मिलें जर्मन स्टडीज में पीएचडी करने वाली पहली नेत्रहीन महिला उर्वी जंगम से
खूबसूरती का एक अलग ही कॉन्सेप्ट विकसित किया है जर्मन स्टडीज में पीएचडी करने वाली पहली नेत्रहीन महिला उर्वी जंगम ने...
एक स्टोरीटेलर होने के नाते मुझे कई प्रेरक लोगों से मिलने और खुद उनकी जुबानी उनकी कहानी सुनने और सुनाने का सौभाग्य मिला है। इस बार मैं आपके सामने उर्वी जंगम की प्रेरणादायी कहानी लेकर आई हूं। यह दुनिया की पहली ऐसी नेत्रहीन शख्सियत हैं, जिन्होंने जर्मन स्टडीज में अपनी डॉक्टरेट डिग्री पूरी की है। इसके साथ ही उन्होंने 'अदृश्य रस' नाम से सौंदर्य बोध की एक नई अवधारणा भी विकसित की है। अदृश्य रस, किसी चीज को बिना देखे हुए, अन्य बाकी पांचों इंद्रियों के इस्तेमाल से उसके सौंदर्य को समझने की क्षमता है।
उर्वी ने धारणा के विज्ञान के तौर पर सौंदर्यशास्त्र की पढ़ाई के दौरान अपनी थीसिस में, बिना किसी चीज को देखे हुए उसके सौन्दर्य को समझने की संभावना पर काम किया। 'एस्थेटिक्स ऑफ द नॉन-विजुअल’ टाइटल से उनके पेपर को विशेषज्ञों ने खूब सराहा। विशेषज्ञों के मुताबिक किसी नेत्रहीन की ओर से, नेत्रहीन पर, नेत्रहीन के लिए (जो देख सकते हैं उनके लिए भी) यह अपने आप में एक दुर्लभ और अपनी तरह का पहला रिसर्च पेपर है। उर्वी की रिसर्च नेत्रहीनों द्वारा सौंदर्य बोध के तत्वों को समझने के लिए नेत्रहीन लेखकों के साहित्यिक कार्यों का विश्लेषण करता है।
पश्चिमी विश्लेषण के मुताबिक सौंदर्यशास्त्र की अवधारणा को सिर्फ देखकर ही समझा जा सकता है। यह रस के भारतीय सौंदर्य की अवधारणा से अलग है, जिसमें स्वाद को प्रमुख इंद्री के रूप में पहचाना जाता है। हालांकि उर्वी की थीसिस में बताया गया है कि यह अवधारणा भी पूरी सही नहीं है। ऐसे में एक नई अवधारणा की जरूरत थी, जो मौजूदा रस थ्योरी को को नए आयाम दे सके। फलस्वरूप उन्होंने 'अदृश्य रस' की अवधारणा विकसित की।
उर्वी बताती हैं,
'अदृश्य रस या नहीं देखी जा सकने वाली चीजों का सौंदर्य बोध, सिर्फ विजुअल सेंस की कमी या बाकी के 4 इंद्रियों से निकलकर आने वाली समझ ही नहीं है। दृश्यों को देखकर धारणा बनाने की क्षमता की कमी वास्तव में बाकी के चार इंद्रियों- सुनना, छूना, सूंघने और स्वाद के सही इस्तेमाल से एक अलग क्षमता प्राप्त करना हो सकता है, जिसमें एक अद्वितीय कल्पना और सहानुभूति भी जुड़ी होती है।'
उर्वी जैसे कईयों ने समय से पूर्व पैदा होने के बाद इनक्यूबेटर में रखे जाने के दौरान अपनी रौशनी खो दी थी। ऐसे बच्चों में बचपन से ही सौंदर्य अवधारणा को समझने की क्षमता विकसित हो जाती है। उर्वी ने भारत में स्थित इंटिग्रेटेड एजुकेशन प्रोग्राम ऑफ नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की है। उर्वी का मानना है कि एक नियमित स्कूल में पढ़ाने के उनके माता-पिता के फैसले ने उनकी सर्वांगीण विकास में अहम भूमिका निभाई है।
कोई भी चुनौती बड़ी नहीं है
उर्वी की बचपन से ही भाषा में दिलचस्पी थी। हालांकि उनका जर्मन स्टडीज में पीएचडी पूरा करना और एक अनुभवी भाषा विशेषज्ञ बनने का सफर इतना आसान नहीं था। 31 वर्षीय उर्वी ने मुझे बताया कि वह बचपन से ही अपनी जिंदगी में आने वाली चुनौतियों का सामना करने और उन्हें कमतर आंकने वालों को गलत साबित करने की आदी हो चुकी हैं। कॉलेज के पहले दिन भी उन्होंने ठीक यही किया, जब उन्हें जर्मन स्टडीज की जगह मराठी जैसी क्षेत्रीय भाषाओं को चुनने की सलाह दी गई थी।
उर्वी ने बताया,
