पद्मश्री पाने वाले जानुम सिंह सोय कौन हैं? उनका क्या योगदान है?
केंद्र सरकार ने आदिवासी भाषा ‘हो’ के संरक्षण के लिए झारखंड के प्रोफेसर जानुम सिंह सोय को इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की है. सरकार ने उनकी मातृभाषा ’हो’ को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की दिशा में उनके काम की सराहना की है.
देश के 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने 106 लोगों को पद्म पुरस्कारों के लिए चुने जाने की घोषणा की. इन 106 लोगों में झारखंड से आने वाले हिंदी के प्रोफेसर जानुम सिंह सोय भी शामिल हैं.
दरअसल, केंद्र सरकार ने आदिवासी भाषा ‘हो’ के संरक्षण के लिए झारखंड के प्रोफेसर जानुम सिंह सोय को इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की है. सरकार ने उनकी मातृभाषा ’हो’ को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की दिशा में उनके काम की सराहना की है.
कौन हैं जानुम सिंह सोय?
72 वर्षीय जानुम सिंह सोय का जन्म 8 अगस्त, 1950 को घाटशिला के गितिल लुलुंग गांव में हुआ था. उन्होंने अपने गांव से ही प्रारंभिक शिक्षा की शुरूआत की. इसके बाद वे घाटशिला कॉलेज से उच्च शिक्षा की पढ़ाई की.
साल 1977 में वे घाटशिला कॉलेज में हिंदी के लेक्चरर नियुक्त किए गए. इसके बाद कोल्हान यूनिवर्सिटी के हिंदी विभागाध्यक्ष भी रहे. वह कोल्हान विश्वविद्यालय से ही रिटायर हुए थे.
वह पिछले कई दशकों से झारखंड में जनजातीय भाषा ‘हो’ को संरक्षण एवं प्रोत्साहन देने का काम कर रहे हैं. झारखंड में यह भाषा ‘हो’ जनजाति के बीच बोली जाती है, जो मुख्य रूप से झारखंड के सिंहभूम क्षेत्र में निवास करती है जिसे कोल्हान के नाम से भी जाना जाता है.
6 किताबें लिखीं
प्रोफेसर सोय जनजाति की संस्कृति और जीवनशैली पर 6 किताबें लिख चुके हैं. इसमें चार कविता संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं.
पहला काव्य संग्रह साल 2009 में प्रकाशित हुआ. इसे 'बाहा सगेन' नाम दिया गया था. इस काव्य संग्रह का दूसरा हिस्सा इसी साल प्रकाशित हुआ है. इस उपन्यास में उन्होंने आदिवासियों की परंपरा, संस्कृति, त्योहारों और लोकरीत के गीतों को शामिल किया है.
इनका 2010 में 'कुड़ी नाम' उपन्यास प्रकाशित हुआ. यह उपन्यास हो जीवन के सामाजिक विषयों की पृष्ठभूमि पर आधारित है. इसके अतिरिक्त इनके कविता संग्रह 'हरा सागेन' के दो भाग प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि 'हो-भाषा' और आदिवासियों की परंपरा को लेकर मेरी रुचि बचपन से ही रही है.
प्रोफेसर सोय ने मीडिया से बात करते हुए आशा व्यक्त की कि यह पुरस्कार आदिवासी ‘हो’ भाषा के संरक्षण पर फिर से ध्यान केंद्रित करेगा.
झारखंड के शिक्षाविदों और आदिवासी समुदाय में खुशी की लहर
बुधवार को पद्म पुरस्कार के लिए प्रोफेसर सोय का नाम घोषित होने पर यहां लोगों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी और विद्वानों ने कहा कि ‘झारखंड के लाल’ पद्मश्री जानुम सिंह सोय ने ‘हो’ भाषा को राष्ट्रीय पहचान दिला दी है.
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक पद्मश्री बलबीर दत्त ने कहा कि गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या झारखंड के लिए खुशियां लेकर आयी क्योंकि ‘हो’ भाषा के विद्वान जानुम सिंह सोय को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया. उन्होंने कहा कि सोय को यह सम्मान ‘हो’ भाषा और ‘हो’ जनजाति के लिए किए गए उनके कार्य के लिए मिला है.
इस बीच, सामाजिक कार्यकर्ता एवं साहित्यकार रीता शुक्ला ने कहा कि आदिवासी भाषा के विद्वान सोय को पद्म पुरस्कार देने से राज्य के समूचे आदिवासी समुदाय का मान बढ़ा है.
पद्म पुरस्कार क्या है?
बता दें कि, पद्म पुरस्कार कला, सामाजिक कार्य, सार्वजनिक मामलों, विज्ञान एवं इंजीनियरिंग, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य एवं शिक्षा, खेल, लोक सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिए जाते हैं.
‘पद्म विभूषण’ असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है. उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा के लिए ‘पद्म भूषण’ और किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिए ‘पद्म श्री’ प्रदान किया जाता है.
इस सूची में पद्म विभूषण से छह, पद्म भूषण से नौ और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित होने वाले 91 लोगों के नाम शामिल हैं. पुरस्कार पाने वालों में 19 महिलाएं हैं और सूची में विदेशियों/एनआरआई/पीआईओ/ओसीआई श्रेणी के दो व्यक्ति भी शामिल हैं. सूची में मरणोपरांत पुरस्कार पाने वाले सात लोग भी शामिल हैं.
Edited by Vishal Jaiswal