एडटेक सेक्टर के लिए क्यों जरूरी है सेल्फ रेगुलेशन? IEC और IGRB जैसी संस्थाएं कैसे कर रहीं काम?
साल 2015 में 1000 से अधिक एडटेक स्टार्टअप्स खुले और उन्होंने 125 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई थी. इसका सबसे बड़ा कारण मिडल क्लास की आय में तेजी से होने वाली वृद्धि और मोबाइल डिवाइसेज की उपलब्धता और इंटरनेट एक्सेस में तेजी से आई वृद्धि थी.
सैटेलाइट बेस्ड एजुकेशन और स्मार्ट क्लासरुम की संकल्पना सामने आने के बाद साल 2004 में शिक्षा के पारंपरिक तरीके से हटकर भारत में एजुकेशन-टेक्नोलॉजी (Edtech) की यात्रा की शुरुआत हुई थी.
इसके बाद साल 2008 में
और जैसी कंपनियों के साथ भारत में ई-लर्निंग की भी शुरुआत देखी गई. हालांकि, वह साल 2015 था जो देश में एडटेक सेक्टर के लिए एक बड़े बदलाव के रूप में सामने आया.साल 2015 में 1000 से अधिक एडटेक स्टार्टअप्स खुले और उन्होंने 125 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई थी. इसका सबसे बड़ा कारण मिडल क्लास की आय में तेजी से होने वाली वृद्धि और मोबाइल डिवाइसेज की उपलब्धता और इंटरनेट एक्सेस में तेजी से आई वृद्धि थी.
साल 2015 से 2019 के बीच 3600 से अधिक एडटेक स्टार्टअप्स खुले. साल 2016 में भारत का एजुकेशन-टेक्नोलॉजी (एडटेक) सेक्टर 247 मिलियन डॉलर का था और इसमें 15 लाख यूजर्स थे.
साल 2017 में KPMG ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत का एडटेक मार्केट अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा मार्केट बन गया है. साल 2018 में देश को बायजू के रूप में पहला एडटेक यूनिकॉर्न मिला जो कि आज दुनिया की सबसे बड़ी एडटेक कंपनी बन गई है.
साल 2020 में भारतीय एडटेक मार्केट की वैल्यू 750 मिलियन डॉलर पहुंच गई. भारत का एडटेक उद्योग जबरदस्त रूप से बढ़ रहा है और 2025 तक 3.7 करोड़ पेड एडटेक यूजर्स के साथ 10.4 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.
जब एक खास सेक्टर इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा हो और बरगद के पेड़ की तरह बड़ा होता जा रहा हो तब यह जरूरी हो जाता है कि उस सेक्टर को केवल दिशा में आगे बढ़ाने के लिए कुछ नियम-कानून और दिशानिर्देश तैयार किए जाएं.
इसी को देखते हुए भारतीय एडटेक कंसोर्टियम (IEC) और स्वतंत्र शिकायत समीक्षा बोर्ड (The Independent Grievance Review Board) जैसी संस्थाओं का गठन किया गया. ये संस्थाएं एडटेक सेक्टर से जुड़ी तमाम शिकायतों को देखती हैं और उनके लिए नियम-कानून भी बनाती हैं.
IGRB की एक्सपर्ट मेंबर अरुणा शर्मा कहती हैं, 'कोविड-19 महामारी के दौरान ही 5000 स्टार्टअप्स एडटेक सेक्टर में जुड़े हैं, जिसके बाद उनकी संख्या 9000 से अधिक हो गई है. ये ऐसे स्टार्टअप्स हैं जो हायर एजुकेशन, केजी से लेकर 12वीं क्लास, स्किल डेवलपमेंट, ट्रेनिंग, इन सर्विस या एक्जीक्यूटिव ट्रेनिंग के लिए, मैनेजमेंट स्किल, ऑनलाइन क्लास के लिए काम कर रहे हैं.'
अगर इतने सारे स्टार्टअप एक सेक्टर में काम कर रहे हैं तो ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि उसके लिए कोई नियम बने. यह इसलिए जरूरी है ताकि अगर इस इंडस्ट्री में कुछ गलत हो रहा है तो उसे वहीं ठीक किया जा सके.
उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए IEC को एक सेल्फ रेगुलेटरी रूप में बनाया गया.
, , , जैसी एडटेक इंडस्ट्री की बड़ी कंपनियों ने इसकी शुरुआत की. उसमें बाकी सदस्यों की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है.’क्या है IEC?
IEC, इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) के तहत आने वाली एक सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (SRO) है. IAMAI ने 12 जनवरी, 2022 को इसके गठन की घोषणा की थी. यह 95 फीसदी भारतीय एडटेक कंपनियों का प्रतिनिधित्व करती है.
बता दें कि, 2004 में स्थापित IAMAI गैर लाभकारी संस्था है. यह डिजिटल सर्विस इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व करने वाला देश का एकमात्र संगठन है. इसकी 400 से अधिक भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियां सदस्य हैं.
भारत सरकार में सेक्रेटरी के पद पर काम कर चुकीं शर्मा बताती हैं कि IEC को बनाने के बाद मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) के तहत एक कोड ऑफ कंडक्ट बनाया गया. इसके तहत सभी एडटेक कंपनियों को अपने स्टूडेंट्स और टीचर्स की केवाईसी करनी होगी. उन्हें क्वालिटी एजुकेशन भी मुहैया कराना होगा. एक शिकायत निवारण तंत्र रहेगा.
उन्होंने कहा, 'इसमें तीन टियर हैं. सबसे पहली बात तो यह है कि एडटेक कंपनियों को अपने कस्टमर्स के लिए खुद अपने सिस्टम में एक शिकायत निवारण का तंत्र रखेगा. वहां पर कस्टमर्स अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगे और उस स्तर पर उसका निराकरण किया जाएगा. अगर कस्टमर वहां से संतुष्ट नहीं होता है तब वह IEC के पास आएगा. हालांकि, अगर शिकायतकर्ता IEC के निराकरण से भी संतुष्ट नहीं होता है तो या तो IEC खुद उसकी शिकायत स्वतंत्र शिकायत समीक्षा बोर्ड (IGRB) को भेजेगी या वह खुद वहां जा सकता है.'
एडटेक के लिए क्यों जरूरी है सेल्फ रेगुलेटरी बॉडी?
शर्मा ने बताया कि यह बात सही है कि सरकार के पास एडटेक कंपनियों के लिए कोई खास रेगुलेशन नहीं हैं. हालांकि, अगर कल ऐसा कोई कानून आ भी जाता है, तो भी इन 9000 से अधिक एडटेक कंपनियों का सेल्फ रेगुलेशन बहुत जरूरी है. अगर कुछ चीजें ये आपस में ही बातचीत करके सही कर लें तो उन्हें रेगुलेटरी से डंडा पड़ने का डर नहीं रहेगा. इसका कारण यह है कि इन्हें पता है कि कमियां कहां हैं और गलतियां कहां हो सकती हैं. इन्हें सही करने से पूरे एडटेक सिस्टम को एक अच्छी स्टैबिलिटी मिलेगी.
उन्होंने कहा, 'फाइनेंस सेक्टर में जितने भी माइक्रो फाइनेंस लोन देते हैं उन्होंने मिलकर अपना एक माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन नेटवर्क (mfin) बनाया है जो कि एक SRO है. उसको आऱबीआई ने मंजूरी दी है. इसका फायदा यह होता है कि अगर कोई सिस्टम में कोई गंदी मछली आ जाती है तो उसको सबसे पहले यही सिस्टम बाहर कर देता है और फिर सरकारी रेगुलेटरी बॉडी कार्रवाई करती है.'
उन्होंने बताया कि 5-6 बड़ी कंपनियों ने खुद मिलकर यह तय किया कि हमें एक SRO मैकेनिज्म शुरू करना चाहिए. वे पब्लिक में जाने वाली गलत सूचनाओं पर भी रोक लगाना चाहते थे जिनमें उन पर केवल पैसा बनाने के लिए बिजनेस शुरू करने और एजुकेशन की क्वालिटी पर ध्यान नहीं देने के आरोप लगते थे. उन्होंने इन मुद्दे के समाधान के लिए एक बॉडी बनाने का फैसला किया और इस तरह से IEC अस्तित्व में आया.
