क्यों जम्मू की इस महिला ने नौकरी छोड़ किया फुल-टाइम कला उद्यमी (artpreneur) बनने का फैसला
एचआर प्रोफेशनल साक्षी खुल्लर ने आर्ट के प्रति अपने जुनून को पहचानते हुए उद्यमशीलता की यात्रा पर जाने का फैसला किया। वह अब पेंटिंग वर्कशॉप होस्ट करती हैं और जम्मू में एक आर्ट स्टूडियो-कम-गैलरी चलाती हैं।
"इस वर्ड-ऑफ-माउथ लीड ने श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय, कटरा, जम्मू-कश्मीर से एमबीए करने वाली साक्षी को अत्यधिक आत्मविश्वास दिया। उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और फुल टाइम आर्ट के क्षेत्र में जाने का फैसला किया।"
थेरेपी के रूप में आर्ट को फॉलो करते हुए, साक्षी जब एक छात्रा थीं और बाद में अपने कॉर्पोरेट करियर के दौरान भी अक्सर किताबों और कैनवस पर डूडल करती थीं। वह एक फुल-टाइम प्रोफेशनल के रूप में आर्ट के क्षेत्र का पता लगाना चाहती थीं, लेकिन उनमें उद्यमशीलता का कदम उठाने का साहस नहीं था।
2014 में, जब साक्षी जम्मू में एसबीआई इंश्योरेंस की ब्रांच में एचआर लीड के रूप में काम कर रही थीं, तो उन्हें एक बड़ा ब्रेक मिला।
उन्हें नई दिल्ली के रैडिसन होटल से एक फोन आया जो अपनी एक दीवार के लिए भित्ति चित्र बनवाना चाहते थे। उन्होंने इस काम के लिए साक्षी को 1.5 लाख रुपये की पेशकश की।
इस वर्ड-ऑफ-माउथ लीड ने श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय, कटरा, जम्मू-कश्मीर से एमबीए करने वाली साक्षी को अत्यधिक आत्मविश्वास दिया। उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और फुल टाइम आर्ट के क्षेत्र में जाने का फैसला किया।
'कलात्मक' यात्रा
रैडिसन में अपने काम के बाद, साक्षी को लोकल तौर पर और काम मिलने लगे। थोड़े समय के भीतर, उन्हें जम्मू और चंडीगढ़ में एक लोकल स्कूल और प्राइवेट हॉस्पिटल के लिए भित्ति चित्र बनाने के लिए कहा गया, जिससे उन्हें और अधिक नोटिस किया गया और इस दौरान उन्होंने लगभग 2-2.5 लाख रुपये का कारोबार किया।
हालांकि, स्टूडियो शुरू करने के लिए पूंजी अपर्याप्त थी। उन्होंने घर-आधारित भित्ति चित्रों के लिए आर्किटेक्ट्स के साथ करार किया और एक स्टूडियो शुरू करने के वास्ते पूंजी जुटाने के लिए सरकारी कला कार्य निविदाओं के लिए आवेदन किया।
तब तक, 32 वर्षीय साक्षी इस क्षेत्र में धूम मचाने में कामयाब हो चुकी थीं। साक्षी ने एक दूसरे के रेफरेंस से आए काम को पूरा करने के लिए चौबीसों घंटे काम किया।
वह कहती हैं,
“जम्मू एक छोटा शहर है और यहां महिला उद्यमियों की तो बात ही छोड़िए, यहां ज्यादा उद्यमी नहीं हैं। मुझे अपनी कला को व्यवसाय में बदलने का कोई भरोसा नहीं था और इसीलिए मुझे अपना स्टूडियो खोलने में वर्षों लग गए।”
एक जगह जहां आर्ट और मस्ती एक साथ मिलते हैं
अगले कुछ महीनों के लिए मासिक किराए का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन जुटाने और उपयुक्त जगह खोजने के बाद, साक्षी ने मई 2020 में अपनी स्टूडियो-कम-आर्ट गैलरी खोली।
शुरुआती विजन एक मजेदार 'जीवंत' जगह का था जहाँ एक कलाकार बिक्री के लिए अपने काम को चित्रित और प्रदर्शित कर सकता था। हालांकि, धीरे-धीरे, यह कुछ बड़ा हो गया।
लेकिन जल्द ही साक्षी को एक दिक्कत का सामना करना पड़ा, क्योंकि COVID-19 के बीच काम मिलना अनिश्चित हो गया और किराए का भुगतान करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। लोकल ऑर्डर के माध्यम से थोड़ी बहुत बिक्री करने में सफल रहने के बाद, उन्हें अपने व्यवसाय को बनाए रखने के लिए आय के वैकल्पिक स्रोत की तलाश करनी पड़ी।
'टीचिंग' का काम करना
साक्षी ने जम्मू, पंजाब और दिल्ली-एनसीआर में एक दूसरे से तारीफ के माध्यम से अपनी कलाकृतियों को बेचने के अलावा दो काम करने का
फैसला किया: बिक्री और वर्कशॉप्स के संचालन के लिए अपनी सोशल मीडिया उपस्थिति को सुधारना।
वह कहती हैं,
"मैंने रंगों और मटेरियल में निवेश किया, और मजेदार वर्कशॉप्स के लिए स्टूडियो को खोल दिया। इसका उद्देश्य लोगों को आसान DIY पेंटिंग से परिचित कराना था, जिसे वे मस्ती करने के अलावा स्टूडियो में ही खत्म कर सकते थे।”
वर्कशॉप्स में नामांकित 90 प्रतिशत लोगों को आर्ट के बारे में पहले से कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी।
