क्या टैक्स कानून में बदलाव से चैरिटी डोनेशन में आएगी कमी? क्यों बढ़ी चैरिटेबल ट्रस्टों की चिंता?
वित्त विधेयक में टैक्स कानून में बदलाव के लिए रखे गए प्रस्ताव के अनुसार, अगर कोई चैरिटेबल ऑर्गेनाइजेशन किसी अन्य चैरिटी को दान करता है तो केवल 85 प्रतिशत दान को दान देने वाले ऑर्गेनाइजेशन के लिए आय के आवेदन के रूप में माना जाएगा.
बीते 1 फरवरी को संसद में पेश किए गए बजट में टैक्स कानून में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव का रखा गया था. इस प्रस्ताव ने टाटा ट्रस्ट्स और शीर्ष कॉरपोरेट दानदाताओं की मुश्किल बढ़ा दी है. बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपनी एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी है.
दरअसल, वित्त विधेयक में टैक्स कानून में दानदाताओं के लिए दिए जाने वाले सभी टैक्स से जुड़े फायदों को वापस लेने का प्रस्ताव रखा गया है. इस प्रस्ताव के अनुसार, अगर कोई चैरिटेबल ऑर्गेनाइजेशन किसी अन्य चैरिटी को दान करता है तो केवल 85 प्रतिशत दान को दान देने वाले ऑर्गेनाइजेशन के लिए आय के आवेदन के रूप में माना जाएगा.
ट्रस्ट के अधिकारी इसे जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ काम करने वाले कॉरपोरेट फाउंडेशनों और मध्यस्थ संगठनों सहित दाता संगठनों के लिए एक बड़ा झटका मानते हैं.
टाटा ट्रस्ट, दुनिया के सबसे बड़े दानदाताओं में से एक है. यह एजुकेशन, हेल्थकेयर और एंवायरमेंट प्रोटेक्शन के क्षेत्र में कई अन्य गैर-सरकारी संगठनों के साथ काम करता है. हालांकि, टाटा ट्रस्ट के प्रवक्ता ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
चार्टर्ड एकाउंटेंट वीरेन मर्चेंट ने कहा कि प्रस्तावित संशोधन चैरिटेबल फाउंडेशनों और परोपकारी संस्थानों को अच्छा काम करने और नागरिकों तक अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाई जाने वाली सेवाएं प्रदान करने के लिए हतोत्साहित करेगा.
मर्चेंट ने कहा, "यदि खर्च का 15 प्रतिशत किसी अन्य धर्मार्थ संगठन को दिया जाता है, तो साफ तौर पर यह छोटे दान पर रोक लगाने का प्रयास है और इसके संसाधनों और नेटवर्क पर अंकुश लगाना है."
ट्रस्ट ऑर्गेनाइजेशन प्रस्तावित संशोधन को रद्द करने या इसे इस तरह से संशोधित करने के लिए सरकार से अपील करने की योजना बना रहे हैं कि यह जमीनी स्तर पर उनके काम को प्रभावित न करे.
सेंटर फॉर एडवांसमेंट ऑफ फिलैंथ्रोपी (सीएपी) के सीईओ नोशीर दादरावाला ने एक बयान में कहा कि प्रस्तावित संशोधन देशभर में हजारों धर्मार्थ संस्थानों के लिए हानिकारक है. उन्होंने कहा, "अगर ईज ऑफ डूइंग बिजनेस है, तो वहीं ईज ऑफ डूइंग चैरिटी होनी चाहिए. यह वह बदलाव है जिसकी जरूरत है. धर्मार्थ संगठन केवल कल्याण और विकास के क्षेत्र में सरकार के प्रयासों का पूरक हैं."
Edited by Vishal Jaiswal