'मैं स्कूल के दिनों से ही अपने जीवन में चुनौतियों का सामना करने की आदी हो चुकी हूं। लोग मुझसे कहते थे, 'तुम यह नहीं कर पाओगी। तुम वह नहीं कर पाओगी। इससे दूर रहो।' मुझे इस सबकी आदत पड़ गई थी। मैंने हमेशा चुनौतियों का 'हां' बोलने पर जोर दिया कि मैं ऐसा कर सकती हूं। मैं अपने लक्ष्य को हासिल कर सकती हूं और जर्मन के मामले में भी ऐसा ही हुआ। मैंने इसे एक चुनौती के तौर पर लिया क्योंकि मुझे अपनी क्षमताएं पता थीं और आज देखिए मैंने यह कर दिखाया।'
उर्वी ने मुंबई यूनिवर्सिटी से जर्मन स्टडीज में मास्टर की डिग्री पूरी की थी और उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ गॉटिंगजन में रिसर्च ते लिए DAAD पीएचडी स्कॉलरशिप मिली थी। वह अपनी थीसिस पेपर के पूरा होने का श्रेय अपने मेंटर और गाइड प्रोफेसर डॉ. विभा सुराना को देती है, जिन्होंने इस दौरान उन्हें समर्थन, मार्गदर्शन और प्रोत्सहान दिया। उर्वी बताती है कि जब वह
16 साल की थी तब मैक्स मुलर भवन के एक जर्मन शिक्षिका ने इस भाषा के लिए उनके प्यार को आगे बढ़ाने में मदद की।
उर्वी ने बताया,
'मुझे जर्मन भाषा से प्यार हो गया था, हालांकि अंग्रेजी मेरा पहला प्यार है। मैं जर्मन सीखने के लिए तभी पक्का हो गई थी और और मेरे पास मैक्स मुलर भवन में एक शानदार टीचर भी थीं। असल में उन्होंने ही भाषा के लिए मुझे प्रेरित किया और मेरे अंदर इस भाषा के लिए दिलचस्पी और जुनून जगाया और यही से मैंने इस सफर की शुरुआत की।'
उर्वी फिलहाल मुंबई यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ जर्मन स्टडीज की पीएचडी रिसर्च स्कॉलर हैं। उर्वी ने कभी भी नहीं देख पाने की क्षमता को अपने जीवन में बाधा नहीं बनने दिया। उनका यह विश्वास है आंख की इंद्री के अलावा बाकी के इंद्रियों की क्षमता को कमतर करके देखा जाता है। इसके चलते एक नेत्रहीन व्यक्ति की दुनिया का अवलोकन करने की क्षमता को भी कमतर मापा जाता है, खासकर से यात्रा के दौरान।
हर चीज में खूबसूरती देखना
उर्वी का चेहरा तब रोशन होता है जब वह मुझे बताती है कि वह लोगों के साथ बातचीत को काफी पसंद करती हैं। वह लोगों का अवलोकन करती हैं, उनकी बातचीत सुनती हैं, फिर चाहे वह ट्रेनों में हो या किसी सार्वजनिक स्थान पर उनके आसपास बैठे लोग।
उर्वी ने बताया,
'मैं लोगों का अवलोकन करती हूं और यह काफी मजेदार है। आपके आस-पास बहुत सारी कहानियां घूमती रहती हैं। मैं उन्हें वास्तव में देख तो नहीं सकती हूं लेकिन उन्हें बाकी सक्रिय इंद्रियों की मदद से महसूस कर सकती हूं। आपके पास और भी इंद्रियां है, जिसका इस्तेमाल किया जा सकता है।'
उर्वी आने वाले समय में जापान, अमेरिका, अफ्रीका और डेनमार्क की यात्रा कर भाषा को लेकर अपने जुनुन को और आगे ले जाने का सपना देखती हैं। उर्वी की यात्रा का सपना खातसौर से अदृश्य रस की उनकी अवधारणा को और स्थापित करने के लिए हैं। इन यात्राओं में वह वर्कशॉप्स और सेमिनार का आयोजन करेंगी, जिससे कि उनकी अवधारणा सिर्फ किताबों तक ही न सिमट कर रहे, बल्कि लोगों तक पहुंचे।
उर्वी के काम को अलग कर दिया जाए तो भी उन्होंने स्पष्टता और आशावाद की भावना प्रदर्शित की है। यह ऐसे व्यक्ति में प्रशंसनीय और सराहनीय है जिसने विपरीत परिस्थितियों का सामना किया है, लेकिन अभी भी अपने जीवन की सभी छोटी चीजों और रोजमर्रा के क्षणों में सुंदरता देखती हैं।
उर्वी ने बताया,
'मुझे लगता है कि लोगों को वास्तव में समझने की आवश्यकता है कि आपको हर पल जीवन जीने की ज़रूरत है, सुबह अपने पहले कप की कॉफी से, आपको इसे सूंघने और पक्षियों को चहकने की आवाज सुनने की ज़रूरत है। आपको उन छोटी चीजों की सराहना करने और हर पल जीने की जरूरत है, तभी जीवन के सही मायने हैं।'