उन्होंने पांच लोगों के साथ शुरुआत की और प्रति सप्ताह चार सेसन लिए, प्रति व्यक्ति 4,000 से 6,500 रुपये के बीच चार्ज किया। दो महीने की अवधि के भीतर, उनके पास 80 लोगों की वेटिंग लिस्ट थी।
साक्षी कहती हैं,
“मैंने सुबह और शाम के सत्र लेना शुरू कर दिया क्योंकि पैसा अच्छा मिल रहा था। राल कला (resin art) और गौचे कला (gouache art) को पेश करना सफल रहा क्योंकि मुझे छोटी पेंटिंग और टेबल टॉप के ऑर्डर मिलने लगे थे। इससे मुझे किराए का भुगतान करने, मटेरियल खरीदने और एक कलाकार के रूप में टिके रहने के लिए पैसे जुटाने में मदद मिली।”
सोशल मीडिया का इस्तेमाल
जो कभी किराया चुकाने के लिए साइड काम के तौर पर शुरू हुआ वह एक स्थायी चीज बन गया। साक्षी के स्टूडियो ने पूरे क्षेत्र में अपार लोकप्रियता हासिल की है, जिसमें सभी उम्र के लोग एक साथ एक कप कॉफी पीते हैं, अपने चित्रों पर काम करते हैं, एक दूसरे से घुलते मिलते हैं, और एक स्व-निर्मित कला कृति घर ले जाते हैं।
साक्षी के सोशल मीडिया पर ध्यान केंद्रित करने के फैसले ने परिणाम दिखाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने काम और स्टूडियो की नियमित तस्वीरें पोस्ट कीं।
वह बताती हैं,
“इंस्टाग्राम का धन्यवाद, मुझे प्रति माह दो से तीन बड़े ऑर्डर मिलते हैं, प्रत्येक पेंटिंग को पूरा होने में औसतन 20 दिन लगते हैं। यह उन छोटी पेंटिंग से अलग है जिन्हें मैं ऑफलाइन और ऑनलाइन बेचती हूं।”
आज तक, साक्षी ने पूरे भारत में 10 से अधिक बड़ी पेंटिंग (न्यूनतम 2x3 फीट) बेची हैं, जिनकी कीमत 20,000 से 2 लाख रुपये है। इसके अलावा 100 से अधिक छोटी कलाकृतियाँ बेची हैं जिनकी कीमत 4,000 रुपये से 6,000 रुपये प्रति पीस हैं।
वह कहती हैं,
"मैंने हाल ही में कैलिफोर्निया के एक एनआरआई क्लाइंट को 11 'मिनी कश्मीर' पेंटिंग बेचीं। मैं सोशल मीडिया का आभार जताती हूं जिसने मुझे एक कला उद्यमी बनाने में बहुत अहम भूमिका निभाई है।” एक इंस्टाग्राम रील की वजह से साक्षी ने अपने जर्नल के पेज 3,000 रुपये प्रति पेज के हिसाब से बेचे।
छोटे शहर का संघर्ष
साक्षी ने बताया कि कैसे उन्हें क्षेत्र के वरिष्ठ कलाकारों की नकारात्मक बातों का सामना करना पड़ा। उन्होंने ईवेंट्स या को-जज कंपटीशन्स के दौरान साक्षी के साथ मंच साझा करने से इनकार कर दिया, और अक्सर सरकारी कार्यालयों में निविदाएं दाखिल करते समय उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया।
वह कहती हैं,
"मैंने अपना मनोबल नीचे नहीं जाने दिया और अपना ध्यान बरकरार रखा। मुझे प्रतिभा और स्मार्ट वर्क के साथ अपने लिए एक बाजार बनाने पर गर्व है।”
ग्राहकों को मूल्य निर्धारण के बारे में समझाने के दौरान साक्षी को चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। वह कहती हैं, “एक पेंटिंग की कीमत को सही ठहराने में बहुत समय लगता है, खासकर छोटे क्षेत्रों में। मुझे कभी-कभी अंतिम कीमत पर भी सौदा करना पड़ता है।”
भविष्य की योजनाएं
साक्षी ऑनलाइन पेंटिंग क्लासेस के आइडिया के खिलाफ हैं क्योंकि उनमें "पेंटिंग का सार नहीं झलकता है" और लॉकडाउन के बाद अपनी ऑफलाइन वर्कशॉप पर ध्यान देना जारी रखेंगी। नेटफ्लिक्स द्वारा हाल ही में भारत में अपने कर्मचारियों और परिवारों के लिए एक ऑनलाइन वर्कशॉप आयोजित करने के लिए उनसे संपर्क किया गया था, और वह इस प्रस्ताव पर विचार कर रही हैं।
साक्षी ने जल्द ही सार्वजनिक सैर के लिए स्टूडियो खोलने की योजना बनाई है और वह अपने चित्रों को प्रदर्शित करने के लिए मुंबई और दिल्ली में प्राइवेट गैलरीज के साथ बातचीत भी कर रही है।
वह कहती हैं, “मैं प्राइवेट गैलरीज में प्रदर्शित होने के लिए स्टूडियो में प्रशिक्षित छात्रों के चित्रों का भी चयन करूँगी। पेंटिंग 'साक्षी खुल्लर आर्टवर्क' टैग के तहत जाएंगी।” साक्षी ने अब तक प्राइवेट गैलरीज के साथ सहयोग करने से परहेज किया है क्योंकि वे ज्यादा कमीशन लेते हैं। वे उनकी वेबसाइट पर ऑनलाइन भी उपलब्ध होंगे।
साक्षी कहती हैं,
"अगर मुझे एक समान विचारधारा वाला कलाकार मिल जाए, तो मेरी दीर्घकालिक दृष्टि में चंडीगढ़ और दिल्ली में इसी तरह के स्टूडियो खोलना भी शामिल है।"
Edited by Ranjana Tripathi