मां ने तूफान से कश्ती निकाली तो मुंबई की चॉल से जय पहुंच गए वर्जीनिया यूनिवर्सिटी
सबकी मां ऐसी नहीं होतीं, जो सिर्फ वात्सल्य के झुनझुने से अपना और बच्चे का मन बहलाने की बजाय उसकी रगों में कामयाबी का जुनून भर दें। जयकुमार को ऐसी मां नलिनी मिलीं, जिनकी हिम्मत, मेहनत, प्रेरणा से वह कुर्ला की चॉल से निकल कर ग्रेजुएट रिसर्च असिस्टेंट पद पर काम करने के लिए वर्जीनिया यूनिवर्सिटी पहुंच गए।
कुर्ला वेस्ट (मुंबई) की गौरी शंकर चॉल के एक मामूली से कमरे में 15 सितंबर 1994 को जनमे छब्बीस वर्षीय जयकुमार वैद्य के लिए जिंदगी उनके बचपन से ही कभी आसान नहीं रही लेकिन कठिन तपस्या पर पार पाते हुए एक कामयाब साधक की तरह अब वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के बुलावे पर ग्रेजुएट रिसर्च असिस्टेंट पद पर काम करने के लिए अमेरिका पहुंच चुके हैं। पैदा होने के बाद से ही उनके लिए दुखों का पहाड़ ढोती रही अपनी तलाकशुदा मां नलिनी को भी अब वह अमेरिका में अपने साथ रखना चाहते हैं ताकि उनकी भी जिंदगी के बाकी दिन आसान और सुखमय बसर हो सकें। जयकुमार वैद्य की यह ऊंची छलांग उन युवाओं के लिए एक जरूरी सबक और प्रेरणा स्रोत है, जो अपनी अनुकूल घरेलू परिस्थितियों के बावजूद खुद की नाकामियों से हाशिये पर हैं।
तूफान में भी कश्ती पार करा देने की मिसाल जैसी जयकुमार की मां नलिनी ने पति से तलाक के बाद बेटे को ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए तमाम मुश्किलें झेलीं। कई तरह के कठिन काम किए। एक पैकेजिंग फर्म में आठ हजार की नौकरी कर रही थीं, जो एक दिन अचानक छिन गई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस तरह जय अपनी जीवन की पाठशाला में बचपन से ही मां को असहनीय कठिनाइयों से जूझते देख कर कोई बड़ा संकल्प लेने की मन में जिद ठान बैठे। फीस न भरने पर जय को परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया। मां-बेटे ने अक्सर कई-कई दिन बड़ा पाव, समोसे खाकर गुजारे।
ग्यारह साल की उम्र से ही जय कभी कपड़े तो कभी टीवी मैकेनिक की दुकान पर नौकरी करने लगे। मां-बेटे को रिश्तेदारों और सुपरिचितों ने भी ठुकरा दिया तो एक मंदिर ट्रस्ट से फीस, कपड़ा, राशन की और इंडियन डेवलपमेंट फाउंडेशन से इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए बिना ब्याज के कर्ज की मदद मिली।
जय बताते हैं-
'उन विपदा के मारे दिनों में सुब्रमण्यन दंपति, अनिल मोरका, बलदेव सर, टाटा ट्रस्ट और इंडिया डेवलपमेंट फाउंडेशन जैसी संस्थाओं और लोगों ने सहायता की।'
जय जब कॉलेज में इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उन्हे रोबोटिक्स में प्रदेश और नेशनल लेबल के चार पुरस्कार मिले। उसी वक्त उनका रुझान नैनोफिजिक्स में होने लगा, जिसके बूते उनको टूब्रो और लार्सन में इंटर्नशिप का अवसर मिल गया। उसके बाद उनको टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल में 30 हजार महीने की नौकरी मिल गई। अब उनकी जिंदगी की रफ्तार तेज हो चली। उस पैसे से उन्होंने मामूली से घर की मरम्मत के साथ ही छोटे-मोटे कर्ज चुकाने शुरू कर दिए। उन्ही दिनो उन्होंने जीआरआई और टोफल के एग्जाम की तैयारी शुरू कर दी। साथ ही डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स, सर्किट एंड ट्रांसमिशन लाइंस एंड सिस्टम, तथा कंट्रोल सिस्टम पर युवाओं को कोचिंग देने लगे।
जयकुमार बताते हैं कि 'उन छात्रों की कोचिंग उनके जीवन का अद्भुत अनुभव रही। मैं जरूरतमंद और वंचित विद्यार्थियों की मदद करना चाहता हूँ। जूनियर कॉलेज में मैं स्कूल के छात्रों को पढ़ाता था। यह मेरे लिए एक नया पेशा नहीं था। मुझे ऋण चुकाने, अपने घर का नवीनीकरण करने और अमेरिका जाने के लिए अपनी टिकट का भुगतान करने और कुछ पॉकेट मनी साथ ले जाने की आवश्यकता थी।' एक दिन जब टीआईएफआर में जूनियर रिसर्च एसोसिएट का काम करते हुए इंटरनेशनल जर्नल्स में जयकुमार के दो रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए, उसे पढ़ने के बाद उनको ग्रेजुएट रिसर्च असिस्टेंट पद पर काम करने के लिए वर्जीनिया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) से बुलावा आ गया।
इन दिनो जयकुमार अपने प्यारे देश भारत को नैनो एंड माइक्रो टेक्नोलॉजी में महाशक्ति बनाने का सपना देखते हैं।
वह बताते हैं-
'अपनी पीएचडी के बाद मैं किसी इंडस्ट्री में नौकरी करना चाहता हूँ। बाद में भारत में एक कंपनी की स्थापना करना चाहता हूँ। चाहता हूँ कि भारत प्रौद्योगिकी का आत्मनिर्भर विनिर्माण केंद्र बने। इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मेरी दिलचस्पी नैनोस्केल भौतिकी में है। मैंने अपनी इंजीनियरिंग के बाद के शोध के लिए जो विषय चुना, वह भी नैनोस्केल भौतिकी से संबंधित रहा है। अब मैं शोध कर रहा हूँ कि नैनोस्केल डिवाइस और अन्य सामान कैसे बनाया जाए।' अपनी मां को भी अमेरिका ले जाने की तैयारी कर रहे जय बताते हैं- 'मेरी माँ मेरे जीवन की एकमात्र ऐसी शख्सियत हैं, जो मुझे हर दिन जीने के लिए प्रेरित करती रहती हैं। मैं कभी भी उनका कर्ज नहीं चुका सकता। वह मेरी प्रेरणा हैं। उन्होंने मुझे प्रेरित किया तो मैंने कभी हार नहीं मानी। ऐसे समय थे, जब मैंने घर से चले जाने के बारे में सोचा था, लेकिन मैं अपनी माँ को अब और नहीं छोड़ सकता। जब तक वह भारत में हैं, तभी तक, उन्हे भी अमेरिका ले आऊंगा।'