महिलाओं को क्यों मिलनी चाहिए पेड मेंस्ट्रुअल लीव ?
स्पेन की संसद में मेंस्ट्रुअल लीव को लेकर पेश किया गया प्रस्ताव यदि कानून बनता है तो वो यूरोप ही नहीं, बल्कि दुनिया का पहला ऐसा देश बन जाएगा, जहां महिला कर्मचारियों को पीरियड के दौरान तीन दिन की पेड छुट्टी मिलेगी.
स्पेन की संसद कामकाजी महिलाओं को तीन दिन की मेंस्ट्रुअल लीव देने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है. पिछले हफ्ते संसद में इस पर प्रस्ताव पेश किया गया. अगर यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है और बिल पास होकर यह कानून बन जाता है तो स्पेन महिलाओं को तीन दिन की पेड मेंस्ट्रुअल लीव देने वाला यूरोप का पहला देश होगा.
आज की तारीख में यूरोप का कोई देश ऐसा नहीं है, जहां महिलाओं के लिए एक भी दिन की पेड मेंस्ट्रुअल लीव का कानून हो. आइसलैंड भी नहीं, जहां की संसद से लेकर सत्ता के आधिकारिक 70 फीसदी पदों पर महिलाएं हैं. 1920 में सोवियत संघ ने कुछ क्षेत्रों में पेड मेंस्ट्रुअल लीव की पॉलिसी लागू की थी, लेकिन 7 साल गुजरते न गुजरते वो भी ठंडे बस्ते में चली गई. 1927 में ये पॉलिसी वापस ले ली गई. भारत में 110 साल पहले मेंस्ट्रुअल लीव का एक उदाहरण मिलता है. इतिहासकार और मलयालम के लिटरेरी क्रिटीक पी. भास्कररुन्नी ने अपनी किताब ‘केरल इन नाइनटींथ सेंच्युरी’ में लिखते हैं कि एर्णाकुलम में एक स्कूल में महिला शिक्षकों और विद्यार्थियों को पीरियड के दौरान छुट्टी दी जाती थी.
हालांकि स्पेन में मेंस्ट्रुअल लीव की यह बहस नई नहीं है. पिछले साल अक्तूबर में स्पेन के जिरोना शहर की मेयर ने वहां के स्थानीय सरकारी दफ्तरों में काम करने वाली महिलाओं के लिए पेड मेंस्ट्रुअल लीव की घोषणा की. सरकारी दफ्तरों में काम कर रही शहर की तकरीबन 1300 महिलाएं इस नई नीति के तहत महीने में कभी भी आठ घंटे की मेंस्ट्रुअल लीव ले सकती थीं. शहर की मेयर मारिया एंजेल्स ने यह घोषणा करते हुए कहा था कि पीरियड को लेकर एक तरह का टैबू है और कोई इस बात को स्वीकार नहीं करता कि कुछ महिलाएं इस दौरान सचमुच गंभीर पीड़ा से गुजरती हैं.
दुनिया के तमाम हिस्सों में इसे लेकर कई तरह की बहस और मांग होती रही है, लेकिन जब भी यह सवाल उठता है तो इसके समानांतर एक नई बहस खड़ी हो जाती है कि यह मांग कितनी जायज है.
2017 में इटली में पहली बार इस तरह का एक बिल पेश किया गया, जिसमें तीन दिन की पेड मेंस्ट्रुअल लीव का प्रस्ताव था. इस बिल ने पूरे यूरोप में एक बहस खड़ी कर दी. उसी समय बीएमजे ओपेन में नीदरलैंड की एक स्टडी छपी. 32,000 महिलाओं पर की गई ये स्टडी कह रही थी कि वहां 14 फीसदी महिलाएं और लड़कियां पीरियड के दौरान काम से छुट्टी लेती हैं. हालांकि उसमें से 20 फीसदी ही छुट्टी लेने का कारण पीरियड को बताती हैं. यह स्टडी, जिसका शीर्षक ही था- “प्रोडक्टिविटी लॉस ड्यू टू पीरियड”, उसका केंद्रीय मुद्दा भी यही था कि 14 फीसदी महिलाओं की इस छुट्टी के कारण नेशनल प्रोडक्टिविटी को कितना नुकसान होता है.