IEC ने 1100 शिकायतों का किया निस्तारण
शर्मा ने बताया कि IEC को अब तक 1500 शिकायतें मिली हैं और उन्होंने इसमें से 1100 से अधिक शिकायतों को निस्तारण भी कर दिया है. कहीं रिफंड की बात है, कहीं टीचर्स के इफेक्टिवनेस की बात है, कहीं इंटरैक्टिव सेशन बनाने की बात है. तो इस हिसाब से जहां फीडबैक और एडटेक सेक्टर को अच्छा बनाने की बात है, उसमें यह काफी मददगार होगा.
अरुणा शर्मा ने कहा कि IEC के बनने के बाद उसके सामने सभी कंपनियां बराबर हैं. जो भी नियम-कानून बने हैं, वे सभी कंपनियों पर लागू होंगे. फाउंडिंग मेंबर्स की तरफ से भी अगर नियमों का उल्लंघन किया जाएगा तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी. IGRB यह भी देखता है कि ऐसी शिकायतें तो नहीं हैं जिनका समाधान नहीं निकाला जा रहा है.
उन्होंने बताया कि आगे चलकर छोटी कंपनियों की भी इसमें सक्रियता बढ़ेगी. बड़ी कंपनियों के पास भी इसकी अध्यक्षता रोटेट होती रहेगी और छोटी कंपनियों के पास भी यह आएगी.
क्या है IGRB?
अरुणा शर्मा बताती हैं कि अभी तक जो लोग भी कस्टमर की शिकायत को डील कर रहे थे वे या तो एडटेक कंपनी से जुड़े हैं या फिर एडटेक दे रहे हैं. हालांकि, IGRB में ऐसे लोग शामिल हैं जिनका एडटेक से कोई लेना-देना नहीं है.
बता दें कि, IGRB का गठन फरवरी 2022 में किया गया. इसके चेयरपर्सन एक रिटायर्ड जस्टिस हैं. इसके अलावा सदस्यों में डेवलपमेंट इकॉनमी, मीडिया और एजुकेशन और वकालत से जुड़े लोगों को शामिल किया गया है.
IGRB को मिली दो शिकायतें
अरुणा शर्मा ने बताया, 'IGRB के पास अभी तक दो शिकायतें आई हैं. इसमें एक शिकायत आईआईटी बॉम्बे के खिलाफ आई थी. आईआईटी बॉम्बे एक यूजर एक्सपीरियंस प्रोग्राम चला रहा था जिसमें 130 लोगों की शिकायत थी कि उनके सर्टिफिकेट में पोस्ट ग्रेजुएशन नहीं लिखा है. हालांकि, जांच में पाया गया कि आईआईटी बॉम्बे ने अपने ब्रॉशर में इसकी जानकारी दी थी और उन्होंने कोई भी जानकारी छिपाई नहीं थी.'
उन्होंने आगे बताया, 'दूसरी शिकायत वापस ले ली गई थी. हालांकि, शिकायत वापस लेने के बाद भी इस मामले में IGRB ने एक सख्त एडवाइजरी जारी की थी. यह शिकायत एडटेक कंपनी द्वारा कोर्स करने के बाद एक निश्चित राशि की नौकरी दिलाने की वादाखिलाफी की थी. एडवाइजरी में निर्देश दिया गया कि रिक्रूटर नहीं होने के कारण वे अपनी भाषा स्पष्ट रखें. कस्टमर्स को लुभाने के लिए वे शब्दों के साथ किसी तरह की हेराफेरी न करें. यह एडवाइजरी केवल संबंधित कंपनी नहीं बल्कि पूरे सेक्टर के लिए थी.'
शर्मा कहती हैं कि IGRB में शिकायतों के निस्तारण के लिए 30 दिन की समयसीमा निर्धारित की गई है. आवश्यकता पड़ने पर अधिक बैठकें कर उनका निस्तारण किया जाता है. फिलहाल, IGRB और सरकार के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है. हालांकि, IGRB एक स्वतंत्र निकाय है जिसके कारण सरकार उसकी सिफारिशों को निश्चित तौर पर संज्ञान में लेगी. सरकार के लिए यह अच्छा इसलिए हो जाता है क्योंकि कोई भी शिकायत पहले ही दो लेवल पर छन चुकी होती है.