये की नगद राशि और एक जैकेट भी भेंट की गई।
ग्रामीण कहते हैं कि उत्तराखंड में जंगली जानवरों के आतंक और लचर स्वास्थ्य सेवाओं पर सिस्मटम आंखें मूंदे हुए है। आज भी गांवों में भूखे गुलदार सरेआम घूम रहे हैं। वे आए दिन लोगों पर हमला कर रहे हैं। वन्यजीवों को उनके गांवों, खेत-खलिहानों में घुसने से रोकने के लिए सिस्टम के पास कोई योजना नहीं है। वन्यजीवों का आतंक भी गांव से पलायन का बड़ा कारण बन रहा है।
वन्यजीवों के हमले से ग्रामीणों का पलायन उत्तराखंड का एक बड़ा गंभीर मसला है। इसलिए राखी की बहादुरी एक असामान्य वाकये के रूप में याद की जा रही है। राखी की आपबीती देश के बच्चों, बड़ी बहनों के लिए प्रेरक है तो सिस्टम के लिए एक बड़ा सबक कि 14 नवंबर का बाल-दिवस आज किस तरह बच्चों की हिफाजत का प्रसंग बन गया है।
तभी तो जब कुछ दिन पहले उत्तराखंड के बीरोंखाल, पौड़ी आदि में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का तीसरा चरण आया तो पोखड़ा, नैनीडांडा, थलीसैंण, रिखणीखाल और बीरोंखाल ब्लॉक के एक दर्जन से ज़्यादा गांवों के आतंकित मतदाताओं ने गुलदार को ही चुनाव का मुख्य मुद्दा बना दिया। वे कहने लगे, वोट उसे देंगे, जो गुलदारों से उनकी जान की हिफाजत का वायदा करेगा। वे सवाल उठाते हैं कि राखी ने तो ढाल बनकर अपने भाई को बचा लिया, अब गांवों में स्वच्छंद विचरते खूंख्वार गुलदारों से उन्हे कौन बचाएगा!
आज भी चारो तरफ गुलदारों की दहशत कायम है। राखी के पिता दलवीर सिंह रावत कहते हैं कि गुलदार दिनदहाड़े गांव में घुस आ रहे हैं। इससे बच्चों का स्कूल जाना थम गया है। इलाक़े में गश्त बढ़ाने की बात पर वन विभाग चुप्पी साध लेता है। इसलिए चुनाव में इस इलाके के लिए गुलदार ही सबसे बड़ा मुद्दा।