सुप्रीम कोर्ट की इस तल्ख़ टिप्पणी का भी सिस्टम और सरकारों पर असर क्यों नहीं!
अब तो हुक्मरानों पर वैज्ञानिकों की चेतावनियों, प्रदूषण से लाखों मौतों, सुप्रीम कोर्ट की बार-बार की फटकारों का भी कोई असर नहीं है। सिस्टम, सरकारों, आला अफसरों को लताड़ लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय को कहना पड़ा है कि लोगों को गैस चैंबर में रहने को मजबूर करने से बेहतर होगा, एक बार में विस्फोटक से शहर उड़ा दो।
यह किसी एक पार्टी, किसी एक विभाग, किसी एक आलाधिकारी की गैरजिम्मेदारी की बात नहीं, जिंदा मक्खी निगलने जैसी सचाइयों ने हमारे देश की समूची सियासत, पूरे सिस्टम का चेहरा चिंदी-चिंदी कर दिया है। दुष्यंत की लाइनें बखूबी चरितार्थ हो रही हैं- 'कहां तो तय था चिरांगा हरेक घर के लिए, कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।'
पूरे देश के लोगों की सेहत बचाने का खयाल तो दिमाग से निकाल ही दीजिए, राजधानी दिल्ली में ही किडनी, सांस, दिल और लिवर की बीमारियों से सबसे ज्यादा लोगों की मौतें होने का सच सामने आया है। इसे उजागर किया है, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों की ताज़ा रिपोर्ट ने।
आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने पहली बार अपने अध्ययन में बताया है कि वर्ष 2017 में दिल्ली में करीब 81 हजार लोगों की मौतें हुईं, जिनमें से 21.3 फीसदी संचारी और 57.6 फीसदी मौतें गैर संचारी रोगों की वजह से हुई हैं। राजधानी में प्रदूषण की वजह से सांस संबंधी संक्रमण गंभीर रूप ले चुका है। सिर्फ एक साल में दिल्ली में 40,000 से अधिक मौतें टीबी, डायरिया, श्वसन संक्रमण, दिल, किडनी फेलियर, लिवर की बीमारियों से हुई हैं।
सियासत और सिस्टम की नाकामियों का ताजा सिला ये भी रहा है कि देश की सर्वोच्च अदालत को हमारे रहनुमाओं को बार-बार कड़ी फटकारें लगानी पड़ रही हैं, वे तब भी चेतने को तैयार नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा ने एक ताज़ा सुनवाई में गैरजिम्मेदार सिस्टम, अधिकारियों, राजनेताओं को फटकारते हुए सवाल किया है कि क्या आप लोगों से इस तरीके से व्यवहार कर सकते हैं और उन्हें दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण से मरने के लिए छोड़ सकते हैं। हम इस बात से हैरान हैं कि दिल्ली में जल प्रदूषित है और आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है, यह क्या हो रहा है। लोग हमारे देश पर हंस रहे हैं कि हम स्टबल बर्निंग को कंट्रोल नहीं कर सकते। ब्लेम गेम दिल्ली के लोगों की सेवा नहीं है। आप लोग आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेल रहे हैं। प्रदूषण को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। दिल्ली नरक से भी बदतर हो चुकी है। भारत में जीवन इतना सस्ता नहीं है और आपको भुगतान करना होगा। दिल्ली सरकार को तो कुर्सी पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस अरुण मिश्रा ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को फटकारते हुए कहा है कि स्टबल बर्निंग बढ़ गई है, तो हम आपको और आपकी मशीनरी को दंडित क्यों न करें? हम अब आपको नहीं छोड़ेंगे, हर किसी को पता होना चाहिए कि हम आप में से किसी को भी नहीं छोड़ेंगे। अपनी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बताया है कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के कारण लाखों लोगों की आयु कम हो गई है। लोगों का 'दम घुंट' रहा है।
पराली जलाने पर रोक के आदेश के बावजूद हरियाणा में ऐसा हो रहा है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि लोगों को गैस चैंबरों में रहने के लिए क्यों मजबूर किया जा रहा है? उन सभी को एक बार में मारना बेहतर है, एक बार में 15 बैग में विस्फोटक करके शहर को उड़ा दो।