WMO की रिपोर्ट: जलवायु परिवर्तन से दिल्ली में 30 गुणा बढ़ी गर्म मौसम की संभावना, सबसे ज्यादा असर निम्न आय वर्ग की आबादी पर
यूरोप में लू, पाकिस्तान में भीषण बाढ़, चीन, अफ्रीका और अमेरिका में लंबे समय तक गंभीर सूखा, भारत के असम और कर्नाटक में बाढ़ और राजधानी दिल्ली में इस साल पड़ी गर्मी और जानलेवा लू ने दुनियाभर के पर्यावरणविद और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस का ध्यान अपनी ओर खींचा है. इन आपदाओं के नये पैमाने के बारे में कुछ भी स्वाभाविक नहीं है.
विश्व मौसम विभाग (डब्ल्यूएमडी) की एक ताज़ी रिपोर्ट में यह बात बताई गई है की इस साल राजधानी दिल्ली में मार्च और मई के बीच तापमान रिकॉर्ड 49.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. इन्हीं दो महीनों में 5 बार लू भी चली. रिपोर्ट में बताया गया की खतरनाक हीटवेव की वजह से दिल्ली की उस आधी आबादी का जोखिम बढ़ गया, जिनकी आय निम्न है और जो अनौपचारिक बस्तियों में रहती है.
‘यूनाइटेड इन साइंस’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई जिसमें यह बात सामने आई है कि जलवायु परिवर्तन ने दिल्ली में लंबे समय तक गर्म मौसम की संभावना 30 गुना अधिक बढ़ा दी है और ऐसी ही स्थिति पूर्व औद्योगिक मौसम में करीब एक डिग्री सेल्सियस ठंडी रही होगी. डब्ल्यूएमओ ने यह भी कहा है कि पिछले सात साल रिकॉर्ड पर सबसे गर्म रहे. इसकी 48 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच वर्षों में कम से कम एक वर्ष के दौरान वार्षिक औसत तापमान अस्थायी रूप से 1850-1900 के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा. इसके अनुसार जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ेगा, जलवायु प्रणाली में ‘टिपिंग पॉइंट्स’ (यानी जब महत्वपूर्ण बदलाव होता है) से इनकार नहीं किया जा सकता.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक, 970 से अधिक शहरों में रहने वाले 1.6 अरब से अधिक लोग नियमित रूप से तीन महीने के औसत तापमान के संपर्क में आएंगे जिस दौरान तापमान कम से कम 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा.
डब्ल्यूएमडी के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में मौसम संबंधी आपदाओं की संख्या में पांच गुना वृद्धि हुई है, जिससे औसतन 115 लोगों की जान जाती है और प्रतिदिन 20.2 करोड़ अमरीकी डालर का नुकसान होता है.
इस जलवायु परिवर्तन से ऐसे शहर बढ़ते सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का सामना करेंगे, जहां अरबों लोग निवास करते हैं. इस साल दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चरम मौसम के उदाहरणों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे जोखिम वाली आबादी सबसे अधिक प्रभावित रहेगी.
रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता रिकॉर्ड ऊंचाई तक बढ़ रही है. लॉकडाउन के कारण अस्थायी गिरावट के बाद जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन दर अब पूर्व-महामारी के स्तर से ऊपर है.