2017 में यूरोप में छिड़ी यह बहस मेंस्ट्रुअल लीव की जरूरत से हटकर इस ओर मुड़ गई थी कि यदि इसे मंजूरी दी जाती है तो यह उत्पादन के आकड़ों को कैसे प्रभावित करेगी. वर्कफोर्स से लेकर जीडीपी और प्रोडक्टिविटी पर कितना नकारात्मक असर पड़ेगा. ज्यादा तकलीफ होने पर अभी भी महिलाएं सिक लीव या कैजुअल लीव ले लेती हैं. लेकिन तीन दिन की पेड मेंस्ट्रुअल लीव का कानून बन गया तो सभी महिलाएं तीन दिन की छुट्टी लेंगी ही.
इस बहस का नतीजा ये हुआ कि इटली की संसद में वो बिल पास ही नहीं हुआ और 2017 के बाद दोबारा संसद में यह मुद्दा उठाया भी नहीं गया.
आज दुनिया में दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, जापान, ताइवान और जांबिया जैसे कुछ मुट्ठी भर देशों में पीरियड के दौरान महिलाओं को पेड लीव मिलती है. हालांकि इस कानून में भी थोड़े पेंच हैं. जैसे जापान का श्रम कानून यह कहता है कि किसी भी महिला को पीरियड के दौरान शारीरिक तकलीफ होने पर छुट्टी लेने का अधिकार है, लेकिन वह कानून ये नहीं कहता है कि हर इम्प्लॉयर अपनी सभी महिलाकर्मियों को एक या दो दिन की पेड मेंस्ट्रुअल लीव देने के लिए बाध्य है.
दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया में ऐसा नहीं है. दक्षिण कोरिया के श्रम कानूनों के मुताबिक हर महिला कर्मचारी को दो दिन की मेंस्ट्रुअल लीव लेने का अधिकार है और अगर वह छुट्टी नहीं लेती तो उसे उन छुट्टियों के अलग से पैसे मिलते हैं. वहीं इंडोनेशिया के लेबर एक्ट के मुताबिक सभी महिला कर्मियों को पीरियड के दौरान दो दिन की पेड लीव का अधिकार है.
भारत में मैटरनिटी लीव की तरह मेंस्ट्रुअल लीव को लेकर अलग से कोई कानून नहीं है. लेकिन कुछ कंपनियां अपनी तरफ से महिलाओं को इस तरह की सुविधा देती हैं. 2020 में फूड डिलिवरी कंपनी जोमैटो ने अपनी महिला कर्मचारियों को महीने में एक दिन की पेड मेंस्ट्रुअल लीव देने की नीति बनाई. वहां बाकी छुट्टियों के अलावा उन्हें साल में 10 दिन की अतिरिक्त छुट्टी मिलती है, जो वो पीरियड के दौरान ले सकती हैं. इस छुट्टी के लिए अलग से कुछ कहकर अप्लाय भी नहीं करना होता. सिर्फ कैलेंडर में उस तारीख के ऊपर एक लाल रंग का निशान बना दो. आपकी छुट्टी अप्रूव्ड है.
दुनिया भर में मेंस्ट्रुअल लीव को लेकर होने वाली बहसों का सबसे रोचक पहलू ये है कि ये छुट्टी की जरूरत, पीरियड से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं से ज्यादा हमेशा इस बात पर केंद्रित रहा है कि इसका असर जीडीपी और प्रोडक्टिविटी पर क्या होने वाला है. इतिहास गवाह है कि मैटरनिटी लीव को लेकर नियोक्ताओं की ना-नुकुर के पीछे भी कुछ ऐसे ही कारण रहे हैं. सबको चिंता इस बात की रही कि छह महीने की पेड लीव दे दी तो उत्पादन और मुनाफे को इसकी कीमत चुकानी होगी.
लेकिन जिस तरह मैटरनिटी लीव का बेहद बुनियादी अधिकार औरतों को एक लंबी बहस और लड़ाई के बाद हासिल हुआ, वैसे ही पेड मेंस्ट्रुअल लीव का अधिकार भी धीरे-धीरे मुख्यधारा की बहसों और नीतियों में अपना हिस्सा बना ही लेगा. यह मांग अपेक्षाकृत नई है. अभी तो महिलाओं ने हाशिए से केंद्र की ओर कदम बढ़ाया ही है. जैसे-जैसे उनकी संख्या और बढ़ेगी, वो और निर्णायक पदों पर होंगी तो इस सवाल को देर तक और दूर तक नजरंदाज करना आसान नहीं होगा.