जब हड़ताल होने पर खुद साइकिल बनाने लगा मालिक, Hero Cycles के ओपी मुंजाल से जुड़ा दिलचस्प किस्सा
साल 2010 में मुंजाल भाइयों के कारोबार का बंटवारा हुआ. बिजनेस को चार हिस्सों में बांट लिया और कोई हंगामा नहीं हुआ.
हीरो साइकिल्स (Hero Cycles) का नाम कौन नहीं जानता. चार भाइयों की लगन और मेहनत से शुरू हुई एक विरासत..आमतौर पर जब किसी फैक्ट्री में हड़ताल होती है तो काम बंद पड़ जाता है और मालिक और वर्कर्स के बीच समझौते की कवायद होने लगती है. लेकिन हीरो साइकिल्स की फैक्ट्री में जब हड़ताल हुई तो एक अलग नजारा सामने आया...वह नजारा था मालिक के खुद साइकिल बनाने का..और वह शख्स थे ओम प्रकाश मुंजाल (Om Prakash Munjal) उर्फ ओपी मुंजाल...
ओपी मुंजाल हीरो साइकिल्स के फाउंडर्स में से एक थे. दरअसल हीरो साइकिल्स की शुरुआत चार भाइयों बृजमोहन लाल मुंजाल, ओम प्रकाश मुंजाल, सत्यानंद मुंजाल और दयानंद मुंजाल ने की थी. मुंजाल भाइयों का जन्म कमालिया पाकिस्तान में एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था. सन 1944 में मुंजाल परिवार अमृतसर आ गया और चारों भाइयों ने साइकिल के स्पेयर पार्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग का कारोबार शुरू किया. कारोबार आसान तो नहीं था, लेकिन मुंजाल ब्रदर्स कहां हार मानने वाले थे. कारोबार धीरे-धीरे आगे बढ़ ही रहा था कि 1947 में देश का बंटवारा हो गया. अमृतसर में कारोबारी माहौल काफी प्रभावित हुआ और इसके चलते चारों भाइयों ने अपना कारोबार लुधियाना में शिफ्ट कर लिया. 1956 में चारों भाई कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग से एक पूरी साइकिल बनाने पर शिफ्ट हुए और ब्रांड को नाम दिया 'हीरो' (Hero). हीरो की शुरुआत 50,000 रुपये का बैंक लोन लेकर की गई थी. यह भारत की पहली साइकिल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट थी.
धुन के पक्के ओपी जब खुद बनाने लगे साइकिल
ओम प्रकाश मुंजाल ग्राहकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पूरी शिद्दत से निभाने में विश्वास रखते थे. एक बार जब पंजाब में आम हड़ताल थी तो हीरो साइकिल्स की फैक्ट्री में भी हड़ताल हो गई. कामगार जाने लगे. ओपी मुंजाल फैक्ट्री में ही थे. वह केबिन से निकले और आवाज देकर कहा, ‘आप चाहें तो घर जा सकते हैं पर मैं काम करूंगा. मेरे पास ऑर्डर हैं.’ यह कहते हुए वह मशीनें चालू करने लगे. जब कुछ सीनियर्स ने उन्हें रोका तो जवाब में ओपी ने कहा, ‘डीलर समझ सकते हैं कि हड़ताल के कारण काम नहीं हो रहा है, पर वह बच्चा कैसे समझेगा, जिसके माता-पिता ने बर्थडे पर उसे साइकिल दिलाने का वादा कर रखा है और हमारी हड़ताल के कारण शायद उसे साइकिल न मिले. अगर मैं अपने बच्चे से वादा करूं तो यह अपेक्षा भी करूंगा कि उसे पूरा करूं. इसलिए मैं जितनी साइकिल बना सकता हूं, बनाऊंगा.' ओपी की यह बात सुनकर सभी कर्मचारी वापस काम पर लौट आए और फिर उस दिन जितने भी ऑर्डर पेंडिंग थे, सब पूरे कर दिए गए.
जब ट्रकों की हड़ताल हुई तो बस का लिया सहारा
पंजाब में हड़ताल के कारण ट्रकों के पहिए भी थम गए थे. ऐसे में तो ओपी मुंजाल ने बसों के माध्यम से साइकिलें पहुंचाईं. मुंजाल भाई केवल अपने काम के प्रति समर्पित ही नहीं थे बल्कि हीरो साइकिल्स के कामकाज से जुड़े हर शख्स के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी पूरा ख्याल रखते थे. साल 1980 में हीरो साइकिल से लदा एक ट्रक एक्सिडेंट में पलट गया और उसमें आग लग गई. पूरा कंसाइनमेंट जल गया. तब ट्रांसपोर्टेशन पर इंश्योरेंस नहीं था. जब इस हादसे की खबर ओपी मुंजाल तक पहुंची तो उन्होंने सबसे पहले अपने मैनेजर से ड्राइवर के सही सलामत होने को लेकर पूछा. फिर मैनेजर को हिदायत दी कि डीलर को फ्रेश कंसाइनमेंट भेजा जाए, क्योंकि इसमें डीलर की कोई गलती नहीं है, उसका नुकसान मेरा निजी नुकसान है. 13 अगस्त 2015 को ओमप्रकाश मुंजाल की मृत्यु हो गई.
2010 में हुआ हीरो परिवार में बंटवारा
साल 2010 में मुंजाल भाइयों के कारोबार का बंटवारा हुआ. बिजनेस को चार हिस्सों में बांट लिया और कोई हंगामा नहीं हुआ. बंटवारे में बृजमोहन लाल मुंजाल के परिवार के हिस्से में हीरो होंडा मोटर्स में 26 फीसदी हिस्सेदारी आईं. ओम प्रकाश मुंजाल के बेटों को हीरो साइकिल्स की जिम्मेदारी मिली. सत्यानंद मुंजाल के बेटे को मैजेस्टिक ऑटो, हाइवे साइकिल, मुंजाल ऑटो एंड मुंजाल शोवा की जिम्मेदारी मिली और दयानंद मुंजाल के बेटों के हिस्से सनबीम ऑटो एंड हीरो एक्सपोर्ट्स का कारोबार आया.