Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

कैंसर पीड़ित सिंगल मदर का इलाज करते-करते मातृ-भक्त बेटा बन गया योगा टीचर

कैंसर पीड़ित सिंगल मदर का इलाज करते-करते मातृ-भक्त बेटा बन गया योगा टीचर

Sunday January 12, 2020 , 4 min Read

कैंसर को मात दे देने वाली एक मां और उनके बेटे की यह ऐसी अनोखी दास्तान है, जिसने ऐसे मरीजों के लिए उम्मीदों का एक नया विकल्प दे दिया है। इतना ही नहीं, कीमो के दौरान जब पीड़ित मां से बाल झड़ गए तो बेटे ने भी सिर मुंड़वा लिया। मां की योगा चिकित्सा देखते, करते आज वह बेटा खुद योगा टीचर बन चुका है।


k

बेटे तबे एटकिन्स के साथ मां साहेल अनवारिनजाद 



भारत में हर आठ में एक महिला ब्रेस्ट कैंसर की चपेट में है। देश में इससे पीड़ित महिलाओं की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। एक सर्वे के अनुसार समूचे विश्व में औसतन हर 2 मिनट बाद कोई न कोई महिला ब्रेस्ट कैंसर की मरीज पाई जाती है तथा हर 13 मिनट बाद इस कैंसर से किसी न किसी महिला की मौत हो रही है।


हर दस में से एक महिला की जिन्दगी ब्रेस्ट कैंसर से खत्म हो जा रही है। नए रिसर्च में एक और खतरनाक जानकारी सामने आई है कि पिछले कुछ वर्षों में ब्रेस्ट कैंसर की जगह दूसरे तरह का कैंसर महिलाओं के लिए जानलेवा बन रहा है।


यह रिसर्च अमेरिका में ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित साढ़े सात लाख महिलाओं की डाटा स्टडी के बाद सामने आया है। शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि पिछले एक दशक से स्ट्रोक और अल्जाइमर की बीमारियां भी ब्रेस्ट कैंसर पीड़ित महिलाओं की मृत्यु की वजह बन रही हैं।


इस दस साल की रिसर्च अवधि में हार्ट अटैक से होने वाली मौतों में महिलाओं की तादाद पुरुषों के मुकाबले बहुत ज्यादा रही है। यद्यपि यहां हम अमेरिका की ही कैंसर पीड़ित एक ऐसी महिला की दास्तान बता रहे हैं, जिसका इलाज करते-करते उनका बेटे तबे एटकिन्स योगा टीचर बन गए।


यह दास्तान अप्रैल 2012 से शुरू होती है, जब अमेरिकी महिला साहेल को स्टेज थ्री कैंसर का पता चला था। वह सांस तक नहीं ले पा रही थीं और उनको पता भी नहीं था कि वजह क्या है और वह बच पाएंगी भी या नहीं। उनका इलाज शुरू हो गया। सिंगल मां होने के कारण उनके सात साल के बेटे तबे की चिंताएं बढ़ती जा रही थीं।





डॉक्टरों का कहना था कि शरीर कमजोर होने के कारण बीमारी फिर से हो सकती है। सितंबर 2012 में डॉक्टरों ने साहेल को बताया कि वह कैंसर-मुक्त हैं। इसके बाद कमजोर शरीर को हेल्दी रखने का चैलेंज था। इसमें योग काम आया। किसी के कहने पर साहेल ने योग क्लासेस जॉइन कर ली।


नतीजा शानदार था और जल्द वे स्वस्थ होने लगीं। कैंसर पीड़ित साहेल को ठीक करने में जितना योगदान डॉक्टरों का रहा, उतना ही योग का भी।


योग की वजह से ही कीमो के बाद साहेल तेजी से रिकवर होने लगीं तो इसका उनके सात साल के बेटे तबे एटकिन्स के जेहन पर ऐसा असर पड़ा कि अब वह दुनिया का यंगेस्ट योगा टीचर बन चुके हैं। सात साल की उम्र से मां के साथ रहकर योगा सीख चुके तबे अब चौदह साल के हो चुके हैं और सप्ताह में योगा की तीन-तीन क्लासें चलाने लगे हैं। इसमें वह सात अलग अलग तरह के कोर्स सर्टीफिकेट की ट्रेनिंग देते हैं।


तबे बताते हैं कि जब उनकी मां साहेल अनवारिनजाद कैंसर से खुद को एकदम बेबस महसूस करने लगी थीं, कीमो के दौरान उनके सब बाल भी झड़ गए तो उन्होंने भी अपना सिर मुंड़वा लिया ताकि मां की पीड़ा को महसूस कर सकें।


उन्होंने देखा कि योग ने कैंसर से मायूस हो चुकी मां को ठीक होने में नई उम्मीद जगा दी। इसके बाद उन्होंने लोगों को जागरूक करने का संकल्प लिया। योग ने मां को स्वस्थ करने में जादू जैसा काम किया। योग की बदौलत अब वह कैंसर को मात दे चुकी हैं। इस सब से तबे को इतनी खुशी मिली कि वह योग शिक्षक बन चुके हैं।